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Sambhav-2025

  • 19 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 69: भारतीय संविधान भाषाई विविधता और आधिकारिक भाषा नीति की आवश्यकताओं के बीच संतुलन कैसे सुनिश्चित करता है? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत की भाषाई विविधता और भाषा नीति के लिये संवैधानिक ढाँचे का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • भारतीय संविधान किस प्रकार भाषाई विविधता और आधिकारिक भाषा नीति की आवश्यकता के बीच संतुलन स्थापित करता है, चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत भाषाई रूप से विविधतापूर्ण देश है, जिसमें 22 अनुसूचित भाषाएँ और 1,600 से ज़्यादा बोलियाँ हैं। राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करने के लिये भारतीय संविधान एक सामान्य आधिकारिक भाषा की आवश्यकता को भाषाई विविधता के साथ संतुलित करता है। यह एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाता है, हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देता है जबकि समावेशिता और सद्भाव बनाए रखने के लिये क्षेत्रीय भाषाओं की सुरक्षा करता है।

    मुख्य भाग:

    भाषाई विविधता और राजभाषा नीति की आवश्यकता:

    • भारत की विशाल भाषाई विविधता के कारण क्षेत्रीय अलगाव को रोकने तथा सुचारु शासन सुनिश्चित करने के लिये एक संरचित भाषा नीति की आवश्यकता है।
    • एकमात्र आधिकारिक भाषा गैर-हिंदी भाषी समुदायों को अलग-थलग कर सकती है, जबकि कई आधिकारिक भाषाएँ प्रशासनिक जटिलताओं को बढ़ा सकती हैं।
    • उदाहरण: 1950 और 1960 के दशक के भाषाई संघर्ष, जिनमें तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन भी शामिल है, भाषा नीति में शामिल संवेदनशीलता को दर्शाते हैं।
    • इसलिये, संविधान बहुभाषी ढाँचे के माध्यम से एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।

    भाषाई विविधता और राजभाषा नीति में संतुलन स्थापित करने वाले संवैधानिक प्रावधान:

    • राजभाषा प्रावधान (अनुच्छेद 343-351)
      • अनुच्छेद 343(1): देवनागरी लिपि में हिंदी संघ की राजभाषा है।
      • अनुच्छेद 343(2): स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती 15 वर्षों तक सरकारी उद्देश्यों के लिये अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रहा और आज भी इसका व्यापक रूप से प्रयोग होता है।
      • अनुच्छेद 344: हिंदी की प्रगति की जाँच करने और भाषाई विविधता की सुरक्षा के लिये एक आयोग तथा संसदीय समिति की स्थापना करता है।
    • भाषाई अधिकारों का संरक्षण (अनुच्छेद 29 और 30)
      • अनुच्छेद 29: सांस्कृतिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को भेदभाव से बचाता है।
      • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा में शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।
    • क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता (आठवीं अनुसूची)
      • आठवीं अनुसूची में शुरू में 14 भाषाओं को मान्यता दी गई थी, जिसे अब बढ़ाकर 22 कर दिया गया है, जिससे भाषाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो गया है।
      • अनुच्छेद 345 के तहत राज्यों को अपनी आधिकारिक भाषा चुनने की स्वायत्तता है।
      • उदाहरण: कर्नाटक ने कन्नड़ को और पश्चिम बंगाल ने बंगाली को अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया है।
    • संसदीय और न्यायिक प्रावधान
      • अनुच्छेद 348: कानूनी कार्यवाही में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिये अंग्रेज़ी सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की भाषा बनी रहेगी।
      • अनुच्छेद 350A: राज्यों को मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का निर्देश देता है, जिससे भाषाई अल्पसंख्यकों तक शैक्षिक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
      • अनुच्छेद 350B: भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये विशेष अधिकारी की स्थापना करता है।

    भाषाई चिंताओं को दूर करने के लिये उठाए गए कदम:

    • त्रि-भाषा फॉर्मूला: वर्ष 1968 और 2020 की शिक्षा नीतियों द्वारा भाषाई प्रतिनिधित्व को संतुलित करने के लिये हिंदी, अंग्रेज़ी तथा एक क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देते हुए स्कूलों में लागू किया गया।
    • राजभाषा आयोग: भाषाई अधिकारों और प्रतिनिधित्व से संबंधित चिंताओं की समीक्षा करने तथा उनका समाधान करने के लिये समय-समय पर इसकी स्थापना की जाती है।
    • डिजिटल और प्रशासनिक द्विभाषिकता: सरकारी दस्तावेज़, वेबसाइट और पोर्टल पहुँच सुनिश्चित करने के लिये कई भाषाओं में उपलब्ध हैं।
    • उमंग (नए युग के शासन के लिये एकीकृत मोबाइल एप्लीकेशन) कई भारतीय भाषाओं का समर्थन करता है, जो एक ही मंच पर विभिन्न ई-गवर्नेंस सेवाओं तक पहुँच प्रदान करता है।

    निष्कर्ष:

    भारतीय संविधान भाषाई विविधता को संतुलित करता है, जिसमें हिंदी को आधिकारिक भाषा, अंग्रेज़ी को संपर्क भाषा और क्षेत्रीय स्वायत्तता दी गई है। यह कानूनी सुरक्षा, शिक्षा नीति और प्रशासनिक अनुकूलन के ज़रिये भाषाई समरसता तथा राष्ट्रीय एकीकरण को सुनिश्चित करता है। दक्षता सुनिश्चित करते हुए विकासशील भाषाई आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिये निरंतर अनुकूलन महत्त्वपूर्ण है।

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