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Sambhav-2025

  • 24 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    दिवस- 73: रूस के साथ भारत के पारंपरिक संबंध अमेरिका के साथ रक्षा और रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने में बाधाएँ उत्पन्न कर सकते हैं। भारत की संतुलनकारी कूटनीति और इसके व्यापक विदेश नीति प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • रक्षा एवं सामरिक सहयोग में रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंधों पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
    • अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी का उल्लेख कीजिये।
    • दोनों के संबंधों के मध्य समन्वय लाने हेतु आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे एक व्यावहारिक विदेश नीति दृष्टिकोण का सुझाव दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय: 

    भारत ने पारंपरिक रूप से रूस के साथ मजबूत रक्षा और रणनीतिक साझेदारी बनाए रखी है, जिसमें उसके 60-70% से अधिक सन्य उपकरण मास्को से प्राप्त हुए हैं। हालाँकि साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, इंडो-पैसिफिक सुरक्षा चिंताओं और तकनीकी सहयोग से प्रेरित होकर भारत की अमेरिका के साथ बढ़ती साझेदारी ने एक जटिल संतुलनकारी कार्य किया है। भारत अपने पारंपरिक सहयोगी रूस और उभरते रणनीतिक साझेदार अमेरिका के बीच संतुलन बनाते हुए अपनी विदेश नीति को आकार देता है, जिससे उसकी कूटनीतिक दिशा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

    मुख्य भाग: 

    भारत-रूस रक्षा एवं सामरिक संबंध 

    • रक्षा खरीद: भारत रूस के सबसे बड़े रक्षा खरीदारों में से एक रहा है, जिसमें प्रमुख खरीद शामिल हैं:
      • एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम (2018 में 5.4 बिलियन डॉलर का सौदा)।
      • ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, भारत-रूस का संयुक्त विकास।
      • INS विक्रमादित्य विमान वाहक और AK-203 असॉल्ट राइफलें।
      • सुखोई SU-30MKI और मिग-29 लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की रीढ़ हैं।
      • रूसी उपकरण अभी भी भारत के वर्तमान रक्षा आयात का 45% से अधिक हिस्सा हैं (SIPRI, 2023)।
    • ऊर्जा एवं आर्थिक सहयोग: 
      • यूक्रेन युद्ध के बाद, रूस भारत के लिये प्रमुख तेल आपूर्तिकर्त्ता बन गया, जो अप्रैल 2023 तक भारत के कुल कच्चे तेल आयात का 40% प्रदान कर रहा था।
      • भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023 में बढ़कर 49 अरब डॉलर तक पहुँच गया था, जिसका मुख्य कारण रियायती ऊर्जा आयात था।
      • परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग, जिसमें कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र एक प्रमुख परियोजना है।

    बढ़ती भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी

    • रक्षा सहयोग को मज़बूत करना: भारत और अमेरिका ने प्रमुख रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं:
      • LEMOA (2016): सैन्य सहयोग के लिये रसद समर्थन समझौता।
      • COMCASA (2018): सुरक्षित संचार प्रौद्योगिकी साझाकरण।
      • BECA (2020): सटीक सैन्य अभियानों के लिये भू-स्थानिक खुफिया जानकारी साझा करना।
    • रक्षा व्यापार वर्ष 2008 में लगभग शून्य से बढ़कर वर्ष 2023 में 20 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जिसमें निम्नलिखित अधिग्रहण शामिल हैं:
      • MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर, P-8I टोही विमान, अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर।
    • हिंद-प्रशांत और सामरिक संरेखण
      • भारत और अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये क्वाड (जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ) में सहयोग कर रहे हैं।
      • हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (IPEF) व्यापार और प्रौद्योगिकी साझेदारी को मज़बूत करता है।
      • भारत उच्च तकनीक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये INDUS-X (भारत-अमेरिका रक्षा औद्योगिक सहयोग) और iCET (महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल) में भाग ले रहा है।

    दोनों के मध्य संबंध को संतुलित करने में चुनौतियाँ

    • रूसी रक्षा उपकरणों पर निर्भरता: 
      • भारत के S-400 सौदे से अमेरिका के साथ CAATSA (प्रतिबंधों के माध्यम से अमेरिका के विरोधियों का मुकाबला करने का अधिनियम) संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो गईं।
      • यद्यपि अमेरिका भारत को पश्चिमी हथियारों की ओर जाने के लिये प्रोत्साहित कर रहा है, लेकिन तीव्र परिवर्तन तकनीकी और वित्तीय रूप से चुनौतीपूर्ण है
    • अमेरिकी प्रतिबंध और सामरिक दबाव:
      • यूक्रेन युद्ध ने भारत के संतुलन को प्रभावित किया, क्योंकि अमेरिका ने रूस से कूटनीतिक दूरी बना ली, जबकि भारत ने तटस्थ रुख बनाए रखा
      • भारत ने रुपए और दिरहम में रूसी तेल खरीदकर पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने में सफलता प्राप्त की है, जिससे डॉलर पर उसकी निर्भरता कम हुई है।
    • भू-राजनीतिक बदलाव और चीन कारक: 
      • रूस के साथ चीन की बढ़ती निकटता (जैसे- शी-पुतिन सामरिक साझेदारी) भारत के लिये रणनीतिक दुविधाएँ उत्पन्न करती है।
      • अमेरिका भारत को चीन के प्रतिकार के रूप में देखता है, लेकिन भारत रूस के साथ संबंध तोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता, जिसने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तथा पिछले संघर्षों के दौरान उसका समर्थन किया है

    भारत की विदेश नीति के लिये आगे के कदम

    • रणनीतिक स्वायत्तता और बहु-संरेखण: 
      • भारत को गुटनिरपेक्षता के स्थान पर "बहु-गठबंधन" का अनुसरण करना चाहिये तथा राष्ट्रीय हित के आधार पर दोनों शक्तियों के साथ जुड़ना चाहिये।
      • उदाहरण: भारत, अमेरिका के साथ क्वाड में भाग लेता है, लेकिन रूस और चीन के नेतृत्व में ब्रिक्स तथा SCO में एक प्रमुख खिलाड़ी बना हुआ है।
    • रक्षा और प्रौद्योगिकी स्वायत्तता को मज़बूत करना: 
      • रूस और अमेरिका दोनों पर निर्भरता कम करने के लिये मेक इन इंडिया के माध्यम से घरेलू रक्षा उत्पादन का विस्तार करना।
      • फ्राँस, इज़रायल और यूरोपीय संघ सहित कई साझेदारों के साथ संयुक्त उद्यम विकसित करना।
    • ऊर्जा और आर्थिक साझेदारी में संतुलन: 
      • रूस पर अत्यधिक निर्भरता कम करने के लिये खाड़ी देशों के माध्यम से ऊर्जा आयात में विविधता लाना।
      • भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों का विस्तार, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर, AI और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में
    • कूटनीति और रणनीतिक भागीदारी को बढ़ाना: 
      • बेहतर संकट प्रबंधन के लिये रूस और अमेरिका दोनों के साथ 2+2 वार्ता को संस्थागत बनाना।
      • क्वाड प्रतिबद्धताओं को मज़बूत करते हुए रणनीतिक लाभ के लिये ब्रिक्स और SCO का उपयोग करना

    निष्कर्ष

    रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने की भारत की नीति व्यावहारिक विदेश नीति दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता एवं रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करती है। रक्षा आपूर्ति में विविधता, कूटनीतिक संतुलन और बहुपक्षीय साझेदारी को मज़बूत करके, भारत वैश्विक शक्ति प्रतिस्पर्द्धा के बीच अपने रणनीतिक हितों एवं संप्रभुता की रक्षा कर सकता है।

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