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20 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 43: भारत के ग्रामीण विकास और रोज़गार सृजन के संदर्भ में कृषि आधारित उद्योग महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद, प्रणालीगत अक्षमताओं तथा संरचनात्मक चुनौतियों के कारण उनका विकास बाधित हो रहा है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में कृषि आधारित उद्योगों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- प्रासंगिक तथ्यों, उदाहरणों और समाधानों के साथ प्रणालीगत अकुशलताओं तथा संरचनात्मक चुनौतियों की व्याख्या कीजिये।
- उचित निष्कर्ष बताइये।
परिचय:
कृषि आधारित उद्योग भारत के ग्रामीण विकास और रोज़गार सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं (उदाहरण के लिये, ग्रामीण कार्यबल का 70% हिस्सा कृषि कार्य से जुड़ा हुआ) तथा कृषि उपज का मूल्य-वर्द्धन करते हैं। अपनी व्यापक क्षमता के बावजूद, इन उद्योगों को प्रणालीगत अक्षमताओं तथा संरचनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनके विकास में बाधा उत्पन्न करती हैं।
मुख्य भाग:
प्रणालीगत अकुशलताएँ:
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: खराब ग्रामीण सड़कें, भंडारण सुविधाओं की कमी और अविश्वसनीय विद्युत आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करती हैं।
- उदाहरण: शीत भंडारण की कमी के कारण शीघ्र नष्ट होने वाली उपज का एक बड़ा हिस्सा (फलों और सब्ज़ियों का 30-40%) बर्बाद हो जाता है।
- ऋण तक पहुँच का अभाव: लघु और मध्यम कृषि उद्योगों को अक्सर किफायती वित्तपोषण प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण: नाबार्ड के आँकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण ऋण पहुँच अभी भी बड़े उद्योगों की ओर झुकी हुई है, जिससे छोटे उद्योगों को पर्याप्त वित्त पोषण नहीं मिल पाता है।
- तकनीकी उपयोग में कमी: आधुनिक मशीनरी और तकनीकों के बारे में सीमित जागरूकता तथा उनका कम उपयोग उत्पादकता एवं लाभप्रदता को प्रभावित करता है।
- उदाहरण: ऊर्जा-कुशल विकल्प उपलब्ध होने के बावजूद पारंपरिक चावल मिलों का वर्चस्व बना हुआ है।
संरचनात्मक चुनौतियाँ:
- खंडित आपूर्ति शृंखला: छोटी भूमि जोत और अनेक बिचौलियों की उपस्थिति के कारण खरीद तथा मूल्य निर्धारण में अक्षमता उत्पन्न होती है।
- नीतिगत बाधाएँ: असंगत निर्यात नीतियाँ और पुराने श्रम कानून कृषि आधारित उद्योगों की मापनीयता को प्रतिबंधित करते हैं।
- उदाहरण: प्याज़ जैसी वस्तुओं के निर्यात पर बार-बार प्रतिबंध लगाने से बाज़ार की स्थिरता और लाभप्रदता प्रभावित होती है।
- कृषि में सीमित उपलब्धता: फसल विविधीकरण पर पर्याप्त रूप से ध्यान न देने से तिलहन और कपास जैसे उद्योगों के लिये कच्चे माल की उपलब्धता सीमित हो जाती है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: कृषि उद्योगों द्वारा भूजल जैसे संसाधनों का अत्यधिक उपयोग दीर्घकालिक स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
सुझाए गए सुधार:
- बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से कोल्ड स्टोरेज और ग्रामीण कनेक्टिविटी का विस्तार करना।
- FPO (किसान उत्पादक संगठन) को प्रोत्साहित करना: आपूर्ति शृंखला को सुव्यवस्थित करना और छोटे किसानों को सशक्त बनाना।
- प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देना: पीएम-किसान संपदा योजना जैसी पहलों के तहत उन्नत प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों को सब्सिडी देना और उनका प्रसार करना।
- नीतिगत सुधार: स्थिर निर्यात नीतियों तथा कृषि और उद्योग के बीच बेहतर एकीकरण सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष:
कृषि आधारित उद्योगों की प्रणालीगत अक्षमताओं और संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करके ग्रामीण विकास तथा समावेशी वृद्धि के लिये उनकी पूरी क्षमता का दोहन किया जा सकता है। एक मज़बूत कृषि-औद्योगिक क्षेत्र भारत में गरीबी उन्मूलन और सतत् रोज़गार सृजन के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकता है।