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Sambhav-2025

  • 05 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस- 81: भारत में उल्लेखनीय आर्थिक वृद्धि के बावजूद, समावेशी विकास अब भी एक चुनौती बना हुआ है। इसके मूलभूत कारणों का विश्लेषण कीजिये और इसे प्राप्त करने के लिये संभावित समाधान प्रस्तुत कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वर्ष 1991 के सुधारों के बाद से भारत की आर्थिक विकास की गति का उल्लेख कीजिये तथा विकास और समावेशिता के बीच अंतर पर प्रकाश डालिये।
    • समावेशी विकास की कमी के कारणों पर चर्चा कीजिये।
    • समावेशी विकास प्राप्त करने के लिये उपाय प्रस्तावित कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वर्ष 1991 के उदारीकरण के बाद से भारत ने प्रभावशाली आर्थिक विकास का अनुभव किया है, पिछले तीन दशकों में सकल घरेलू उत्पाद औसतन 6-7% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है। फिर भी, समावेशी विकास, जहाँ आर्थिक प्रगति के लाभ समाज के सभी वर्गों तक समान रूप से पहुँचें, अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।

    मुख्य भाग:

    समावेशी विकास की कमी के पीछे के कारण

    • क्षेत्रीय असमानताएँ
      • आर्थिक विकास मुख्य रूप से महानगरीय शहरों तक सीमित है, जबकि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य अब भी प्रमुख विकास संकेतकों में पिछड़े हुए हैं।
      • नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (2021) के अनुसार, बिहार में गरीबी दर सबसे अधिक 51.91% है, जबकि केरल में सबसे कम 0.71% है।
    • बेरोज़गारी वृद्धि
      • विकास को IT और सेवा जैसे पूंजी-गहन उद्योगों द्वारा प्रेरित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार सृजन कम हुआ है।
      • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2022-23 के अनुसार, भारत की बेरोज़गारी दर 3.2% है, लेकिन युवा बेरोज़गारी (15-29 वर्ष) 10.3% पर उच्च बनी हुई है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व
      • भारत का 85% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ वेतन कम है, कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है और नौकरी असुरक्षित है (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23)।
    • लिंग और सामाजिक असमानता
      • महिलाओं के लिये श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) सिर्फ 37% है, जबकि पुरुषों के लिये यह 83% है (विश्व बैंक, 2023)।
      • जातिगत और जनजातीय असमानताएँ बनी हुई हैं, अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की उच्च शिक्षा और नौकरियों तक पहुँच कम है।
    • शैक्षिक एवं कौशल की कमी
      • ASER रिपोर्ट 2023 में बताया गया है कि कक्षा 5 के केवल 73% छात्र ही कक्षा 2 के स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ सकते हैं, जिससे उनकी रोज़गार क्षमता प्रभावित होगी।
      • भारत का केवल 48% कार्यबल औपचारिक रूप से कुशल है, जबकि दक्षिण कोरिया में यह 96% है (ILO, 2023)।
    • कृषि संकट
      • कृषि सकल घरेलू उत्पाद में केवल 16% का योगदान देती है, लेकिन इसमें 45% से अधिक कार्यबल को रोज़गार मिलता है, जिसके कारण छिपी हुई बेरोज़गारी उत्पन्न होती है।
      • भारत में औसत कृषि आय केवल ₹10,218 प्रतिमाह है (नाबार्ड, 2022)।
    • बुनियादी ढाँचा और डिजिटल विभाजन
      • CEA (2023) के अनुसार, 30% से अधिक ग्रामीण परिवार अब भी विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति से वंचित हैं।
      • ग्रामीण भारत में इंटरनेट की पहुँच केवल 55% है, जिससे डिजिटल शिक्षा और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है (ट्राई, 2023)।
    • कमज़ोर सामाजिक सुरक्षा तंत्र
      • केवल 20% कार्यबल के पास पेंशन और बीमा जैसे औपचारिक सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच है (आर्थिक सर्वेक्षण 2023)।

    समावेशी विकास प्राप्त करने के उपाय

    • रोज़गार सृजन
      • वस्त्र, निर्माण और पर्यटन जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करें।
      • रोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का विस्तार MSME तक किया जा सकता है।
    • कृषि सुधार
      • MSP कवरेज बढ़ाएँ और समय पर खरीद सुनिश्चित करें।
      • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत फसल विविधीकरण और सिंचाई विस्तार को बढ़ावा देना।
    • वित्तीय समावेशन
      • प्रधानमंत्री जन धन योजना को मज़बूत करना, जिससे पहले ही 49.78 करोड़ बैंक खाते खोलने में मदद मिली है (2023 तक)।
      • ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रोफाइनेंस और डिजिटल बैंकिंग की पहुँच का विस्तार करना।
    • सामाजिक क्षेत्र में निवेश
      • स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम-से-कम 3% तक बढ़ाना (वर्तमान में आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार ~ 2%)।
      • सार्वजनिक शिक्षा में सुधार लाना तथा कौशल भारत मिशन के माध्यम से व्यावसायिक प्रशिक्षण में निवेश करना।
    • बुनियादी ढाँचे और डिजिटल विभाजन को पाटना
      • भारतनेट परियोजना का लक्ष्य 2025 तक सभी गाँवों में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड उपलब्ध कराना है।
      • पीएम गति शक्ति के तहत आकांक्षी ज़िलों में सड़क और रेल नेटवर्क को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
    • महिलाएँ और हाशिये पर पड़े लोगों का समावेश
      • मातृत्व अवकाश, कार्यस्थल सुरक्षा और समान वेतन नीतियों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
      • सरकारी अनुबंधों और MSME ऋणों का एक निश्चित प्रतिशत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं महिला उद्यमियों के लिये निर्धारित किया जाए।
    • श्रम कानून और नीति सुधार
      • गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से चार नए श्रम संहिताओं को लागू किया जाएगा।
      • बेरोज़गारी कम करने के लिये शहरी श्रमिकों के लिये मनरेगा जैसी योजनाओं का विस्तार करें।

    निष्कर्ष:

    जबकि भारत ने आर्थिक विकास में सराहनीय प्रगति की है, समावेशी विकास अभी भी प्रगति पर है। सरकार को असमानता की खाई को पाटने के लिये रोज़गार-प्रधान उद्योगों, ग्रामीण विकास, लैंगिक समानता, सामाजिक सुरक्षा और कौशल वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। वास्तविक समावेशी विकास के लिये ऐसा संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है, जो यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक प्रगति समाज के सभी वर्गों को समान रूप से सशक्त बनाए, न कि केवल कुछ गिने-चुने लोगों को लाभ पहुँचाए।

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