दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संदर्भ में उनके अंतर्संबंध पर प्रकाश डालिये।
- समावेशी विकास के लिये भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता की व्याख्या कीजिये।
- चुनौतियों पर चर्चा कीजिये, शिक्षा और कौशल विकास की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
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परिचय:
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश, जिसमें लगभग 67% आबादी कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में आती है, आर्थिक विकास को गति देने के लिये एक असाधारण अवसर प्रदान करता है। समावेशी विकास, जो सभी जनसांख्यिकी में संसाधनों और अवसरों का समान वितरण सुनिश्चित करता है, इस लाभांश का प्रभावी ढंग से दोहन कर सकता है। हालाँकि इस क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिये कौशल की कमी को दूर करना और उत्पादक रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।
मुख्य भाग:
समावेशी विकास के लिये भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता:
- आर्थिक विकास और उत्पादकता: एक विस्तृत कार्यबल विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाकर उच्च सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि में योगदान दे सकता है।
- उदाहरण: आईटी और फार्मास्यूटिकल जैसे उद्योग युवा प्रतिभाओं का उपयोग करते हुए निर्यात को बढ़ाने एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- उन्नत श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) त्रैमासिक बुलेटिन (जुलाई-सितंबर 2024) के अनुसार–
- शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों में श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) वर्ष 2023 में 49.3% से बढ़कर वर्ष 2024 में 50.4% हो गई।
- महिलाओं के लिये LFPR वर्ष 2023 में 24.0% से बढ़कर वर्ष 2024 में 25.5% हो गया, जो कार्यबल में महिलाओं के क्रमिक समावेशन का संकेत है।
- बढ़ता श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR): शहरी क्षेत्रों में WPR वर्ष 2023 में 46.0% से बढ़कर वर्ष 2024 में 47.2% हो जाएगा, जो कार्यबल के बेहतर उपयोग को दर्शाता है।
क्षमता को साकार करने में चुनौतियाँ:
- बेरोज़गारी और कौशल असंगति: बेरोज़गारी दर में गिरावट (PLFS के अनुसार, वर्ष 2023 में 6.6% से वर्ष 2024 में 6.4%) के बावजूद, कौशल असंगति सार्थक रोज़गार के लिये एक बाधा बनी हुई है।
- महिलाओं को अभी भी 8.4% की बेरोज़गारी दर का सामना करना पड़ रहा है, जो लैंगिक असमानता को उजागर करता है।
- क्षेत्रीय एवं सामाजिक असमानताएँ: ग्रामीण एवं शहरी असमानताएँ तथा बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों की चुनौतियाँ संतुलित विकास में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- लैंगिक असमानता: बेहतर LFPR और WPR के बावजूद, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी असमान रूप से कम है, जिसके लिये निरंतर प्रयास की आवश्यकता है।
लाभांश प्राप्त करने में शिक्षा और कौशल विकास की भूमिका:
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच: समग्र शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य आधारभूत कौशल में सुधार करना और सभी के लिये साक्षरता एवं गणना क्षमता सुनिश्चित करना है।
- NEP 2020, व्यावसायिक शिक्षा छात्रों को उद्योग से संबंधित भूमिकाओं के लिये तैयार करती है।
- उद्योग-संरेखित कौशल विकास: कौशल भारत मिशन और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसी पहलों ने आईटी, निर्माण एवं स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में लाखों लोगों को प्रशिक्षित किया है।
- उदाहरण: PMKVY ने बाज़ार की ज़रूरतों के साथ संरेखण सुनिश्चित करते हुए 15 मिलियन से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया है।
- महिला-केंद्रित कौशल विकास: प्रशिक्षण और रोज़गार सहायता कार्यक्रम (STEP) जैसी योजनाएँ कौशल निर्माण के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
- महिलाओं के लिये बढ़ी हुई LFPR (वर्ष 2023 में 24.0% से वर्ष 2024 में 25.5% तक) ऐसे हस्तक्षेपों के महत्त्व को रेखांकित करती है।
- डिजिटल और STEM शिक्षा: डिजिटल साक्षरता और STEM शिक्षा को बढ़ावा देने से आईटी एवं डाटा विज्ञान जैसे उच्च मांग वाले वैश्विक क्षेत्रों में रोज़गार सुनिश्चित होता है।
- आजीवन सीखना और कौशल उन्नयन: स्वयं जैसे प्लेटफॉर्म और वैश्विक संस्थानों के साथ साझेदारी निरंतर शिक्षा के अवसर प्रदान करती है एवं तकनीकी परिवर्तनों के प्रति अनुकूलनशीलता सुनिश्चित करती है।
निष्कर्ष:
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश समावेशी और सतत् विकास को आगे बढ़ाने की अपार क्षमता प्रदान करता है, बशर्ते शिक्षा, कौशल विकास एवं लैंगिक सशक्तीकरण में सही निवेश किया जाए। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण डाटा (2024) कार्यबल भागीदारी में प्रगति को दर्शाता है, लेकिन बेरोज़गारी, कौशल असंगति और लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। इस जनसांख्यिकीय लाभ को दीर्घकालिक आर्थिक वरदान में बदलने के लिये, शिक्षा और रोज़गार नीतियों को एकीकृत करने वाला लक्षित एवं समावेशी दृष्टिकोण आवश्यक है।