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27 Feb 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 76: भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का प्रभावी उपयोग करके बेरोज़गारी को कैसे कम कर सकता है और समावेशी विकास को कैसे बढ़ावा दे सकता है? इस संदर्भ में शिक्षा, कौशल विकास और औद्योगिक नीतियों की भूमिका की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के संदर्भ में जनसांख्यिकीय लाभांश और इसके महत्त्व को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
- इसके जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करने की रणनीतियों पर प्रकाश डालिये।
- इस संदर्भ में शिक्षा, कौशल विकास और औद्योगिक नीतियों की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- उचित रूप से निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
जनसांख्यिकीय लाभांश तब होता है जब किसी देश में आश्रितों की तुलना में कामकाजी आयु के व्यक्तियों का अनुपात अधिक होने के कारण त्वरित आर्थिक विकास की अवधि होती है। भारत ने वर्ष 2005-06 में अपने जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधि में प्रवेश किया, जो वर्ष 2055-56 तक चलेगा। हालाँकि यह लाभ केवल शिक्षा, कौशल विकास और औद्योगिक नीतियों में रणनीतिक सुधारों के माध्यम से पूरी तरह से महसूस किया जा सकता है।
मुख्य भाग:
जनसांख्यिकीय लाभांश और बेरोज़गारी चुनौती
- जनसांख्यिकीय विभाजन:
- भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत की कार्यशील जनसंख्या 2011 में 61% से बढ़कर वर्ष 2021 में 64% हो जाने का अनुमान है तथा वर्ष 2036 तक 65% तक पहुँच जाने का अनुमान है, जो आर्थिक विकास के लिये एक अवसर प्रदान करता है।
- बेरोज़गारी चुनौती:
- सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, भारत की बेरोज़गारी दर मई 2024 में 7.0% से बढ़कर जून 2024 में 9.2% हो जाएगी, जिससे यह G20 अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में बेरोज़गारी दर के मामले में तीसरा सबसे ऊँचा स्थान बन जाएगा।
- वर्ष 2023-24 में, कृषि क्षेत्र अखिल भारतीय स्तर पर 46% श्रम शक्ति को रोज़गार देगा, जबकि कुल मूल्यवर्द्धन में 16% का योगदान देगा।
- इससे जनसंख्या को रोज़गार देने वाले विभिन्न क्षेत्रों के संदर्भ में असंतुलन उत्पन्न होता है।
बेरोज़गारी कम करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने की रणनीतियाँ
- शिक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाना
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच: आधारभूत शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये समग्र शिक्षा अभियान जैसी पहलों का विस्तार करना।
- STEM और डिजिटल साक्षरता पर ध्यान केंद्रित करना: उद्योग की मांगों को पूरा करने के लिये AI, कोडिंग और डाटा विज्ञान शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
- इंजीनियरिंग स्नातकों के बीच रोज़गार योग्यता 60% से अधिक है, जिनमें से केवल 45% ही उद्योग मानकों को पूरा करते हैं।
- उच्च शिक्षा सुधार: कौशल आधारित शिक्षा को बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लागू करना।
- कौशल विकास को बढ़ावा देना
- उद्योग-अकादमिक सहयोग: भारत को अक्षय ऊर्जा, IT और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण को उद्योग की मांगों के अनुरूप बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) ने कार्यबल को उन्नत बनाने के लिये 1,700 से अधिक प्रशिक्षण साझेदारों के साथ सहयोग किया है।
- रोज़गार संबंधी अंतर को पाटने के लिये कौशल भारत मिशन, PMKVY और प्रशिक्षुता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
- व्यावसायिक और उद्यमिता प्रशिक्षण: स्वरोज़गार के लिये ITI सुधार, स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया को बढ़ावा देना।
- राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना (NAPS) का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 50 लाख प्रशिक्षुता प्रदान करना है, जिससे युवाओं को व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होगा और वे नौकरी के लिये तैयार होंगे।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना: आजीवन सीखने के लिये ई-लर्निंग और ऑनलाइन प्रमाणन कार्यक्रमों तक पहुँच का विस्तार करना।
- उद्योग-अकादमिक सहयोग: भारत को अक्षय ऊर्जा, IT और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण को उद्योग की मांगों के अनुरूप बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- रोज़गार सृजन के लिये औद्योगिक नीतियाँ
- श्रम-प्रधान विनिर्माण: व्यापक रोज़गार के लिये वस्त्र, MSME और निर्माण जैसे क्षेत्रों को मज़बूत करना।
- मेक इन इंडिया पहल का लक्ष्य वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 16% से बढ़ाकर 25% करना है।
- स्टार्टअप और उद्यमिता को बढ़ावा देना: स्टार्टअप इंडिया ने वर्ष 2021 तक 50,000 से अधिक स्टार्टअप का निर्माण किया है, जो ई-कॉमर्स, फिनटेक और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में रोज़गार सृजन एवं नवाचार में योगदान दे रहा है।
- आत्मनिर्भर भारत पहल ने इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करने में मदद की है, जिसने वर्ष 2014-2020 के बीच 2 मिलियन से अधिक नौकरियों का सृजन किया (इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन, 2020)।
- श्रम-प्रधान विनिर्माण: व्यापक रोज़गार के लिये वस्त्र, MSME और निर्माण जैसे क्षेत्रों को मज़बूत करना।
- समावेशी विकास को बढ़ावा देना
- हाशिये पर पड़े समूहों को लक्षित करना: समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये कार्यक्रमों को महिलाओं, ग्रामीण आबादी और वंचित समुदायों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- अनौपचारिक श्रमिकों को सशक्त बनाने के लिये जन धन योजना, डिजिटल इंडिया और UPI पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना।
- लैंगिक-समावेशी कार्यबल: मातृत्व लाभ, सतत् कार्य नीतियों और वित्तीय साक्षरता के माध्यम से महिला कार्यबल की भागीदारी बढ़ाना।
- स्वयं सहायता समूह (SHG) आंदोलन ने 10 मिलियन से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया है (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक)।
- ग्रामीण रोज़गार को बढ़ावा देना: ग्रामीण श्रम शक्ति अवशोषण के लिये मज़दूरी रोज़गार योजनाओं को बढ़ाना।
- मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम) ने वर्ष 2006-2021 के बीच 28.8 बिलियन से अधिक व्यक्ति-दिवस रोज़गार प्रदान किया है, जिसमें ग्रामीण रोज़गार सृजन और गरीबी उन्मूलन पर ज़ोर दिया गया है।
- हाशिये पर पड़े समूहों को लक्षित करना: समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये कार्यक्रमों को महिलाओं, ग्रामीण आबादी और वंचित समुदायों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित करके अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। कौशल असंतुलन को दूर करके, उद्यमशीलता को बढ़ावा देकर और समावेशी नीतियों को सुनिश्चित करके, भारत प्रभावी रूप से बेरोज़जगारी को कम कर सकता है तथा सतत्, समावेशी विकास सुनिश्चित कर सकता है।