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30 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-25:असहयोग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर बढ़ते रुझान के पीछे क्या कारण थे? (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- असहयोग आंदोलन की वापसी का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
- उन कारकों पर प्रकाश डालिये जिनके कारण क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर झुकाव बढ़ा।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
असहयोग आंदोलन की वापसी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के भीतर आत्मनिरीक्षण और रणनीतिक पुनर्मूल्यांकन का क्षण चिह्नित किया। राष्ट्रवादी भावनाओं के उदय के साथ, क्रांतिकारियों ने भारत के आत्मनिर्णय के अधिकार को स्थापित करने के लिये अधिक सक्रिय और दृढ़ कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की।
मुख्य भाग:
क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर झुकाव बढ़ाने वाले कारक
- असहयोग आंदोलन का अचानक वापस लेना:
- असहयोग आंदोलन के अचानक वापस ले लिये जाने से कई युवा निराश हो गए।
- उन्होंने राष्ट्रवादी नेतृत्व की पारंपरिक रणनीति पर प्रश्न उठाए और अहिंसक तरीकों की प्रभावशीलता पर ज़ोर देने लगे।
- तत्काल परिणाम खोजें:
- असहयोग आंदोलन, जिसमें अहिंसा और जन भागीदारी पर ज़ोर दिया गया था, को कुछ लोगों द्वारा एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया के रूप में देखा गया था।
- जो लोग तत्काल और अधिक प्रभावशाली परिणाम चाहते थे, उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की गति को तीव्र करने के लिये क्रांतिकारी मार्ग अपनाया।
- जलियाँवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव:
- 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने कई भारतीयों को गहराई से प्रभावित किया।
- अमृतसर में अंग्रेज़ों की क्रूर दमनकारी कार्रवाई ने उपनिवेश-विरोधी भावनाओं को और भड़का दिया, जिससे कुछ कार्यकर्त्ता प्रतिरोध के उग्र तरीकों की ओर प्रवृत्त हो गए।
- अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव:
- रूसी क्रांति और दुनिया भर में अन्य उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों के प्रभाव सहित वैश्विक संदर्भ ने भारतीय क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।
- विश्व के अन्य भागों में क्रांतिकारी तरीकों की सफलता ने भारत में अधिक मुखर और उग्रवादी दृष्टिकोण की ओर बदलाव को प्रभावित किया।
- श्रमिक वर्ग में ट्रेड यूनियनवाद का उभार:
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद, श्रमिक वर्ग में ट्रेड यूनियनवाद में उछाल आया।
- क्रांतिकारियों ने इस उभरते वर्ग की क्रांतिकारी ऊर्जा को राष्ट्रवादी क्रांति की दिशा में प्रेरित करने का प्रयास किया।
- क्रांतिकारी नेताओं का उदय:
- हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना अक्तूबर 1924 में कानपुर में रामप्रसाद बिस्मिल, जोगेश चंद्र चटर्जी और सचिन सान्याल द्वारा औपनिवेशिक सरकार को उखाड़ फेंकने के लिये सशस्त्र क्रांति आयोजित करने हेतु की गई थी।
- इस अवधि के दौरान भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य जैसे प्रभावशाली नेता भी उभरे।
- साहित्यिक प्रभाव:
- सचिन सान्याल की "बंदी जीवन" और शरतचंद्र चटर्जी की "पाथेर दबी" जैसी पुस्तकों ने क्रांतिकारी सक्रियता को गहराई से प्रभावित किया है।
- इस बीच, भगवती चरण वोहरा द्वारा लिखित "द फिलॉसफी ऑफ द बम" गांधी जी द्वारा अपनाए गए अहिंसक तरीकों को चुनौती देता है और इसके स्थान पर प्रत्यक्ष तथा सक्रिय कार्रवाई का समर्थन करता है।
निष्कर्ष:
इस क्रांतिकारी आंदोलन में विद्रोह और बलिदान के कई उदाहरण सामने आए, जिसने भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना को जागृत किया। इसने स्वतंत्रता के लिये एक गहरी प्रतिबद्धता और सामूहिक पहचान को प्रेरित किया।