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Sambhav-2025

  • 11 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 62: सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या न्याय तक समय पर पहुँच को बाधित कर रही है। न्यायालय की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिये किन संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधारों की आवश्यकता है? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के मुद्दे पर संक्षेप में प्रकाश डालिये। 
    • केस बैकलॉग के कारणों का उल्लेख कीजिये।
    • आवश्यक संरचनात्मक एवं प्रक्रियात्मक सुधारों पर चर्चा कीजिये।
    • अंत में, न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक दक्षता के महत्त्व को संक्षेप में बताइये।

    परिचय: 

    भारत के सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या ने न्याय तक पहुँच के बारे में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं। वर्ष 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय में 80,000 से अधिक मामले लंबित थे, जिनमें से लगभग 500 संविधान पीठ के मामलों की सुनवाई अभी बाकी है। मामलों के समय पर निपटान में न्यायपालिका की अक्षमता "न्याय में विलंब न्याय से वंचित करने के समान है" के सिद्धांत को कमज़ोर करती है। 

    मुख्य भाग: 

    केस बैकलॉग के कारण

    • अपीलों की उच्च संख्या
      • सर्वोच्च न्यायालय प्रतिवर्ष 70,000 से अधिक मामलों पर सुनवाई करता है, जिनमें से अनेक संविधान के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत विशेष अनुमति याचिकाएँ (SLP) होती हैं।
      • कई अपीलें सामान्य मामलों से संबंधित होती हैं, जिनका समाधान उच्च न्यायालय स्तर पर किया जा सकता था।
    •  न्यायाधीशों की कमी
      • सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 34 है, जोकि मुकदमों की अधिकता को देखते हुए अपर्याप्त है।
      • कभी-कभी स्वीकृत पदों से कम रिक्तियाँ होती थीं, जिससे न्यायिक कार्यवाही और धीमी हो जाती थी।
    • न्यायिक जवाबदेही का अभाव: न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत तंत्र का अभाव चिंता का विषय रहा है, जिससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास प्रभावित हो सकता है।  
      • कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के प्रस्ताव को सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में खारिज कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप न्यायिक स्वतंत्रता बनाम जवाबदेही के बारे में बहस जारी है। 
    • न्यायिक अतिक्रमण और सक्रियता: न्यायिक सक्रियता और अतिक्रमण के बीच की महीन रेखा बहस का विषय बनी हुई है।
      • सड़क सुरक्षा के बारे में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग के 500 मीटर के भीतर खुदरा दुकानों, रेस्तरां, बार में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। न्यायालय के समक्ष ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया, जो यह दर्शाता हो कि राजमार्गों पर शराब पर प्रतिबंध और मृत्यु की संख्या के बीच कोई संबंध है।  
    •  प्रक्रियागत अक्षमताएँ
      • बार-बार स्थगन और लंबी मौखिक बहस से मामले के निपटारे में विलंब होता है।
      • जवाब दाखिल करने में विलंब, साक्ष्य एकत्र करने में देरी और प्रक्रियागत खामियों के कारण कई मामले लंबित रह जाते हैं।
    • संवैधानिक पीठ के मामले और जटिलता
      • संवैधानिक व्याख्या से जुड़े मामलों को सुलझाने में लंबा समय लगता है।
      • उदाहरण: सबरीमाला मामला (2018) अभी भी समीक्षाधीन है, जिससे अंतिम निर्णय में विलंब हो रहा है।
    • प्रौद्योगिकी का सीमित उपयोग
      • यद्यपि महामारी के दौरान वर्चुअल सुनवाई की शुरुआत की गई थी, लेकिन उनका उपयोग कम हो गया है।
      • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति के अनुसार, 22 नवंबर 2022 तक, निपटाए गए मामलों के विरासत रिकॉर्ड सहित लगभग 12 अरब पृष्ठों के डिजिटल संरक्षण की आवश्यकता है।  

    संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता

    • राष्ट्रीय अपील न्यायालय की स्थापना
      • एक पृथक राष्ट्रीय अपील न्यायालय (NCA) नियमित अपीलों को संभाल सकता है, जिससे सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक मामलों पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलेगी।
      • इसकी सिफारिश भारतीय विधि आयोग (1986) द्वारा की गई थी और इसे कई बार प्रस्तावित किया गया है।
    • न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना
      • संसद को मामले की मांग को पूरा करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर कम-से-कम 50 करनी चाहिये।
      • 239वीं विधि आयोग रिपोर्ट (2019) में बढ़ते मुकदमों के बोझ से निपटने के लिये अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति का सुझाव दिया गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय का विकेंद्रीकरण
      • दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में क्षेत्रीय पीठें दूर-दराज़ के राज्यों के वादियों की यात्रा एवं मुकदमेबाज़ी की लागत को कम कर सकती हैं।
      • न्यायमूर्ति जसवंत सिंह आयोग (1984) ने इसकी सिफारिश की थी लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।
    • निचली न्यायपालिका को मज़बूत बनाना
      • ज़िला एवं उच्च न्यायालयों में 4.3 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं
      • यदि निचली अदालतें कुशलतापूर्वक काम करेंगी तो सर्वोच्च न्यायालय तक कम मामले पहुँचेंगे।

    दक्षता के लिये प्रक्रियागत सुधार

    • विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) पर प्रतिबंध लगाना
      • वर्तमान में, अधिकांश SLP प्रारंभिक सुनवाई के बाद खारिज कर दी जाती हैं।
      • सर्वोच्च न्यायालय को केवल राष्ट्रीय और संवैधानिक महत्त्व के मामलों की सुनवाई करनी चाहिये।
    • एआई-आधारित केस प्रबंधन का कार्यान्वयन
      • एआई-संचालित उपकरण केस शेड्यूलिंग, वाद-सूची निर्माण और त्वरित निपटान के लिये पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण में सहायता कर सकते हैं।
      • उदाहरण: वर्ष 2023 में वास्तविक समय के केस रिकॉर्डिंग के लिये सुप्रीम कोर्ट में एआई-संचालित ट्रांसक्रिप्शन का उपयोग किया गया था।
    • कुछ मामलों के लिये फास्ट-ट्रैक तंत्र
      • मौलिक अधिकारों, आर्थिक कानूनों और भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
      • उदाहरण: चुनावी बाॅण्ड मामले (2024) को, इसकी तात्कालिकता के बावजूद, निपटाने में पाँच साल लग गए।
    • स्थगन को सीमित करना
      • असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, प्रत्येक मामले में स्थगन की संख्या अधिकतम दो होनी चाहिये।
      • वी. वसंतकुमार बनाम मद्रास उच्च न्यायालय (2017) मामले ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार बार-बार स्थगन से न्याय में विलंब होता है।
    • वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र को मज़बूत करना
      • सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचने से पहले दीवानी विवादों के लिये मध्यस्थता, लोक न्यायालय और पंचनिर्णय अनिवार्य होना चाहिये।
      • उदाहरण: वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम (2015) के तहत व्यावसायिक विवादों में मुकदमा दायर करने से पहले मध्यस्थता को अनिवार्य कर दिया गया।

    निष्कर्ष:

    सर्वोच्च न्यायालय के लंबित मामलों के कारण समय पर न्याय देने की उसकी क्षमता बाधित होती है। संरचनात्मक, प्रक्रियात्मक और तकनीकी सुधारों का संयोजन कार्यकुशलता को बढ़ा सकता है। न्यायिक शक्ति का विस्तार करके, बेंचों का विकेंद्रीकरण करके, अनावश्यक अपीलों को सीमित करके और एआई-संचालित केस प्रबंधन को एकीकृत करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक अधिकारों एवं न्याय का प्रभावी संरक्षक बना रहे।

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