-
23 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-19: भारत में ब्रिटिश वर्चस्व को आकार देने में कर्नाटक युद्धों के रणनीतिक और राजनीतिक निहितार्थों पर चर्चा करें। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- कर्नाटक युद्धों का संक्षिप्त संदर्भ प्रस्तुत कीजिये।
- रणनीतिक और राजनीतिक परिणामों को प्रमुख बिंदुओं द्वारा स्पष्टकीजिये।
- ब्रिटिश उपनिवेशी महत्त्वाकांक्षाओं के लिये इन युद्धों के महत्त्व पर निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
ब्रिटिश और फ्राँसीसी के बीच वर्ष 1746-1763 के दौरान लड़े गए कर्नाटक युद्धों ने भारत में औपनिवेशिक संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत किया। इन युद्धों के परिणामस्वरूप ब्रिटिशों का वर्चस्व मज़बूत हुआ, जबकि फ्रांसीसी प्रभाव में काफी कमी आई।
मुख्य भाग:
- रणनीतिक निहितार्थ:
- वांडीवाश की लड़ाई (1760) ने ब्रिटिश सैन्य श्रेष्ठता को उजागर किया और भारत में फ्राँसीसी क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को समाप्त कर दिया।
- अर्काट के नवाब जैसे स्थानीय शासकों के साथ ब्रिटिश गठबंधन ने दक्षिण भारत में उनके प्रभाव को बढ़ाया।
- मद्रास और फोर्ट सेंट जॉर्ज जैसे प्रमुख स्थानों पर नियंत्रण से ब्रिटिश रणनीतिक स्थिति मज़बूत हुई।
- राजनीतिक निहितार्थ:
- युद्धों ने मुगल सत्ता के पतन और क्षेत्रीय विखंडन का लाभ उठाया, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश राजनीतिक प्रभुत्व में वृद्धि हुई।
- पेरिस की संधि (1763) ने फ्राँसीसी गतिविधियों को कुछ व्यापारिक केंद्रों तक सीमित कर दिया, जिससे वे भारत में एक द्वितीयक औपनिवेशिक शक्ति बनकर रह गए।
- इन युद्धों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एक व्यापारिक इकाई से एक राजनीतिक शक्ति में परिवर्तन को रेखांकित किया।
- सैन्य एवं प्रशासनिक विकास:
- इन युद्धों ने आधुनिक युद्ध और कूटनीति में अनुभव प्रदान किया, जिसका कौशल बाद में बंगाल (प्लासी की लड़ाई 1757 के माध्यम से) और मैसूर (एंग्लो-मैसूर युद्धों के माध्यम से) जैसी विजयों में उपयोग किया गया।
- उन्होंने भावी सैन्य अभियानों के लिये धन जुटाने हेतु संगठित राजस्व संग्रह प्रणालियों की शुरुआत की।
- उदाहरण के लिये, ब्रिटिश भारत में, स्थायी बंदोबस्त (1793) और रैयतवाड़ी प्रणाली (1820 के दशक) ने संगठित राजस्व संग्रह की शुरुआत की, जिससे भारत तथा विदेशों में सैन्य अभियानों के लिये धन उपलब्ध हुआ।
निष्कर्ष:
कर्नाटक युद्धों ने भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व को मज़बूती से स्थापित करते हुए औपनिवेशिक विस्तार की नींव रखी। इन युद्धों ने न केवल भारत की राजनीतिक दिशा को दो शताब्दियों तक प्रभावित किया, बल्कि साम्राज्यवादी इतिहास में रणनीतिक और राजनीतिक पैंतरेबाज़ी के आपसी प्रभाव को भी उजागर किया।