Sambhav-2025

दिवस- 91: भारत में इथेनॉल उत्पादन का खाद्य सुरक्षा और जल संरक्षण पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। ऊर्जा आवश्यकताओं और कृषि स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने के उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

20 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • परिचय में, इथेनॉल उत्पादन और भारत की नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति में इसके महत्त्व को परिभाषित कीजिये।
  • खाद्य सुरक्षा, जल संरक्षण तथा पर्यावरण एवं कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

इथेनॉल, मुख्य रूप से गन्ना और मक्का से प्राप्त होने वाला एक जैव ईंधन है, जो इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम के तहत भारत की अक्षय ऊर्जा रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन खाद्य सुरक्षा, जल संरक्षण और कृषि स्थिरता पर चिंताएँ उत्पन्न करता है, जिसके लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

मुख्य भाग:

खाद्य सुरक्षा पर इथेनॉल उत्पादन का प्रभाव:

  • खाद्य फसलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा: इथेनॉल के लिये गन्ने और मक्का का बड़े पैमाने पर उपयोग आवश्यक खाद्य फसलों को हटा देता है, जिससे संभावित रूप से खाद्य आपूर्ति प्रभावित होती है। इन फसलों पर अत्यधिक निर्भरता से घरेलू बाज़ारों में कमी हो सकती है और निर्यात प्रभावित हो सकता है।
  • मूल्य अस्थिरता: इथेनॉल फीडस्टॉक की बढ़ती मांग चीनी और मक्का की कीमतों में उतार-चढ़ाव का कारण बन सकती है, जिससे उपभोक्ता एवं किसान दोनों प्रभावित होते हैं। उच्च इथेनॉल मांग खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है, जिससे मुख्य खाद्य पदार्थ कम किफायती हो सकते हैं।
  • फीडस्टॉक का विविधीकरण: जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति (2018) कृषि अवशेषों, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और बाँस जैसे गैर-खाद्य जैव ईंधन की ओर बदलाव को प्रोत्साहित करती है, जिससे खाद्य फसलों पर निर्भरता कम हो जाती है।
  • डायवर्सन में कमी और कृषि पर प्रभाव: गन्ने के उत्पादन को चीनी उत्पादन से इथेनॉल में बदलने से किसानों की स्थिर आय सुनिश्चित होती है, लेकिन अत्यधिक डायवर्सन से चीनी की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है, जिससे इस पर निर्भर उद्योगों पर असर पड़ सकता है।

जल संरक्षण पर इथेनॉल उत्पादन का प्रभाव:

  • जल-गहन फसलें: भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और बिहार जैसे उपोष्णकटिबंधीय राज्यों में गन्ने की वार्षिक जल आवश्यकता 1400-1500 मिमी. है।
  • कृषि तनाव और सूखे का खतरा: गन्ने से इथेनॉल उत्पादन के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन पहले से ही जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों में पानी की कमी को और बढ़ा देता है, जिससे समग्र कृषि स्थिरता प्रभावित होती है।
  • जल-बचत उपाय:
    • ड्रिप सिंचाई से गन्ने की खेती में पानी का उपयोग कम हो सकता है, जिससे संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित हो सकता है।
    • मीठी ज्वार और कसावा जैसी सूखा प्रतिरोधी फसलों से इथेनॉल को बढ़ावा देने से गन्ने पर अत्यधिक निर्भरता कम हो सकती है।
    • इथेनॉल संयंत्रों में अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण से उद्योग की मीठे पानी की मांग को कम करने में मदद मिल सकती है।

इथेनॉल उत्पादन लक्ष्य और चुनौतियाँ:

  • सरकार का लक्ष्य: भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण प्राप्त करना है, जिसके लिये सालाना 1,016 करोड़ लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होगी।
  • कुल इथेनॉल मांग: औद्योगिक और पेय पदार्थों के उपयोग सहित कुल इथेनॉल मांग 1,350 करोड़ लीटर होने का अनुमान है
  • बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतें: इस मांग को पूरा करने के लिये भारत को इथेनॉल संयंत्रों में 80% परिचालन दक्षता मानते हुए 1,700 करोड़ लीटर की इथेनॉल उत्पादन क्षमता स्थापित करनी होगी।
  • क्षेत्रीय विस्तार पर विचार: इथेनॉल की मांग का अनुमान पेट्रोल वाहनों की बढ़ती बिक्री, विशेष रूप से दोपहिया और यात्री वाहन खंडों पर आधारित है।
  • भूमि उपयोग और मृदा क्षरण: इथेनॉल फसल की खेती का विस्तार मृदा स्वास्थ्य, जैवविविधता और दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता को प्रभावित करता है

ऊर्जा आवश्यकताओं और कृषि स्थिरता में संतुलन:

  • द्वितीय पीढ़ी (2G) इथेनॉल को बढ़ावा देना: फसल अवशेषों, कृषि अपशिष्ट और लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास का उपयोग खाद्य फसलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को रोकता है एवं स्थिरता को बढ़ाता है।
  • वैकल्पिक फीडस्टॉक: शैवाल, औद्योगिक उपोत्पादों और नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट से इथेनॉल उत्पादन का विस्तार करके कृषि दबाव को कम किया जा सकता है।
  • एकीकृत कृषि पद्धतियाँ: फसल चक्र, अंतरफसल और मिश्रित खेती को प्रोत्साहित करने से मृदा क्षरण को कम किया जा सकता है तथा जल संरक्षण किया जा सकता है।
  • नीति सुधार:
    • संशोधित प्रधानमंत्री G-वन योजना (2024) गन्ने पर निर्भरता कम करने के लिये उन्नत जैव ईंधन और दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल का समर्थन करती है।
    • इथेनॉल पर GST को घटाकर 5% करने तथा ब्याज अनुदान योजनाएँ शुरू करने से इथेनॉल उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिला है।

निष्कर्ष:

इथेनॉल भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, लेकिन इसके बड़े पैमाने पर अपनाने से खाद्य सुरक्षा, जल संरक्षण या कृषि स्थिरता से समझौता नहीं किया जाना चाहिये। वैकल्पिक फीडस्टॉक्स, कुशल जल उपयोग और दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक संतुलित, विविध इथेनॉल रणनीति, खाद्य उत्पादन या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।