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14 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 12: हर्ष का शासनकाल भारतीय इतिहास में प्राचीन काल से मध्यकालीन युग तक के संक्रमण की प्रक्रिया को किस प्रकार प्रतिबिंबित करता है? (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- हर्ष के साम्राज्य का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- विभिन्न क्षेत्रों में हर्ष के साम्राज्य की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।
- प्राचीन काल से मध्यकाल तक के संक्रमण को दर्शाते हुए हर्ष के साम्राज्य के बारे में बताइये।
- उचित रूप से निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
हर्ष का शासनकाल, जिसने 606 से 647 ई. तक उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से पर शासन किया, भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण अवधि के रूप में कार्य करता है जो प्राचीन से मध्यकालीन युग में संक्रमण को दर्शाता है।हर्ष का शासन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करता है तथा उनके शासनकाल के विविध पहलू इस बदलाव को स्पष्ट रूप से परिलक्षित करते हैं।
मुख्य भाग:
- राजनीतिक परिवर्तन:
- हर्ष के शासनकाल ने उस युग की शुरुआत की जब गुप्त साम्राज्य, जिसने सदियों तक उत्तर भारत पर अपना वर्चस्व कायम रखा था, अपने पतन को प्राप्त हुआ। गुप्त साम्राज्य के कमज़ोर होने के साथ ही क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे राजनीतिक परिदृश्य खंडित हो गया।
- हर्ष, जो शुरू में थानेसर में एक क्षेत्रीय शासक था, अंततः अपने शासन के तहत उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से को एकीकृत करने में सफल रहा। हालाँकि उसका साम्राज्य अल्पकालिक था और उसमें प्राचीन साम्राज्यों की तरह केंद्रीकृत प्रशासन की कमी थी।
- इस विकेंद्रीकरण ने शासन की सामंतवादी प्रकृति का पूर्वाभास कराया जो मध्यकाल में प्रचलित हो गई।
- सांस्कृतिक संश्लेषण:
- हर्ष, कला और संस्कृति के संरक्षक थे एवं उनका दरबार बुद्धिजीवियों, विद्वानों और कलाकारों का केंद्र बन गया था। इस सांस्कृतिक उत्कर्ष की विशेषता हिंदू और बौद्ध परंपराओं का संश्लेषण थी।
- हर्ष, स्वयं एक बौद्ध होने के बावजूद, सभी धर्मों को समान रूप से संरक्षण देते थे और उन्होंने अपने शासन में धार्मिक सहिष्णुता तथा समभाव का वातावरण स्थापित किया।
- इस सांस्कृतिक संश्लेषण ने मध्यकालीन काल के सांस्कृतिक प्रभावों के उदार मिश्रण की आधारशिला रखी।
- आर्थिक परिवर्तन:
- केंद्रीकृत सत्ता के पतन के कारण आर्थिक संरचनाओं में बदलाव आया। व्यापार और वाणिज्य का विकास हुआ तथा स्थानीय शासकों ने आर्थिक मामलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभाई।
- क्षेत्रीय व्यापार केंद्रों के उदय और बड़े पैमाने पर शाही संरक्षण के पतन ने मध्यकालीन समय की विकेंद्रित अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा, अधिक स्थानीयकृत आर्थिक प्रणाली की ओर बदलाव को चिह्नित किया।
- सामंतवादी तत्त्व:
- यद्यपि "सामंतवाद" शब्द सामान्यतः मध्ययुगीन यूरोप से जुड़ा हुआ है, हर्ष के शासनकाल में सामंतवादी तत्त्वों के कुछ प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते हैं।
- एक मज़बूत केंद्रीय सत्ता के अभाव के कारण स्थानीय सरदारों और ज़मींदारों का उदय हुआ, जो अपने-अपने क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण शक्ति का प्रयोग करते थे।
- भूमि अनुदान प्रायः स्थानीय अभिजात वर्ग की विश्वसनीयता प्राप्त करने के लिये दिया जाता था, जिससे मध्यकालीन भूमि अनुदान प्रणाली की नींव रखी गई।
- शहरी केंद्रों का पतन:
- प्राचीन काल में, शहरी केंद्र प्रशासन, व्यापार और संस्कृति के महत्त्वपूर्ण केंद्र थे।
- हालाँकि हर्ष के शासनकाल में शहरी केंद्रों के महत्त्व में गिरावट देखी गई तथा सत्ता ग्रामीण परिदृश्य में अधिक फैल गई।
- यह विकेंद्रीकरण और शहरी केंद्रित शासन से हटकर, मध्यकालीन काल में विकसित हो रहे सामाजिक-राजनीतिक ढाँचे की विशेषता को दर्शाता था।
- वंशवादी स्थिरता का अभाव:
- भारतीय इतिहास में मध्यकाल को अक्सर कई राजवंशों के उत्थान और पतन के लिये जाना जाता है। 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद सत्ता शून्य हो गई और उत्तराधिकार की स्पष्ट योजना का अभाव हो गया, जिससे उसके साम्राज्य में विखंडन हो गया।
- इसके बाद की राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय राजवंशों के उदय ने विखंडित राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित किया जो मध्ययुगीन भारत की पहचान बन गया।
निष्कर्ष:
हर्ष का शासन भारतीय इतिहास में प्राचीन और मध्यकालीन काल के बीच एक सेतु का काम करता है। केंद्रीकृत सत्ता का पतन, सांस्कृतिक संश्लेषण आदि उनके शासन की प्रमुख विशेषताएँ थीं, जिन्होंने भारत में मध्यकालीन युग की विशेषता वाले गहन परिवर्तनों का अनुमान लगाया था। हर्ष की विरासत न केवल राजनीतिक एकीकरण के उनके प्रयासों में निहित है, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को अनजाने में आकार देने में भी निहित है, जो मध्ययुगीन भारत को परिभाषित करेगा।