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27 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-23: उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में बढ़ते असंतोष का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारतीय राष्ट्रवाद के विकास को बढ़ावा देने वाली आर्थिक और सामाजिक स्थितियों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
उन्नीसवीं सदी का उत्तरार्द्ध भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवधि थी। इस समय के दौरान, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत आर्थिक शोषण की भावना गहरी हुई और साथ ही भारतीयों में सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागरूकता भी बढ़ी।
मुख्य भाग:
राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाली आर्थिक परिस्थितियाँ
- धन का निष्कासन: ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने ब्रिटिश साम्राज्य के लाभ के लिये भारत से संसाधनों को निकालने पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था अविकसित रह गई।
- दादाभाई नौरोजी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "गरीबी और भारत में गैर-ब्रिटिश शासन (1901)" में 'ड्रेन सिद्धांत' प्रस्तुत किया।
- नौरोजी ने यह स्पष्ट किया कि ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप भारत से ब्रिटेन को धन का निरंतर और व्यवस्थित प्रवाह हुआ, जबकि भारत को इसके बदले कोई पारस्परिक लाभ नहीं मिला।
- विऔद्योगीकरण: सस्ते ब्रिटिश निर्मित माल के आगमन ने भारतीय कारीगरों को नष्ट कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में व्यापक बेरोज़गारी एवं आर्थिक कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईं।
- भूमि राजस्व प्रणाली: ब्रिटिश भूमि राजस्व प्रणाली, जैसे स्थायी बंदोबस्त और रैयतवारी प्रणाली, ने भारतीय किसानों पर भारी बोझ डाला।
- रेलवे और संचार नेटवर्क: जबकि अंग्रेज़ों का प्राथमिक लक्ष्य संसाधनों के निष्कर्षण को सुविधाजनक बनाना था, रेलवे और संचार नेटवर्क के विकास ने अनजाने में राष्ट्रवादी विचारों को फैलाने में मदद की।
- उन्होंने राष्ट्रवादी नेताओं को विशाल भौगोलिक क्षेत्रों में लोगों को संगठित करने और उनसे जुड़ने का साधन प्रदान किया।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस विभिन्न शहरों में वार्षिक अधिवेशन आयोजित करने में सफल रही, जिससे देश भर से व्यापक भागीदारी सुनिश्चित हुई।
राष्ट्रवाद में योगदान देने वाली सामाजिक परिस्थितियाँ
- सामाजिक सुधार आंदोलनों का उदय: राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और स्वामी विवेकानंद जैसे समाज सुधारकों के उदय ने भारतीय समाज को जागृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इन सुधारकों ने शिक्षा, सती प्रथा और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन तथा महिलाओं के उत्थान पर ज़ोर दिया।
- उनके विचारों ने राष्ट्रीय गौरव और एकता की भावना को प्रेरित करना शुरू कर दिया, विशेष रूप से शिक्षित वर्गों के बीच।
- पश्चिमी शिक्षा का प्रसार: यद्यपि ब्रिटिश औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली मुख्यतः औपनिवेशिक हितों की पूर्ति के लिये तैयार की गई थी, फिर भी इसने शिक्षित भारतीय मध्यम वर्ग के उदय में योगदान दिया।
- कई भारतीयों ने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करना शुरू कर दिया, जिससे उनका लोकतंत्र, समानता और स्वशासन जैसे उदार विचारों से परिचय हुआ।
- बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे प्रमुख बुद्धिजीवियों ने भारतीय जनता की आर्थिक तथा राजनीतिक शिकायतों को व्यक्त करने के लिये अपनी पश्चिमी शिक्षा का उपयोग किया।
- प्रेस और साहित्य: इस अवधि के दौरान भारतीय प्रेस के उदय ने राष्ट्रवादी विचारों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- केसरी और द हिंदू जैसे समाचार-पत्र राष्ट्रीय मुद्दों, आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक सुधारों पर चर्चा के लिये महत्त्वपूर्ण मंच बन गए।
निष्कर्ष
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद का विकास आर्थिक शोषण और सामाजिक जागृति के संयोजन से प्रेरित था। वर्ष 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) जैसे संगठनों की स्थापना ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ते असंतोष का प्रत्यक्ष परिणाम थी। इन आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों ने बाद में और अधिक तीव्र राष्ट्रवादी आंदोलनों के लिये आधार तैयार किया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः भारत को स्वतंत्रता मिली।