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Sambhav-2025

  • 25 Jan 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 48: भारत में क्षेत्रीय विकास पर खनिज संसाधनों के असमान वितरण का क्या प्रभाव पड़ता है और इस असमानता को कैसे दूर किया जा सकता है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रस्तावना में भारत में खनिज संसाधनों के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
    • असमान वितरण के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की जाँच कीजिये तथा असमानताओं को दूर करने के उपाय सुझाइये।
    • संतुलित एवं सतत् विकास के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय:

    खनिज संसाधन भारत के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो उद्योगों, रोज़गार और निर्यात में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। हालाँकि उनका असमान भौगोलिक वितरण, जो मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में केंद्रित है, विकास में क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न करता है। समावेशी और सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये इस असमानता को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।

    मुख्य भाग:

    खनिज संसाधनों के असमान वितरण का प्रभाव:

    • आर्थिक संकेंद्रण: खनिज समृद्ध राज्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक निवेश आकर्षित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सकल घरेलू उत्पाद में उच्च योगदान होता है।
      • उदाहरण: ओडिशा (कोयला, लौह अयस्क) और झारखंड (अभ्रक, ताँबा) भारत के खनन सकल घरेलू उत्पाद में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
      • केरल और पंजाब जैसे खनिज की कमी वाले राज्यों में औद्योगिक विकास सीमित है, जिससे उनकी निर्भरता कृषि एवं सेवाओं पर बढ़ रही है।
    • रोज़गार में क्षेत्रीय असमानताएँ: खनिज समृद्ध क्षेत्र खनन और संबंधित क्षेत्रों में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर उत्पन्न करते हैं।
      • इसके विपरीत, खनिज रहित क्षेत्रों में ऐसे अवसरों का अभाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप रोज़गार संरचना असमान होती है और खनिज समृद्ध क्षेत्रों की ओर पलायन होता है।
    • संसाधन संपन्न राज्यों में पर्यावरण क्षरण: तीव्र खनन गतिविधियों से वनों की कटाई, जैवविविधता की हानि और जल प्रदूषण होता है।
      • उदाहरण: झारखंड में कोयला खनन से व्यापक पर्यावरणीय क्षति हुई है, जिससे कृषि और जल संसाधन प्रभावित हुए हैं।
    • सामाजिक चुनौतियाँ: खनन क्षेत्र, जहाँ प्रायः जनजातीय आबादी रहती है, को विस्थापन, आजीविका की हानि और अपर्याप्त पुनर्वास का सामना करना पड़ता है।
      • खनन का लाभ स्थानीय समुदायों तक शायद ही कभी पहुँच पाता है, जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानतायएँ और अशांति उत्पन्न होती है।
      • उदाहरण: छत्तीसगढ़ और झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र शासन तथा विकास संबंधी अंतराल को उजागर करते हैं।
    • अकुशल संसाधन उपयोग: खनिज समृद्ध क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे और उन्नत प्रौद्योगिकियों की कमी से खनन दक्षता तथा स्थिरता कम हो जाती है।
      • उदाहरण: भारत में बॉक्साइट और लौह अयस्क के विशाल भंडार हैं, लेकिन लाभकारीकरण तथा मूल्य संवर्द्धन में कठिनाई हो रही है।

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    असमानता को दूर करने के उपाय:

    • न्यायसंगत राजस्व बँटवारा: खनन राजस्व से स्थानीय समुदायों को लाभ सुनिश्चित करने के लिये पारदर्शी ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) को लागू करना चाहिये।
      • उदाहरण: DMF ने छत्तीसगढ़ और ओडिशा में स्वास्थ्य, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को समर्थन दिया है।
    • क्षेत्रीय विकास पहल: संसाधन की कमी वाले राज्यों में औद्योगिक समूहों को बढ़ावा देना ताकि उनकी अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाई जा सके।
      • इन क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यटन और कृषि प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों का विकास करना चाहिये।
    • तकनीकी उन्नति और बुनियादी ढाँचा: खनिज निष्कर्षण को अनुकूलित करने और पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये आधुनिक खनन प्रौद्योगिकियों एवं रसद में निवेश करन चाहिये।
      • उदाहरण: सतत् खनन विधियों के लिये उपग्रह-आधारित निगरानी का उपयोग करना चाहिये।
    • कौशल विकास और रोज़गार सृजन: कार्यबल की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये खनन और संसाधन की कमी वाले क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना चाहिये।
      • रोज़गार सृजन के लिये अविकसित राज्यों में श्रम-प्रधान उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • पर्यावरणीय विनियमन और पुनर्वास: पर्यावरणीय दृष्टि से सतत् खनन के लिये विनियमनों को मज़बूत बनाना तथा उल्लंघन के लिये कठोर दंड लागू करना।
      • मज़बूत कल्याण कार्यक्रमों के साथ विस्थापित समुदायों का समय पर पुनर्वास और पुनर्स्थापन सुनिश्चित करना।
    • विकेंद्रीकृत संसाधन शासन: स्थानीय शासन निकायों को संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन करने तथा निर्णय लेने में सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये सशक्त बनाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    असमान संसाधन वितरण की चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो समान विकास, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा दे। क्षेत्रीय शक्तियों का लाभ उठाकर और समावेशी नीतियों को लागू करके, भारत समग्र तथा सतत् विकास प्राप्त कर सकता है, असमानताओं को कम कर सकता है एवं राष्ट्रीय प्रगति को बढ़ावा दे सकता है।

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