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Sambhav-2025

  • 06 Jan 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस-31:महाद्वीपीय और महासागरीय भूपर्पटी की भू-वैज्ञानिक विशेषताएँ खनिज संसाधनों के वितरण को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
     

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

      महाद्वीपीय और महासागरीय क्रस्ट के बीच अंतर का परिचय दीजिये। खनिज संसाधनों के प्रकार और वितरण पर इन अंतरों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। उचित निष्कर्ष निकालिये।
    • महाद्वीपीय और महासागरीय क्रस्ट के बीच अंतर का परिचय दीजिये।
    • खनिज संसाधनों के प्रकार और वितरण पर इन अंतरों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय:

    पृथ्वी का स्थलमंडल महाद्वीपीय और महासागरीय परतों में विभाजित है, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग भू-वैज्ञानिक विशेषताएँ हैं जो खनिज संसाधनों के प्रकार, निर्माण और वितरण को नियंत्रित करती हैं। ये अंतर उनकी संरचना, घनत्व, मोटाई और टेक्टोनिक प्रक्रियाओं के कारण होते हैं।

    मुख्य भाग:

    महाद्वीपीय और महासागरीय क्रस्ट की भू-वैज्ञानिक विशेषताएँ:

    • महाद्वीपीय भू-पर्पटी: महाद्वीपीय भू-पर्पटी, जो सिलिका और एल्युमीनियम युक्त ग्रेनाइट चट्टानों ("सियाल") से बनी है, समुद्री भू-पर्पटी की तुलना में अधिक मोटी (30-70 किमी.) तथा कम सघन है, जो विशाल भू-भागों को सहारा देती है।
      • इसमें स्थिर क्रेटन (जैसे- कैनेडियन शील्ड) और वलित पर्वत बेल्ट (जैसे- हिमालय) हैं, जिनमें बहुमूल्य खनिज मौजूद हैं।
      • अवसादी बेसिन (जैसे- ग्रेट प्लेन्स) जीवाश्म ईंधन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जबकि क्रेटोनिक क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार जैसे सोना (जैसे- विटवाटरसैंड) और लौह अयस्क (जैसे- छोटा नागपुर) पाए जाते हैं।
    • महासागरीय भू-पर्पटी: महासागरीय भू-पर्पटी, जोकि अधिकांशतः बेसाल्ट से बनी है तथा मैग्नीशियम और लौह ("सिमा") से समृद्ध है, महाद्वीपीय भू-पर्पटी की तुलना में पतली (5-10 किमी.) एवं सघन है, जिसके कारण यह अभिसारी सीमाओं पर इसके नीचे धँस जाती है।
      • यह लगातार मध्य महासागरीय कटकों (जैसे- मध्य अटलांटिक कटक) पर निर्मित होता है और अधःपतन क्षेत्रों (जैसे- मारियाना ट्रेंच) पर नष्ट होता है।
      • महासागरीय भू-पर्पटी में अद्वितीय खनिज भंडार हैं, जैसे मैंगनीज़, कोबाल्ट और निकल के साथ पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स तथा ताँबा, जस्ता एवं सोना जैसी धातुओं के साथ हाइड्रोथर्मल सल्फाइड भंडार।

    खनिज संसाधन वितरण पर प्रभाव:

    • महाद्वीपीय क्रस्ट:
      • धात्विक खनिज:
        • पर्वत निर्माण प्रक्रियाओं (जैसे- एंडीज़, रॉकीज़) के दौरान निर्मित पर्वतजनित पट्टियों में लौह, सोना और ताँबे के प्रचुर भंडार पाए जाते हैं।
        • क्रेटोनिक क्षेत्रों में प्राचीन खनिज संरचनाएँ मौजूद हैं, जैसे- भारत के छोटा नागपुर पठार में लौह अयस्क और दक्षिण अफ्रीका के विटवाटरसैंड बेसिन में सोना।
      • गैर-धात्विक खनिज:
        • अवसादी बेसिनों से चूना पत्थर, जिप्सम और फॉस्फेट प्राप्त होते हैं जो निर्माण और उर्वरकों के लिये आवश्यक हैं।
        • कोयला और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधन लाखों वर्षों से कार्बनिक पदार्थों के जमाव से बने बेसिनों में केंद्रित हैं (उदाहरण के लिये, भारत में गोंडवाना कोयला क्षेत्र )।
      • बहुमूल्य पत्थर:
        • स्थिर क्रेटन में किम्बरलाइट पाइप पाए जाते हैं, जो हीरे का एक प्रमुख स्रोत है (उदाहरण के लिये, दक्षिण अफ्रीका में किम्बरली खदानें)।
    • महासागरीय क्रस्ट:
      • बहुधात्विक पिंड:
        • अथाह मैदानों पर पाए जाने वाले ये पिंड मैंगनीज़, कोबाल्ट और निकल से समृद्ध होते हैं (उदाहरण के लिये, प्रशांत महासागर में क्लेरियन-क्लिपर्टन क्षेत्र)।
      • हाइड्रोथर्मल सल्फाइड:
        • मध्य-महासागरीय कटकों के पास निर्मित ये निक्षेप ताँबे, जस्ता और सोने से समृद्ध हैं (उदाहरण के लिये, मध्य-अटलांटिक कटक)।
      • तेल और गैस भंडार:
        • महाद्वीपीय सीमांत क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण हाइड्रोकार्बन भंडार मौजूद हैं (जैसे- मैक्सिको की खाड़ी और कृष्णा-गोदावरी बेसिन)।
      • दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE):
        • जापान के EEZ जैसे क्षेत्रों में गहरे समुद्र की तलछट में REE मौजूद हैं, जो उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

    निष्कर्ष:

    भू-पर्पटी की भू-वैज्ञानिक विशेषताएँ मुख्य रूप से खनिज संसाधनों के स्थानिक वितरण को निर्धारित करती हैं। जबकि महाद्वीपीय अधःस्थल विविध स्थलीय संसाधन प्रदान करती है, महासागरीय अधःस्थल विशेष रूप से उच्च मांग वाले खनिजों के लिये अप्रयुक्त अवसर प्रस्तुत करती है। इन संसाधनों का ज़िम्मेदारी से दोहन करने, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को सुनिश्चित करने के लिये तकनीकी नवाचार तथा स्थायी प्रथाओं को मिलाकर एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

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