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Sambhav-2025

  • 07 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस- 6: भारत में भौगोलिक संकेतों (Geographical Indications) के लिये कानूनी और प्रक्रियात्मक ढाँचे का विश्लेषण कर पारंपरिक ज्ञान और शिल्प की सुरक्षा में इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भौगोलिक संकेत (जीआई) और उनके महत्त्व को परिभाषित कीजिये।
    • भारत में भौगोलिक संकेतकों के लिये कानूनी और प्रक्रियात्मक ढाँचे पर चर्चा कीजिये।
    • पारंपरिक ज्ञान और शिल्प की सुरक्षा में जीआई संरक्षण ढाँचे की प्रभावशीलता का आकलन करना।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधी पहलुओं (टीआरआईपीएस) के अनुच्छेद 22 (1) में जीआई को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “ऐसे संकेत जो किसी वस्तु को किसी सदस्य के क्षेत्र, या उस क्षेत्र में किसी क्षेत्र या इलाके में उत्पन्न होने के रूप में पहचानते हैं, जहाँ वस्तु की दी गई गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषता अनिवार्य रूप से उसके भौगोलिक मूल के कारण होती है।”

    मुख्य भाग:

    कानूनी ढाँचा और शासन: 

    • जीआई का प्रबंधन विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के ट्रिप्स समझौते के तहत किया जाता है।
    • वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 का उद्देश्य भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण एवं बेहतर संरक्षण का प्रावधान करना है।
    • पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1(2) और 10 में औद्योगिक संपत्ति एवं भौगोलिक संकेतों की सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है।

    जीआई संरक्षण ढाँचे की प्रभावशीलता: 

    सकारात्मक परिणाम:

    • पारंपरिक शिल्प कौशल का संरक्षण: जीआई (भौगोलिक संकेत) पारंपरिक उत्पादों और शिल्प की विशिष्टता को संरक्षित करने में सहायक होते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि पीढ़ियों से प्राप्त ज्ञान एवं तकनीक सुरक्षित और संरक्षित रहें।
      • उदाहरण के लिये, मैसूर सिल्क, अपने जीआई टैग के साथ, यह सुनिश्चित करता है कि मैसूर के कारीगरों की पारंपरिक बुनाई प्रक्रिया संरक्षित रहे और इसे गैर-स्थानीय उत्पादकों द्वारा शोषित न किया जाए।
    • स्थानीय समुदायों के लिये आर्थिक लाभ: जीआई यह सुनिश्चित करके स्थानीय उत्पादकों को आर्थिक बढ़ावा देते हैं कि उनके उत्पादों को बाज़ार में प्रीमियम मूल्य मिले। 
      • इसका एक अच्छा उदाहरण दार्जिलिंग चाय है, जहाँ जीआई पंजीकरण ने न केवल इसकी प्रामाणिकता को सुरक्षित रखा है, बल्कि स्थानीय किसानों के लिये बेहतर बाज़ार पहुँच और उचित लाभ भी सुनिश्चित किया है।
    • पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण: जीआई उत्पादों से जुड़े स्वदेशी ज्ञान को संरक्षित करने के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है। 
      • उदाहरण के लिये, कश्मीरी केसर का जीआई टैग उस क्षेत्र की विशिष्ट पारंपरिक कृषि तकनीकों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, साथ ही उत्पाद और उसकी खेती से जुड़े ज्ञान दोनों की रक्षा करता है।

    चिंताएँ और सीमाएँ: 

    • जटिल पंजीकरण प्रक्रिया: आसान अनुपालन के लिये पंजीकरण फॉर्म और आवेदन प्रसंस्करण समय को सरल बनाने की आवश्यकता है।
      • भारत में वर्तमान आवेदन स्वीकृति अनुपात केवल 46% है।
    • उत्पादकों की परिभाषा में अस्पष्टता: जीआई अधिनियम, 1999 में "उत्पादकों" को परिभाषित करने में स्पष्टता की कमी के कारण मध्यस्थों की भागीदारी बढ़ जाती है।
      • बिचौलियों को जीआई से लाभ मिलता है, जिससे वास्तविक उत्पादकों को मिलने वाला लाभ समाप्त हो जाता है।
      • आईटीसी द्वारा 'दार्जिलिंग' शब्द के प्रयोग को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है, जिसके कारण उनके पंजीकृत भौगोलिक संकेत (जीआई) का उल्लंघन हुआ है।
    • जालसाजी: कुछ जीआई उत्पादों की वैश्विक मांग के कारण जालसाजी और दुरुपयोग बढ़ गए हैं, जिससे असली उत्पादकों की आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
      • भारत और पाकिस्तान के बीच बासमती चावल के भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग को लेकर विवाद चल रहा है।
    • प्रवर्तन संबंधी मुद्दे: जीआई संरक्षण कानूनों का प्रभावी प्रवर्तन एक चुनौती बना हुआ है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ स्थानीय प्राधिकारियों के पास दुरुपयोग की निगरानी और रोकथाम के लिये संसाधनों का अभाव है।
      • मैसूर सिल्क को उसी नाम से बेचे जा रहे अपंजीकृत उत्पादों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

    निष्कर्ष:

    उत्पादकों को जीआई पंजीकरण और संरक्षण के लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिये व्यापक ज़मीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। जीआई के दुरुपयोग को रोकने के लिये एक मज़बूत प्रवर्तन तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये, जिसमें जालसाज़ों के लिये सख्त दंड का प्रावधान होना चाहिये। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) योजना जैसी पहलों के साथ जीआई को एकीकृत करने से इन उत्पादों को बढ़ावा मिल सकता है और उनकी बाज़ार पहुँच का विस्तार हो सकता है।

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