05 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में श्रम सुधारों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- चारों श्रम संहिताओं के उद्देश्यों पर चर्चा कीजिये।
- श्रम अधिकारों और आर्थिक विकास पर उनके संभावित प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत में चार नई श्रम संहिताओं की शुरुआत - वेतन संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता - देश के श्रम कानून ढाँचे में एक महत्त्वपूर्ण सुधार का प्रतिनिधित्व करती है। इन सुधारों का उद्देश्य देश के जटिल और पुराने श्रम कानूनों को सरल और समेकित करना, काम करने की स्थितियों में सुधार करना, श्रम अधिकारों को बढ़ाना एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
मुख्य भाग:
चार श्रम संहिताओं के उद्देश्य:
- वेतन संहिता, 2019
- इसका उद्देश्य सभी श्रमिकों के लिये न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करना तथा इसका कवरेज सार्वभौमिक बनाना है।
- वेतन और बोनस से संबंधित चार पूर्ववर्ती अधिनियमों को समेकित किया गया।
- असंगठित श्रमिकों के लिये आय का समान वितरण सुनिश्चित करता है।
- औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
- इसका उद्देश्य औद्योगिक संबंधों को सुव्यवस्थित करना तथा विवाद समाधान तंत्र को सरल बनाकर व्यापार को आसान बनाना है।
- श्रमिक-प्रबंधन संवाद, बेहतर औद्योगिक सद्भाव और हड़तालों एवं तालाबंदी नियमों के सरलीकरण को सुविधाजनक बनाता है।
- इसका लक्ष्य व्यवसायों में भर्ती और छँटनी संबंधी प्रतिबंधों को कम करके रोज़गार के अवसरों में वृद्धि करना है।
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
- गिग श्रमिकों, प्लेटफॉर्म श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र तक सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार किया गया है।
- भविष्य निधि, पेंशन और स्वास्थ्य बीमा जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच प्रदान करके कर्मचारी कल्याण को बढ़ाता है।
- कार्यबल के कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा करके समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020
- इसका उद्देश्य खतरनाक क्षेत्रों में बेहतर कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करके श्रमिक सुरक्षा को बढ़ाना है।
- श्रमिकों के लिये व्यापक कवरेज सुनिश्चित करना, कार्य अवधि को संतुलित करना और कार्य परिस्थितियों में सुधार करना।
श्रम अधिकारों पर प्रभाव
- श्रम अधिकारों पर सकारात्मक प्रभाव
- न्यूनतम वेतन और वेतन समानता: वेतन संहिता न्यूनतम वेतन की गारंटी देकर कृषि और निर्माण जैसे क्षेत्रों में श्रमिक शोषण को रोकने में सहायक है, जिससे सबसे कमज़ोर श्रमिकों को भी उचित पारिश्रमिक मिलता है।
- सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज: सामाजिक सुरक्षा संहिता का लक्ष्य गिग श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों सहित कार्यबल के व्यापक वर्ग को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करके उन्हें एक मज़बूत सुरक्षा प्रदान करना है।
- बेहतर कार्य स्थितियाँ: व्यावसायिक सुरक्षा संहिता कार्यस्थलों पर स्वास्थ्य और सुरक्षा के अधिकार को बढ़ाती है, विशेष रूप से उच्च व्यावसायिक खतरों वाले उद्योगों में, जैसे- निर्माण, खनन और विनिर्माण।
- बेहतर विवाद समाधान: औद्योगिक संबंध संहिता विवाद समाधान को सुव्यवस्थित करती है, जिससे श्रमिकों के लिये शिकायतों का समाधान करना आसान हो जाता है, जिससे श्रमिक-प्रबंधन संबंध बेहतर होते हैं।
- श्रम अधिकारों के लिये चुनौतियाँ
- अस्पष्ट कार्यान्वयन: यद्यपि ये संहिताएँ कुछ वर्ष पहले ही लागू कर दी गई थीं, लेकिन राज्य स्तरीय विनियमों को संरेखित करने में कठिनाइयों और श्रमिक संघों के विरोध के कारण उनके पूर्ण कार्यान्वयन में विलंब हुआ है।
- श्रमिकों की सुरक्षा में संभावित कमी: आलोचकों का मानना है कि नए कानूनों से श्रमिक सुरक्षा कमज़ोर हो सकती है, खासकर छोटी फर्मों में, क्योंकि इनमें नियुक्ति और बर्खास्तगी को सरल बनाया गया है तथा 300 से कम श्रमिकों वाले व्यवसायों पर श्रम कानूनों की सख्ती अपेक्षाकृत कम है।
- गिग श्रमिक अधिकारों पर स्पष्टता का अभाव: जबकि सामाजिक सुरक्षा संहिता में गिग श्रमिक को शामिल किया गया है, पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल जैसे लाभों का कार्यान्वयन अस्पष्ट बना हुआ है।
आर्थिक विकास पर प्रभाव
- आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव:
- व्यापार करने में सुगमता: विश्व बैंक की वर्ष 2020 की व्यापार सुगमता रिपोर्ट में भारत को 63वाँ स्थान प्राप्त हुआ।
- इन सुधारों से भारत में कंपनियों के लिये, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में, परिचालन सुगम हो जाएगा, जिससे भारत की रैंकिंग में और सुधार आएगा।
- निवेश का आकर्षण: अनुपालन को सरल बनाकर और श्रम-संबंधी विनियामक बोझ को कम करके, भारत द्वारा अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करने की संभावना है।
- रोज़गार को बढ़ावा देना: वेतन और औद्योगिक संबंध संहिता व्यवसायों को अपने कार्यबल का विस्तार करने में अधिक आश्वस्त बनाकर रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकती है।
- उदाहरण के लिये, खुदरा क्षेत्र में इसी प्रकार के सुधार लागू किये जाने के बाद अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट में अनुबंध श्रमिकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
- आर्थिक विकास की चुनौतियाँ:
- सामाजिक सुरक्षा का कार्यान्वयन: यद्यपि सामाजिक सुरक्षा संहिता का उद्देश्य गिग और असंगठित श्रमिकों को कवर करना है, लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों पर नज़र रखने एवं उन्हें लाभ प्रदान करने के लिये बुनियादी ढाँचा और प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराना चुनौती बनी हुई है।
- अनौपचारिक क्षेत्र में संभावित व्यवधान: अनौपचारिक क्षेत्र भारत के 90% से अधिक कार्यबल को रोजज़गार देता है। इस क्षेत्र में इन कानूनों के लागू होने से अनुपालन में जटिलता और श्रमिकों में जागरूकता की कमी के कारण प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है, जिससे इन सुधारों की प्रभावशीलता सीमित हो सकती है।
निष्कर्ष:
चार श्रम संहिताएँ भारत के श्रम विनियमन में एक परिवर्तनकारी बदलाव का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसमें अधिक न्यायसंगत श्रम अधिकार लाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की क्षमता है। हालाँकि उनकी प्रभावशीलता सफल कार्यान्वयन, निगरानी और यह सुनिश्चित करने पर निर्भर करेगी कि इन सुधारों का लाभ समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से कमज़ोर समूहों तक पहुँचे।