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Sambhav-2025

  • 15 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 66: वित्त आयोग संघीय ढाँचे में वित्तीय न्याय के लिये संवैधानिक सुरक्षा है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में वित्त आयोग की भूमिका का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • वित्तीय न्याय के लिये संवैधानिक सुरक्षा के रूप में वित्त आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। 
    • वित्त आयोग के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
    • अंत में, वित्त आयोग की भूमिका बढ़ाने के लिये सुधार सुझाइये।

    परिचय: 

    संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित वित्त आयोग एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक निकाय है, जिसका मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करना है। यह आयोग भारत के संघीय ढाँचे में एक अहम भूमिका निभाता है।

    मुख्य भाग: 

    वित्तीय न्याय के लिये संवैधानिक सुरक्षा के रूप में वित्त आयोग की भूमिका:  

    • कर राजस्व साझाकरण
      • वित्त आयोग यह सिफारिश करता है कि केंद्र द्वारा एकत्रित करों की शुद्ध आय को केंद्र और राज्यों के बीच किस प्रकार विभाजित किया जाए।
      • उचित कर राजस्व वितरण और राजकोषीय हस्तांतरण की सिफारिश करके, यह संघीय ढाँचे में स्वायत्तता और एकता दोनों को बनाए रखने में मदद करता है।
        • उदाहरण के लिये, 14वें वित्त आयोग (2015-2020) में, इसने केंद्रीय कर पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी, जिससे राजकोषीय आवंटन में महत्त्वपूर्ण अंतर आया। 
    • समान संसाधन आवंटन सुनिश्चित करना:
      • वित्त आयोग का एक प्रमुख दायित्व संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करके  क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना है।
      • 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई थी कि बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे कम विकसित राज्यों को अधिक राजकोषीय हस्तांतरण प्राप्त हो। 
      • इससे इन राज्यों को अपनी विशिष्ट विकासात्मक चुनौतियों का समाधान करने में सहायता मिली है।
    • सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना:
      • वित्त आयोग सहकारी संघवाद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहाँ यह संघ और राज्यों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
      • 15वें वित्त आयोग (2020-2025) की सिफारिशों में राज्य स्तरीय राजकोषीय ज़रूरतों को जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और जनसंख्या नियंत्रण जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करके सहकारी संघवाद पर ज़ोर दिया गया
    • अविकसित राज्यों की आवश्यकताओं को संबोधित करना:
      • वित्त आयोग सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे राज्यों की विशेष आवश्यकताओं पर भी ध्यान देता है।
      • उदाहरण के रूप में, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों को उनकी भौगोलिक, आर्थिक तथा सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के कारण पारंपरिक रूप से अनुदान सहायता में अपेक्षाकृत अधिक हिस्सा मिलता रहा है।

    वित्त आयोग के समक्ष चुनौतियाँ

    • राजनीतिक हस्तक्षेप
      • वित्त आयोग की सिफारिशें परामर्शात्मक होती हैं और प्रायः राजनीतिक प्रतिरोध का सामना करती हैं, विशेषकर तब जब वे केंद्र या कुछ राज्यों में सत्तारूढ़ सरकार की प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं होती हैं। 
    • राज्य की आवश्यकताओं की जटिलता
      • कुछ राज्यों को बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये अधिक सहायता की आवश्यकता हो सकती है, जबकि अन्य को सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु वित्तीय समर्थन चाहिये। विविध आवश्यकताओं के कारण सभी के लिये एक समान नीति बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है।
      • दक्षिणी राज्य अक्सर यह तर्क देते हैं कि वे करों में अधिक योगदान देने के बावजूद उत्तरी राज्यों की तुलना में कम धनराशि प्राप्त करते हैं और वे इस असमानता का कारण अपनी अपेक्षाकृत कम जनसंख्या को मानते हैं।
    • सीमित प्रवर्तन शक्ति
      • वित्त आयोग केवल सिफारिशें कर सकता है, जिसका अर्थ यह है कि उसके पास अपने सुझावों के कार्यान्वयन को लागू करने का कोई प्रत्यक्ष अधिकार नहीं है। 
      • इसकी सिफारिशों का प्रभावी कार्यान्वयन सत्तारूढ़ सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।
    • आर्थिक चुनौतियाँ
      • बढ़ते राजकोषीय घाटे और राष्ट्रीय आर्थिक संकटों, जैसे कि कोविड-19 महामारी, ने आयोग के लिये राज्यों की संसाधन आवश्यकताओं तथा संघ के राजकोषीय स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाना मुश्किल बना दिया है।
      • सहायता अनुदान: न्यायसंगत वितरण: यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक विकास के विभिन्न स्तरों वाले राज्यों की राजकोषीय आवश्यकताओं की निष्पक्ष रूप से पूर्ति हो।

    निष्कर्ष:

    वित्त आयोग भारत के संघीय ढाँचे के भीतर वित्तीय न्याय की रक्षा करने में एक अपरिहार्य भूमिका निभाता है। इसकी स्वतंत्रता को मज़बूत करना, इसकी अनुकूलनशीलता को बढ़ाना और पारदर्शिता में सुधार करना वित्त आयोग को भारत के राजकोषीय और विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक अधिक प्रभावी उपकरण बना देगा।

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