Sambhav-2025

दिवस- 51: अनुच्छेद 15 के अपवाद समानता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन कैसे स्थापित करते हैं? साथ ही, भारत में सकारात्मक कार्रवाई नीतियों को सशक्त बनाने में अनुच्छेद 15 की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

29 Jan 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • अनुच्छेद 15 और इसके समानता एवं सामाजिक न्याय के दोहरे लक्ष्यों का परिचय दीजिये।
  • अनुच्छेद 15 के अंतर्गत अपवादों तथा असमानताओं को दूर करने में उनकी भूमिका की व्याख्या कीजिये।
  • सकारात्मक नीतियों को सक्षम बनाने में अनुच्छेद 15 की भूमिका को उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या मूलवंश के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, जिससे सभी के लिये समानता सुनिश्चित होती है। हालाँकि संविधान में यह भी उपबंध किया गया है कि सामाजिक न्याय और वास्तविक समानता प्राप्त करने के लिये विशेष उपाय किये जा सकते हैं। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य स्त्रियों, बच्चों और पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की उन्नति के लिये विशेष उपबंध कर सकता है। अतः अनुच्छेद 15 अपवाद प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने के लिये सकारात्मक नीतियों के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।

मुख्य भाग:

  • समानता को बढ़ावा देने में अनुच्छेद 15 का महत्त्व:
    • अनुच्छेद 15 सार्वजनिक स्थानों और अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित करते हुए भेदभाव को अवैध घोषित कर औपचारिक समानता सुनिश्चित करता है।
    • इसके उपबंध राज्य को प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने और समाज में वास्तविक समानता को बढ़ावा देने की अनुमति देते हैं।
  • अनुच्छेद 15 के अंतर्गत अपवाद और सामाजिक न्याय में उनकी भूमिका:
    • अनुच्छेद 15(3): महिलाओं और बच्चों के लिये प्रावधान:
      • यह खंड राज्य को महिलाओं और बच्चों के संरक्षण एवं कल्याण के लिये विधि बनाने का अधिकार देता है।
      • उदाहरण: मातृत्व लाभ अधिनियम महिलाओं के लिये सवेतन मातृत्व अवकाश और कार्यस्थल पर समानता सुनिश्चित करता है।
      • पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से स्थानीय शासन में महिलाओं के लिये आरक्षण से उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ता है।
    • अनुच्छेद 15(4): सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये प्रावधान:
      • प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के माध्यम से प्रस्तुत इस प्रावधान का उद्देश्य वंचित समूहों का उत्थान करना है।
      • उदाहरण: शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये आरक्षण।
    • अनुच्छेद 15(5): निजी शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण:
      • 93वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2005 के माध्यम से यह गैर-सहायता प्राप्त निजी संस्थानों को भी आरक्षण प्रदान करता है।
      • उदाहरण: प्रमुख निजी विश्वविद्यालयों में हाशिये पर पड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
    • अनुच्छेद 15(6): आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये आरक्षण:
      • 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से प्रस्तुत किया गया यह खंड आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये 10% सीटें आरक्षित करता है।
      • EWS आरक्षण आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को बिना जाति या धर्म के भेदभाव के लाभ प्रदान करता है।
  • सकारात्मक नीतियों को सक्षम बनाने में अनुच्छेद 15 की भूमिका:
    • ऐतिहासिक भेदभाव को कम करना:
      • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण ने सदियों के उत्पीड़न से उत्पन्न शैक्षिक तथा आर्थिक असमानताओं को पाटने में मदद की है।
      • उदाहरण: शीर्ष संस्थानों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के नामांकन में वृद्धि सकारात्मक आरक्षण नीतियों का परिणाम है।
    • शैक्षिक अवसरों में वृद्धि:
      • अनुच्छेद 15(5) यह सुनिश्चित करता है कि गैर-सहायता प्राप्त निजी संस्थान भी समावेशी शिक्षा में योगदान दें।
    • आर्थिक समावेशन:
      • EWS आरक्षण नीति सभी समुदायों में आर्थिक असमानताओं को कम करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
      • जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022) में न्यायिक समर्थन ने इसकी संवैधानिकता और आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
    • न्यायिक सत्यापन और सुरक्षा:
      • इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की वैधता को स्वीकार किया और अत्यधिक कोटा रोकने हेतु 50% की अधिकतम सीमा निर्धारित करने पर ज़ोर दिया।
      • न्यायालयों ने सकारात्मक कार्रवाई नीतियों के दुरुपयोग से बचने के लिये समय-समय पर समीक्षा की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है।
  • अनुच्छेद 15 के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ:
    • आरक्षण पर अत्यधिक निर्भरता: आलोचकों का मानना है कि सकारात्मक कार्रवाई के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार में व्यापक प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है।
    • विपरीत भेदभाव की धारणा: गैर-लाभार्थी अक्सर सकारात्मक नीतियों को अनुचित मानते हैं, जिससे योग्यता पर बहस छिड़ जाती है
    • कार्यान्वयन अंतराल: सकारात्मक नीतियों के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार और अकुशलता कभी-कभी उनके प्रभाव को कमज़ोर कर देती हैं।

निष्कर्ष:

अनुच्छेद 15 विधि के समक्ष समानता को सामाजिक समानता के साथ प्रभावी रूप से जोड़ता है, हाशिये पर पड़े समूहों के लिये न्याय सुनिश्चित करता है। इसके प्रावधान सकारात्मक नीतियों को सशक्त बनाते हैं, जो ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करते हैं और समावेशी विकास को बढ़ावा देते हैं। हालाँकि इसकी क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिये, इन उपायों को ऐसे सुधारों द्वारा पूरक होना चाहिये जो सभी के लिये अवसर सुनिश्चित करें और एक सच्चे समतावादी तथा न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा दें।