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15 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 39: भारत में मानसून परिसंचरण पर एल नीनो और ला नीना परिघटनाओं के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- एल नीनो और ला नीना को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
- भारतीय मानसून पर इन परिघटनाओं के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
एल नीनो और ला नीना, एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) से जुड़ी जलवायु संबंधी घटनाएँ हैं, जो प्रशांत महासागर में तापमान संबंधी विसंगतियों की विशेषता है। ये घटनाएँ भारत के मानसून परिसंचरण को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं।
मुख्य भाग:
मानसून पर अल नीनो का प्रभाव:
- एल नीनो एक जलवायु प्रतिरूप है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से गर्म होने को दर्शाता है।
- यह एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) नामक एक बड़ी घटना का “उष्म चरण” है।
- एल नीनो में पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में पेरू के तट पर उष्म धाराओं के उभरने के साथ समुद्री और वायुमंडलीय घटनाएँ शामिल हैं, जो व्यापारिक पवनें एवं वॉकर परिसंचरण को कमज़ोर करती हैं। इससे भारत तक पहुँचने वाली आद्र पवनें कम हो जाती हैं।
- भारत में, अल नीनो आम तौर पर मानसून को कमज़ोर करता है, जिसके परिणामस्वरूप औसत से ज़्यादा शुष्क परिस्थितियाँ और कम वर्षा होती है। इससे सूखा, पानी की कमी और कृषि को नुकसान हो सकता है।
- वर्ष 2015 के अल नीनो के कारण मानसून में 14% की कमी हुई, जिससे व्यापक कृषि संकट उत्पन्न हो गया।
मानसून पर ला नीना का प्रभाव:
- ला नीना, ENSO का “शीत चरण”, एक प्रतिरूप है जो उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत क्षेत्र के असामान्य रूप से ठंडा होने का वर्णन करता है।
- ला नीना चरण में, व्यापारिक पवनें प्रबल हो जाती हैं, जिससे पानी की बड़ी मात्रा पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र की ओर बढ़ जाती है, जिससे पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में तापमान ठंडा हो जाता है।
- इसके परिणामस्वरूप सामान्य से अधिक वर्षा होती है, जिससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आ सकती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में जलाशयों और कृषि को लाभ हो सकता है।
- सबसे हालिया ला नीना चरण वर्ष 2020 से 2023 तक चला।
निष्कर्ष:
भारत में मानसून की उतार-चढ़ाव की भविष्यवाणी करने के लिये एल नीनो और ला नीना घटनाओं की निगरानी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह आपदा प्रबंधन, कृषि योजना और जल संसाधन प्रबंधन में सहायता प्रदान करता है, जिससे जलवायु-जनित समस्याओं का सामना करने के लिये बेहतर अनुकूलता सुनिश्चित की जा सकती है।