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31 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस- 53: "राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) भारतीय संविधान की नवीन विशेषताएँ हैं।" नीति निर्माण पर उनके प्रभाव का उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) को परिभाषित करते हुए तथा भारतीय संविधान में उनकी विशिष्ट प्रकृति की व्याख्या करते हुए परिचय दीजिये।
- समझाइये कि किस प्रकार DPSP संविधान की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं।
- प्रासंगिक उदाहरणों के साथ नीति निर्माण पर उनके प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारतीय संविधान के भाग IV में निहित राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (DPSP) राज्य के लिये सामाजिक-आर्थिक और शासन संबंधी दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। आयरिश संविधान से प्रेरित इन सिद्धांतों का उद्देश्य नीति निर्माण का मार्गदर्शन करके कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। यद्यपि वे न्यायोचित नहीं हैं, फिर भी वे देश के शासन में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं और उन्होंने भारत के विधायी एवं नीति परिदृश्य को महत्त्वपूर्ण रूप से आकार दिया है।
मुख्य भाग:
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत संविधान की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं:
- अधिकारों और कर्त्तव्यों का मिश्रण: जहाँ मौलिक अधिकार (भाग III) व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित करते हैं वहीं DPSP संतुलन बनाते हुए सामूहिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- सामाजिक-आर्थिक न्याय का साधन: राजनीतिक अधिकारों पर ज़ोर देने वाले कई संविधानों के विपरीत, भारतीय संविधान सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को शासन में विशिष्ट रूप से एकीकृत करता है।
- शासन में नैतिक बल: न्यायालयों में गैर-प्रवर्तनीय होने के बावजूद, DPSP मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में कार्य करते हैं जो शासन और नीति निर्माण को प्रभावित करते हैं।
- प्रकृति में गतिशील: संसद ने उभरती सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों (जैसे, 42 वें और 86 वें संशोधन ) से निपटने के लिये समय-समय पर नए DPSP को शामिल किया है।
नीति निर्माण पर राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का प्रभाव:
- सामाजिक और आर्थिक न्याय: अनुच्छेद 46 के तहत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 बनाया गया, जिससे हाशिये पर पड़े समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित हुई।
- अनुच्छेद 39(डी) ने समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 को प्रभावित किया, जो लैंगिक आधारित वेतन असमानता को संबोधित करता है।
- भूमि सुधार और धन पुनर्वितरण: अनुच्छेद 39(बी) और 39(सी) के तहत भूमि हदबंदी अधिनियम और ज़मींदारी उन्मूलन को बढ़ावा दिया गया, जिससे संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित हुआ।
- केशवानंद भारती केस (1973) ने DPSP पर आधारित भूमि सुधार कानूनों को बरकरार रखा।
- श्रम और श्रमिकों के अधिकार: अनुच्छेद 43 ने न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 और मनरेगा, 2005 को प्रभावित किया, जिससे मज़दूरी रोज़गार की गारंटी मिली।
- अनुच्छेद 41 ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसे कौशल विकास कार्यक्रमों का मार्गदर्शन किया।
- स्वास्थ्य और शिक्षा: अनुच्छेद 47 के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 बनाया गया, जिससे मध्याह्न भोजन जैसी योजनाओं के माध्यम से पोषण में सुधार हुआ।
- अनुच्छेद 45 के परिणामस्वरूप RTI अधिनियम, 2009 बना, जिसने शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया।
- पर्यावरण संरक्षण: अनुच्छेद 48ए के तहत पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 पारित किया गया, जिससे पर्यावरण संबंधी नियमों को मज़बूती मिली।
- एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1987) मामले में न्यायिक सक्रियता ने DPSP-आधारित पर्यावरण नीतियों को सुदृढ़ किया।
- विकेंद्रीकरण और स्थानीय शासन: अनुच्छेद 40 के परिणामस्वरूप 73वें और 74वें संशोधन (1992) के तहत पंचायती राज संस्थाओं तथा शहरी स्थानीय निकायों की स्थापना की गई।
- इससे ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र और विकेंद्रित शासन संभव हुआ।
- विदेश नीति प्रभाव: अनुच्छेद 51 अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देता है, जो भारत के संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन और जलवायु परिवर्तन कूटनीति में परिलक्षित होता है।
- परमाणु निरस्त्रीकरण और वैश्विक सहयोग पर भारत का रुख इस निर्देश के अनुरूप है।
निष्कर्ष
राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (DPSP), हालाँकि न्यायोचित नहीं हैं, लेकिन भारत के कल्याण उद्देश्यों का मार्गदर्शन करते हैं। केरल शिक्षा विधेयक (1957) में, सर्वोच्च न्यायालय ने सामंजस्यपूर्ण निर्माण के सिद्धांत पर ज़ोर दिया, जिसमें कहा गया कि मौलिक अधिकारों और DPSP के बीच संघर्षों को दोनों को संतुलित करके हल किया जाना चाहिये। DPSP के साथ नीतियों को संरेखित करना समावेशी विकास और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करता है।