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21 Feb 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस- 71: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजनाएँ कल्याणकारी कार्यक्रमों की दक्षता और प्रभावशीलता को किस सीमा तक सुधारने में सक्षम रही हैं? उनके प्रमुख लाभों और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
- DBT के लाभ और सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
- कुछ आँकड़ों और तथ्यों के साथ बिंदुओं को पुष्ट कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
वर्ष 2013 में शुरू की गई प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली का उद्देश्य लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे सब्सिडी हस्तांतरित करके कल्याणकारी वितरण में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है। इसने लीकेज को काफी हद तक कम किया है और लक्ष्यीकरण में सुधार किया है, लेकिन बहिष्करण त्रुटियाँ, बैंकिंग अवसंरचना अंतराल एवं डिजिटल विभाजन जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
मुख्य भाग:
कल्याण कार्यक्रम के परिणामों में सुधार लाने में DBT के लाभ:
- बिचौलियों और लीकेज को समाप्त करता है: विभिन्न योजनाओं से अयोग्य लाभार्थियों को हटाने की सरकार की पहल से वित्त वर्ष 18 और वित्त वर्ष 24 के बीच लगभग 3.35 लाख करोड़ रुपए की बचत हुई।
- पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि: DBT के माध्यम से मनरेगा मज़दूरी के सीधे भुगतान ने मैनुअल प्रक्रिया को समाप्त कर दिया, जिससे भुगतान में देरी और धन के गबन की संभावना कम हो गई।
- वित्तीय समावेशन को बढ़ावा: PMJDY के तहत 54.58 करोड़ जन धन खाते खोले गए हैं, जिससे कल्याणकारी लाभों तक सीधी पहुँच में सुधार हुआ है।
- प्रशासनिक लागत कम करता है: PM-किसान बिचौलियों को दरकिनार करते हुए 11.8 करोड़ किसानों को समय पर 6,000 रुपए वार्षिक भुगतान सुनिश्चित करता है।
- महिला सशक्तीकरण को प्रोत्साहन: प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और उज्ज्वला योजना का लाभ सीधे महिलाओं के खातों में स्थानांतरित किया जाता है, जिससे घरेलू वित्तीय सुरक्षा में सुधार होता है।
- बेहतर लक्ष्यीकरण का समर्थन: NSAP (पेंशन योजना) यह सुनिश्चित करती है कि धन वास्तविक लाभार्थियों तक पहुँचे, जिससे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार कम हो।
कल्याणकारी कार्यक्रमों में DBT की सीमाएँ और चुनौतियाँ:
- डिजिटल विभाजन के कारण बहिष्कार: डिजिटल पहुँच की कमी के कारण जनजातीय और दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण व हाशिये पर स्थित समुदायों के लिये DBT का लाभ प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- आधार-लिंक्ड प्रमाणीकरण संबंधी समस्याएँ: फिंगरप्रिंट प्रमाणीकरण विफलता के कारण लाभ से वंचित होना पड़ता है, जिससे बुज़ुर्ग और मज़दूर प्रभावित होते हैं।
- बैंकिंग और अंतिम-मील कनेक्टिविटी संबंधी समस्याएँ: दूर-दराज़ के क्षेत्रों में कमज़ोर बैंकिंग अवसंरचना के कारण लाभार्थियों को धन निकासी के लिये लंबी यात्राएँ करनी पड़ती हैं।
- लाभार्थी डाटा में विसंगति: आधार सीडिंग और KYC विसंगतियों के कारण फंड ट्रांसफर में विलंब होता है।
- नकद हस्तांतरण से सेवा वितरण सुनिश्चित नहीं होता: कुछ राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से DBT में बदलाव के कारण खाद्य सुरक्षा कम हो गई, क्योंकि आवश्यक वस्तुओं के लिये हमेशा नकदी का उपयोग नहीं किया जाता था।
- वित्तीय साक्षरता का अभाव: कई लाभार्थियों को बैंकिंग और डिजिटल लेन-देन में कठिनाई होती है, जिससे बिचौलियों पर निर्भरता बढ़ती है।
- निधि वितरण और शिकायत निवारण में विलंब: PM-किसान योजना में देरी से किसानों की मौसमी आवश्यकताओं पर प्रभाव पड़ता है, जबकि निवारण तंत्र भी अपेक्षाकृत कमज़ोर है।
निष्कर्ष:
DBT ने कार्यकुशलता में वृद्धि, लीकेज में कमी और लाभार्थियों के बेहतर लक्ष्यीकरण को सक्षम किया है। हालाँकि बहिष्करण त्रुटियाँ, आधार संबंधी समस्याएँ और बैंकिंग अवसंरचना की खामियाँ इसकी प्रभावशीलता को सीमित करती हैं। हाइब्रिड मॉडल (नकद + इन-काइंड ट्रांसफर) को अपनाते हुए ग्रामीण बैंकिंग, डिजिटल साक्षरता और शिकायत निवारण को मज़बूत करना अधिक समावेशी एवं प्रभावी कल्याण वितरण सुनिश्चित कर सकता है।