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08 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस- 84: "भारत में कृषि उत्पादन प्रचुर मात्रा में होने के बावजूद, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अपेक्षाकृत अविकसित बना हुआ है। इसके प्रमुख अवरोधों का विश्लेषण कीजिये और इस क्षेत्र के विकास को गति देने के लिये संभावित नीतिगत उपाय सुझाइये।"(250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।
- इसके विकास को बढ़ाने के लिये नीतिगत उपाय सुझाइये।
- उचित रूप से निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कच्चे कृषि उत्पादों को संरक्षण, पैकेजिंग और तैयारी जैसी विभिन्न तकनीकों के माध्यम से मूल्यवर्द्धित खाद्य पदार्थों में बदलने को संदर्भित करता है। भारत, दुग्ध, फल, सब्ज़ियों और मुर्गी पालन का एक अग्रणी वैश्विक उत्पादक है, जिसे खाद्य प्रसंस्करण में स्वाभाविक लाभ है। हालाँकि अपने विशाल कृषि उत्पादन के बावजूद, यह क्षेत्र अविकसित बना हुआ है, जो विभिन्न विकास चुनौतियों के कारण कृषि के GVA में केवल 11.3% का योगदान देता है।
मुख्य भाग:
भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के सामने प्रमुख चुनौतियाँ:
- कोल्ड चेन और स्टोरेज की कमी: अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और परिवहन सुविधाओं के कारण फसल के बाद खराब होने वाले सामानों का काफी नुकसान होता है। इससे न केवल खाद्य गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि किसानों की आय पर भी असर पड़ता है।
- "अखिल भारतीय शीत शृंखला अवसंरचना क्षमता" पर एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत की शीत भंडारण क्षमता 35 मिलियन मीट्रिक टन है, जो कृषि मांग को पूरा करने के लिये आवश्यक 80 मिलियन मीट्रिक टन से काफी कम है।
- खंडित आपूर्ति शृंखला: भारत में आपूर्ति शृंखला अत्यधिक खंडित है, जिसके कारण अकुशलता और लागत में वृद्धि होती है। खराब सड़क और रेल बुनियादी ढाँचे के कारण परिवहन के दौरान देरी एवं नुकसान हो सकता है।
- किसानों का कमज़ोर एकीकरण: छोटे और सीमांत किसानों (जो कुल कृषक आबादी का 86% हिस्सा हैं) में खाद्य प्रसंस्करण के अवसरों के बारे में जागरूकता का अभाव है।
- संगठित कृषक-उत्पादक संगठनों (FPO) की अनुपस्थिति के कारण उनके लिये मूल्य-संवर्द्धित प्रसंस्करण बाज़ार तक पहुँच पाना कठिन हो जाता है।
- जटिल विनियम: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विनियमों, लाइसेंसों और परमिटों के जटिल जाल के अधीन है, जिससे निपटना व्यवसायों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- विनियमों के असंगत प्रवर्तन से अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आपूर्ति शृंखला में खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। दूषित या मिलावटी खाद्य उत्पाद सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं और क्षेत्र की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
- अनुसंधान एवं विकास: अनुसंधान एवं विकास में सीमित निवेश, नवाचार और नए, मूल्य-संवर्द्धित उत्पादों के विकास को बाधित करता है।
- भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) व्यय-GDP अनुपात 0.8% है, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम है और विश्व औसत 1.8% से भी काफी नीचे है।
विकास को बढ़ाने के लिये नीतिगत उपाय:
- बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना और कोल्ड चेन विकास:
- सरकार ने प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) जैसी कई योजनाएँ शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य आधुनिक कोल्ड चेन अवसंरचना, फूड पार्क और भंडारण सुविधाएँ विकसित करना है।
- किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी समिति ने सिफारिश की थी कि रेलवे को ताज़ा उपज को सीधे निर्यात केंद्रों तक पहुँचाने के लिये अपनी लॉजिस्टिक्स प्रणाली को उन्नत करने की आवश्यकता है।
- विनियमन और प्रशासन को सरल बनाना
- खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के लिये सिंगल-विंडो क्लीयरेंस प्रणाली को मंज़ूरी प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिये तीव्र गति से लागू किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति (2017) नियामक ढाँचे को सरल बनाने और उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने पर ज़ोर देती है।
- निवेश और वित्तीय प्रोत्साहन को बढ़ावा देना
- उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये एक प्रमुख पहल है।
- खाद्य प्रसंस्करण कोष की स्थापना इस क्षेत्र में लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) को रियायती ऋण उपलब्ध कराने के लिये की गई है, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी उन्नयन और उत्पाद विविधीकरण के लिये।
- अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देना
- राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी पहल का उद्देश्य समर्पित अनुसंधान एवं विकास संस्थानों तथा उद्योग एवं शिक्षा जगत के बीच साझेदारी के माध्यम से खाद्य नवाचार और आधुनिक प्रसंस्करण तकनीकों को बढ़ावा देना है।
- किसान-उद्योग संबंधों को मज़बूत करना
- सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन्स जैसी योजनाएँ शुरू की हैं, जिसका उद्देश्य किसान-प्रसंस्करणकर्त्ता संबंधों को बढ़ावा देकर शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं (शीर्ष फसलें: टमाटर, प्याज़ और आलू) की आपूर्ति को विनियमित करना है।
- कर का बोझ कम करना और उपभोग को प्रोत्साहित करना
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर GST दरों में कमी से घरेलू बाज़ार में मांग बढ़ सकती है।
- SME के लिये खाद्य प्रसंस्करण मशीनरी और उपकरणों पर सब्सिडी से छोटे खाद्य प्रसंस्करणकर्त्ताओं के लिये प्रारंभिक निवेश बोझ को कम करने में भी मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष
भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में बहुत अधिक अप्रयुक्त क्षमता है, जिसमें प्रचुर मात्रा में कृषि उपज है जिसका अभी तक कम उपयोग किया गया है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र बाज़ार की मांग, सरकारी सहायता और तकनीकी प्रगति से प्रेरित होकर महत्त्वपूर्ण विकास के लिये तैयार है। नवाचार और स्थिरता को अपनाकर, उद्योग अपनी पूरी क्षमता को अनलॉक कर सकता है, जिससे आर्थिक विकास, खाद्य सुरक्षा तथा लाखों लोगों के लिये बेहतर आजीविका में योगदान मिल सकता है।