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04 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 30: भारत में ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली भारतीयों को सशक्त बनाने के बजाय औपनिवेशिक हितों की पूर्ति के लिये तैयार की गई थी। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द) (250 शब्द)
उत्तर
हल करने दृष्टिकोण:
- भारत में ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली की शुरूआत के संक्षिप्त अवलोकन से शुरुआत कीजिये।
- किस प्रकार इस प्रणाली ने सशक्तीकरण के बजाय औपनिवेशिक हितों की पूर्ति की, चर्चा कीजिये।
- कुछ अनपेक्षित सकारात्मक परिणामों का उल्लेख कीजिये।
- उपर्युक्त निष्कर्ष लिखिये
परिचय:
भारत में शुरू की गई ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य शिक्षित भारतीयों का एक वर्ग तैयार करके औपनिवेशिक हितों की पूर्ति करना था, जो शासन में सहायता कर सकें। जनता को सशक्त बनाने के बजाय, इसने ब्रिटिश नियंत्रण को मज़बूत किया और यथास्थिति बनाए रखने की कोशिश की, जिससे समाज के कुछ वर्गों तक शिक्षा की पहुँच सीमित हो गई।
मुख्य भाग:
भारत में ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली विशिष्ट औपनिवेशिक हितों को पूरा करने के लिये संरचित की गई थी:
- प्रशासनिक सुविधा: अंग्रेज़ों का लक्ष्य क्लर्कों और प्रशासकों का एक कार्यबल तैयार करना था जो भारत के शासन में सहायता कर सकें।
- भारतीय सिविल सेवा (आई.सी.एस.) परीक्षा इसमें केंद्र में थी, जहाँ भर्ती के लिये अंग्रेज़ी भाषा में दक्षता आवश्यक कर दी गई।
- सांस्कृतिक श्रेष्ठता: ब्रिटिश आदर्शों और अंग्रेज़ी पर आधारित शिक्षा प्रणाली ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान को पश्चिमी विचारों से प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया, जिससे स्वदेशी संस्कृतियों और दर्शन को कमज़ोर किया गया।
- मैकाले के मिनट (1835) ने "लोगों का एक ऐसा वर्ग विकसित की कोशिश की, जो रक्त और रंग में भारतीय हो, लेकिन विचारों, नैतिकता और बुद्धि में अंग्रेज़ हो।"
- आर्थिक शोषण: इसका उद्देश्य ब्रिटिश आर्थिक मॉडल को समर्थन देने के लिये कार्यबल तैयार करना था।
- ब्रिटिश संस्थाओं में अधीनस्थ प्रशासनिक नौकरियों के लिये भारतीयों को प्रशिक्षित करने पर ज़ोर औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये दिया गया था।
- वर्ष 1813 के चार्टर एक्ट में शिक्षा के लिये धन आवंटित किया गया, लेकिन इसका सीमित उपयोग किया गया, मुख्यतः उच्च शिक्षा पर ध्यान दिया गया तथा व्यापक साक्षरता की उपेक्षा की गई।
- सामाजिक पदानुक्रम बनाए रखना: शिक्षा मुख्यतः शहरी, उच्च वर्गीय भारतीयों तक ही सीमित थी, जिससे विशाल ग्रामीण और हाशिये पर रहने वाली आबादी को शिक्षा के लाभ से वंचित रखा गया।
- यद्यपि वुड्स डिस्पैच (1854) में प्रमुख शहरों में स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन यह प्रणाली उच्च शिक्षा पर ही केंद्रित रही, जिससे ग्रामीण आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के बजाय एक छोटा शिक्षित वर्ग ही बना।
ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का सशक्तीकरण पर कुछ अप्रत्याशित सकारात्मक प्रभाव पड़ा:
- राजनीतिक जागृति: पश्चिमी शैली की शिक्षा के परिणामस्वरूप, एक राजनीतिक रूप से जागरूक मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे शिक्षित व्यक्तियों ने औपनिवेशिक शासन को चुनौती देने के लिये अपनी शिक्षा का उपयोग किया।
- सामाजिक सुधार आंदोलन: पश्चिमी बुद्धिजीवों और ज्ञानोदय के आदर्शों से प्रेरित शिक्षित व्यक्तियों ने सामाजिक असमानताओं को चुनौती देना शुरू किया तथा जाति, लिंग और शिक्षा में सुधार का समर्थन किया।
- भारत और विदेशों में प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा प्राप्त डॉ. बी.आर. अंबेडकर दलितों और अन्य हाशिये के समूहों के अधिकारों के लिये लड़ते हुए सामाजिक न्याय के लिये कार्य करने वाले प्रमुख नेता बन गए।
- साहित्यिक पुनर्जागरण: इस प्रणाली ने बंगाल पुनर्जागरण में भी योगदान दिया, जहाँ रवींद्रनाथ टैगोर जैसे शिक्षित व्यक्तियों ने साहित्य, संगीत और दर्शन के माध्यम से भारतीय राष्ट्रवाद का प्रचार करने के लिये पश्चिमी शिक्षा का उपयोग किया।
निष्कर्ष:
भारत में ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से औपनिवेशिक नियंत्रण को मज़बूत करने और शासन को सुविधाजनक बनाने के लिये विकसित की गई थी, जिसने अनजाने में शिक्षित भारतीयों के बीच राजनीतिक चेतना के उदय में योगदान दिया। इस शिक्षित वर्ग ने भारत की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि, यह प्रणाली आम जनता को सशक्त बनाने में काफी हद तक विफल रही, क्योंकि यह आबादी के विशाल बहुमत के लिये औपनिवेशिक शोषण का एक साधन बनी रही।