दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- फसल विविधीकरण और जलवायु परिवर्तन में इसकी प्रासंगिकता को परिभाषित कीजिये।
- विस्तृत आँकड़ों और उदाहरणों के साथ बताइये कि यह जलवायु जोखिमों को कम करने एवं अनुकूलन सुनिश्चित करने में किस प्रकार मदद करता है।
- प्रासंगिक तथ्यों के साथ हाल के सरकारी उपायों और पहलों पर प्रकाश डालिये।
- इसके महत्त्व और भविष्य की संभावनाओं पर ज़ोर देते हुए निष्कर्ष निकालिये।
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परिचय:
फसल विविधीकरण का तात्पर्य है- एक ही फसल पर निर्भर रहने के बजाय विभिन्न प्रकार की फसलें उगाना। यह जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे कि अनियमित वर्षा, बढ़ता तापमान और चरम मौसम की घटनाएँ। मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार, पानी का संरक्षण और किसानों के लिये आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करके, यह भारत में कृषि अनुकूलन और खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
मुख्य भाग:
फसल विविधीकरण जलवायु जोखिमों को कैसे कम करता है:
- जलवायु चरम सीमाओं के प्रति संवेदनशीलता कम होती है:
- विविध फसल प्रणालियाँ सूखे, बाढ़ और कीट प्रकोप से जुड़े जोखिमों को वितरित करती हैं।
- उदाहरण: पंजाब में धान के साथ मक्का और दालों की खेती अपनाने से पानी की अधिक खपत वाले चावल पर निर्भरता कम हो गई है, जिससे पानी की कमी का प्रभाव कम हो गया है।
- मृदा उर्वरता बढ़ाता है और क्षरण कम करता है:
- फलीदार फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन को स्थिर करके रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटाती हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आती है।
- भारत में प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर औसतन 16.4 टन उपजाऊ मिट्टी का क्षरण होता है, जिसे फसल चक्र और विविधीकरण जैसी प्रथाओं के माध्यम से प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है।
- जल दक्षता में सुधार:
- धान और गन्ना जैसी अधिक पानी की खपत वाली फसलों के स्थान पर बाजरा एवं दालों की खेती करने से भूजल क्षरण में कमी आती है।
- उदाहरण: कर्नाटक और राजस्थान जैसे राज्य बाजरे को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसके लिये चावल की तुलना में 70% कम पानी की आवश्यकता होती है।
- जैवविविधता और कीटों के प्रति अनुकूलन बढ़ाता है:
- विभिन्न फसलों की खेती से कीटों द्वारा होने वाले नुकसान और रोगों के प्रसार का जोखिम काफी हद तक कम हो जाता है।
- आंध्र प्रदेश में जैवविविधता वाले खेतों में कीटनाशकों के उपयोग में 55% की कमी देखी गई है ।
- किसानों के लिये आर्थिक स्थिरता:
- फलों, सब्ज़ियों और मसालों जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधीकरण से आय सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण: केरल में नारियल की खेती को काली मिर्च और सुपारी के साथ एकीकृत करने से किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
- बाज़ार अवसंरचना: वैकल्पिक फसलों के लिये मज़बूत भंडारण और विपणन प्रणालियों का अभाव विविधीकरण को हतोत्साहित करता है।
- नीतिगत पूर्वाग्रह: MSP और खरीद प्रणालियों के तहत गेहूँ एवं चावल पर निरंतर ज़ोर देने से अन्य फसलों को अपनाने की प्रक्रिया सीमित हो जाती है।
- किसान जागरूकता: विविधीकरण के लाभों और तकनीकों के बारे में सीमित जागरूकता एक बाधा बनी हुई है।
फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिये सरकारी उपाय:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM):
- दालों, मोटे अनाजों और बाजरा के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- वर्ष 2021-22 में दाल उत्पादन 27.30 मिलियन टन तक पहुँच गया, जिससे देश दालों में आत्मनिर्भरता की ओर महत्त्वपूर्ण प्रगति कर सका।
- अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (2023):
- भारत ने वैश्विक अभियान का नेतृत्व किया, जिसमें ज्वार, बाजरा और रागी जैसी फसलों को जलवायु-प्रतिरोधी फसलों के रूप में बढ़ावा दिया गया तथा इनकी खेती के क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास किये गए।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY):
- यह योजना फसल विविधीकरण अपनाने वाले किसानों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न आपदाओं के कारण फसल क्षति के लिये बीमा कवरेज प्रदान करती है। लागू होने के पिछले 8 वर्षों में, 23.22 करोड़ से अधिक किसान आवेदकों को बीमा दावों का लाभ मिला है।
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA):
- अनुकूलन बनाने के लिये एकीकृत कृषि प्रणालियों, अंतरफसल और कृषि वानिकी का समर्थन करता है।
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY):
- मृदा संरक्षण के लिये जैविक खेती और फसल चक्र को प्रोत्साहित किया जाता है।
- विविध फसलों के लिये MSP:
- तिलहन और दलहन को बढ़ावा देने पर सरकार द्वारा इस ओर ध्यान केंद्रित करने के कारण पिछले दशक में MSP में वृद्धि हुई है।
- वाटरशेड विकास परियोजनाएँ:
- वर्षा आधारित क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन और सिंचाई को बढ़ावा देना, जिससे किसान विविध फसल पद्धति अपनाने में सक्षम हो सकें।
निष्कर्ष:
जलवायु चुनौतियों से निपटने और भारतीय कृषि में अनुकूलन बढ़ाने के लिये फसल विविधीकरण महत्त्वपूर्ण है। यह संसाधन दक्षता, आर्थिक स्थिरता और जैवविविधता को बढ़ाता है, जिससे खेती अधिक टिकाऊ बनती है। सरकारी सहायता, बेहतर बाज़ार पहुँच और किसान शिक्षा के साथ, यह जलवायु-अनुकूल कृषि का केंद्र बन सकता है। हाल ही में, प्रधानमंत्री ने 61 फसलों की 109 किस्में भी जारी कीं, जिनमें 34 खेत की फसलें और 27 बागवानी फसलें शामिल हैं।