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Sambhav-2025

  • 20 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-17: अमीर खुसरो के साहित्य, संगीत और संस्कृति में योगदान ने मध्यकालीन भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • साहित्य, संगीत और संस्कृति में उनके योगदान पर चर्चा कीजिये।
    • मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में उनकी विरासत को स्वीकार करते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    अमीर खुसरो (1253-1325), जिन्हें अक्सर उनकी वाक्पटुता के लिये "भारत का तोता" (तूती-ए-हिंद) कहा जाता है, मध्यकालीन भारतीय इतिहास के सबसे प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे। साहित्य, संगीत और संस्कृति में खुसरो के योगदान का भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य पर गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा।

    मुख्य भाग:

    साहित्य में योगदान:

    • सामाजिक और राजनीतिक जीवन: दरबार में, वह दिल्ली सल्तनत के राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से सहभागी थे।
    • उनके ऐतिहासिक ग्रंथ, जैसे खज़ैन-उल-फुतुह और तुगलकनामा, उनके समय के शासकों के शासन की मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करते हैं, जो मध्यकालीन भारत के जटिल राजनीतिक परिदृश्य को उजागर करते हैं।
    • भाषा और शैली: खुसरो को फारसी भाषा को भारतीय अभिजात वर्ग के बीच लोकप्रिय बनाने और इसे व्यापक जनसमूह के लिये सुलभ बनाने का श्रेय दिया जाता है।
      • दीवान-ए-खुसरो जैसी उनकी काव्य कृतियों ने न केवल फारसी साहित्य के उत्कर्ष में योगदान दिया, बल्कि मध्यकालीन भारत के बौद्धिक परिदृश्य को आकार देने में भी मदद की।

    संगीत में योगदान:

    • हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नवाचार: फारसी, तुर्की और भारतीय संगीत परंपराओं के अनूठे समन्वय के लिये खुसरो को अक्सर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के जनक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
      • उन्होंने यमन, भैरव और हंसध्वनि जैसे नए रागों के सृजन में अहम योगदान दिया, जो आज भी शास्त्रीय संगीत की परंपरा में गहराई से रचे-बसे हैं।
      • खुसरो ने सूफी भक्ति संगीत की एक शैली, कव्वाली के विकास में भी अग्रणी भूमिका निभाई।
      • उन्हें तबले के आविष्कार और उसे शास्त्रीय संगीत में शामिल करने का श्रेय दिया जाता है।

    सांस्कृतिक प्रभाव:

    • संस्कृतियों का एकीकरण: खुसरो की रचनाएँ फारसी, भारतीय और मध्य एशियाई परंपराओं के संगम को प्रतिबिंबित करती हैं, जो एक समन्वित और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के निर्माण में सहायक रहीं।
      • उनके साहित्य, संगीत और शिक्षाओं ने भारत में हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच सांस्कृतिक विभाजन को पाटने में मदद की।
    • सूफीवाद पर प्रभाव: चिश्ती सूफी संप्रदाय के साथ खुसरो के जुड़ाव, विशेष रूप से हज़रत निजामुद्दीन औलिया के साथ उनके आध्यात्मिक संबंध ने उन्हें सूफीवाद को अपने साहित्यिक और संगीत कार्यों में गहराई से एकीकृत करने के लिये प्रेरित किया।
    • उनकी कविता सूफी मनीषियों की भक्ति प्रथाओं का केंद्र बन गई तथा उन्होंने पूरे भारत में प्रेम, शांति और एकता के सूफी आदर्शों का प्रसार किया।

    निष्कर्ष:

    अमीर खुसरो की साहित्यिक कृतियों ने फारसी को सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की प्रमुख भाषा बना दिया, उनके संगीत ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय परंपरा की नींव स्थापित की और उनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं ने सूफी आंदोलन को गहराई से समृद्ध किया। विविध सांस्कृतिक तत्त्वों को एक साथ लाने की खुसरो की क्षमता ने एक स्थायी समन्वयकारी परंपरा बनाई जिसने भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया।

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