Sambhav-2025

दिवस- 77: भारत में बढ़ते सार्वजनिक ऋण के चलते भविष्य की राजकोषीय स्थिरता को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं। ऐसे में, भारत को अपने विकास लक्ष्यों को बनाए रखते हुए सार्वजनिक ऋण का प्रभावी प्रबंधन कैसे करना चाहिये? (150 शब्द)

28 Feb 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में सार्वजनिक ऋण की अवधारणा और उद्देश्यों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • भारत में सार्वजनिक ऋण प्रबंधन की प्रमुख चिंताओं पर चर्चा कीजिये।
  • सतत् ऋण प्रबंधन के लिये रणनीति सुझाइये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय: 

सार्वजनिक ऋण वह कुल उधार है जो सरकार घरेलू और विदेशी स्रोतों से लेती है तथा इसे ऋण-से-जीडीपी अनुपात के रूप में मापा जाता है। यह विकास कार्यक्रमों के वित्तपोषण में सहायता करता है, लेकिन अत्यधिक बढ़ने पर यह राजकोषीय स्थिरता के लिये जोखिम उत्पन्न कर सकता है। इसलिये प्रभावी ऋण प्रबंधन और विकास के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

मुख्य भाग: 

बढ़ते सार्वजनिक ऋण की चुनौतियाँ: 

  • भारत में सार्वजनिक ऋण का बढ़ता स्तर: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, भारत का सामान्य सरकारी ऋण सकल घरेलू उत्पाद (GDP का 81% (2023-24) है, जो FRBM लक्ष्य 60% से अधिक है।
  • उच्च ऋण सेवा बोझ: वित्त वर्ष 2023-24 में ब्याज भुगतान शुद्ध कर राजस्व का 41% होगा, जिससे बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के लिये राजकोषीय स्थान कम हो जाएगा।
  • मुद्रास्फीति और ब्याज दर जोखिम: लगातार उच्च सार्वजनिक ऋण मुद्रास्फीति और उधार लेने की लागत बढ़ा सकता है, जिससे निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • क्राउडिंग आउट प्रभाव: अत्यधिक सरकारी उधारी से निजी क्षेत्र के लिये ऋण उपलब्धता कम हो सकती है, जिससे रोज़गार सृजन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • राजस्व संग्रहण में गिरावट: कर-जीडीपी अनुपात 11.1% (2022-23) पर कम बना हुआ है, जिससे राजकोषीय समेकन के प्रयास प्रभावित हो रहे हैं।
  • बाह्य ऋण की संवेदनशीलता: यद्यपि भारत के कुल ऋण का केवल 18.8% ही बाह्य ऋण है, फिर भी रुपए के मूल्य में किसी भी प्रकार की गिरावट से पुनर्भुगतान लागत में वृद्धि हो सकती है।

सतत् ऋण प्रबंधन के लिये रणनीतियाँ:

  • राजस्व सृजन में वृद्धि
    • अप्रत्यक्ष कर संग्रह को बढ़ावा देने के लिये GST कवरेज का विस्तार करना और अनुपालन में सुधार करना।
    • कर छूट को युक्तिसंगत बनाने और कर उछाल में सुधार सहित प्रत्यक्ष कर सुधारों को मज़बूत करना।
    • रणनीतिक विनिवेश - वित्त वर्ष 2023-24 का लक्ष्य ₹51,000 करोड़ था, फिर भी वास्तविक आय कम थी, जिसके लिये दक्षता की आवश्यकता थी।
  • व्यय को युक्तिसंगत बनाना
    • व्यापक सब्सिडी के स्थान पर लक्षित सब्सिडी; प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली के लागू होने के बाद से 2.7 लाख करोड़ रुपए की बचत हुई।
    • बुनियादी ढाँचे और सामाजिक क्षेत्रों पर पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देते हुए राजस्व व्यय पर अंकुश लगाना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) और निजीकरण
    • सेवा वितरण को बढ़ाते हुए प्रत्यक्ष सरकारी व्यय को कम करने के लिये बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • सार्वजनिक उद्यमों में दक्षता में सुधार के लिये निजीकरण एजेंडे को पुनर्जीवित करना।
  • आर्थिक विकास और उत्पादकता को बढ़ावा देना
    • श्रम उत्पादकता में सुधार के लिए मानव पूंजी (शिक्षा और कौशल विकास) में निवेश करना।
    • MSME और स्टार्टअप्स को मज़बूत करना, जो सकल घरेलू उत्पाद में 30% तथा निर्यात में 45% का योगदान करते हैं, जिससे स्थायी रोजगार सृजन सुनिश्चित होगा।
    • राजस्व सृजन बढ़ाने के लिये PLI योजनाओं जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

FRBM पर एनके सिंह समिति ने केंद्र सरकार के लिये 40% और राज्यों के लिये 20% ऋण-से-जीडीपी अनुपात की परिकल्पना की थी, जिसका लक्ष्य कुल मिलाकर 60% सामान्य सरकारी ऋण-से-जीडीपी होना था। संरचनात्मक सुधारों को लागू करके, निवेश को बढ़ावा देकर और विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन सुनिश्चित करके, भारत राजकोषीय स्थिरता से समझौता किये बिना अपने विकास को बनाए रख सकता है।