दिवस- 58: भारत में संसदीय संप्रभुता की अवधारणा का परीक्षण कीजिये। यह ब्रिटिश मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? (150 शब्द)
06 Feb 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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संसदीय संप्रभुता से तात्पर्य किसी भी कानून को बनाने या रद्द करने के लिये संसद के सर्वोच्च विधायी अधिकार से है। ब्रिटेन में, संसद वास्तव में संप्रभु है, जबकि भारत में, संसदीय संप्रभुता संविधान, संघवाद और न्यायिक समीक्षा द्वारा सीमित है।
भारत में संसदीय संप्रभुता:
भारतीय संसदीय संप्रभुता ब्रिटेन से किस प्रकार भिन्न है:
विशेषता |
भारत |
ब्रिटेन |
शक्ति का स्रोत |
संविधान (सर्वोच्च) |
संसद (सर्वोच्च) |
न्यायिक समीक्षा |
विद्यमान है (अनुच्छेद 13, अनुच्छेद 32, अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 141 आदि) |
कोई न्यायिक समीक्षा नहीं (संसद सर्वोच्च है) |
मूल संरचना |
संशोधन नहीं किया जा सकता (केशवानंद भारती मामला) |
संवैधानिक कानूनों सहित किसी भी कानून में संशोधन कर सकते हैं |
संघवाद |
शक्तियों का विभाजन (संघ एवं राज्य सूचियाँ) |
एकात्मक प्रणाली, शक्तियों का कोई विभाजन नहीं |
मौलिक अधिकार |
संसद इनका उल्लंघन नहीं कर सकती (अनुच्छेद 13) |
कोई भी मौलिक अधिकार सुरक्षित नहीं |
कार्यपालक प्राधिकारी |
संसदीय प्रणाली और न्यायिक समीक्षा द्वारा सीमित |
कार्यपालिका पूरी तरह संसद के प्रति जवाबदेह है |
ब्रिटेन के विपरीत, जहाँ संसद संप्रभु है, भारत संवैधानिक संप्रभुता का पालन करता है, न्यायिक समीक्षा, संघवाद और मौलिक अधिकारों के माध्यम से जाँच एवं संतुलन सुनिश्चित करता है। यह बहुसंख्यक शासन को रोकता है और लोकतंत्र की रक्षा करता है, जिससे भारतीय संसदीय संप्रभुता संवैधानिक ढाँचे में सीमित लेकिन कार्यात्मक हो जाती है।