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Sambhav-2025

  • 06 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 58: भारत में संसदीय संप्रभुता की अवधारणा का परीक्षण कीजिये। यह ब्रिटिश मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय में संसदीय संप्रभुता और लोकतंत्र में इसके महत्त्व को परिभाषित कीजिये।
    • भारत में संसदीय संप्रभुता को संवैधानिक सीमाओं के साथ समझाइये।
    • प्रमुख अंतरों का उपयोग करते हुए इसकी तुलना पूर्ण संसदीय संप्रभुता के ब्रिटिश मॉडल से कीजिये।
    • भारतीय संदर्भ में इसके निहितार्थों पर एक संतुलित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।

    परिचय:

    संसदीय संप्रभुता से तात्पर्य किसी भी कानून को बनाने या रद्द करने के लिये संसद के सर्वोच्च विधायी अधिकार से है। ब्रिटेन में, संसद वास्तव में संप्रभु है, जबकि भारत में, संसदीय संप्रभुता संविधान, संघवाद और न्यायिक समीक्षा द्वारा सीमित है

    मुख्य भाग:

    भारत में संसदीय संप्रभुता:

    • भारत पूर्ण संसदीय संप्रभुता के बजाय संवैधानिक सर्वोच्चता (अनुच्छेद 245) का अनुसरण करता है।
    • संसद संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग के लिये कानून बना सकती है (अनुच्छेद 246), लेकिन यह संविधान के ढाँचे के भीतर होना चाहिये।
    • भारतीय संसद की संप्रभुता पर सीमाएँ:
      • न्यायिक समीक्षा (अनुच्छेद 13, 32, 226): न्यायालय असंवैधानिक कानूनों को रद्द कर सकते हैं (केशवानंद भारती केस, 1973)।
      • मूल संरचना सिद्धांत: संसद संविधान में इस प्रकार संशोधन नहीं कर सकती जिससे इसकी मूल संरचना में परिवर्तन हो।
      • संघीय संरचना: संसद एकतरफा रूप से राज्य के विषयों में परिवर्तन नहीं कर सकती है (राज्य सूची – अनुसूची VII)।
      • मौलिक अधिकार (भाग III): इनका उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को शून्य घोषित किया जा सकता है (गोलकनाथ केस, 1967)।

    भारतीय संसदीय संप्रभुता ब्रिटेन से किस प्रकार भिन्न है:

    विशेषता

    भारत

    ब्रिटेन

    शक्ति का स्रोत

    संविधान (सर्वोच्च)

    संसद (सर्वोच्च)

    न्यायिक समीक्षा

    विद्यमान है (अनुच्छेद 13, अनुच्छेद 32, अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 141 आदि)

    कोई न्यायिक समीक्षा नहीं (संसद सर्वोच्च है)

    मूल संरचना

    संशोधन नहीं किया जा सकता (केशवानंद भारती मामला)

    संवैधानिक कानूनों सहित किसी भी कानून में संशोधन कर सकते हैं

    संघवाद

    शक्तियों का विभाजन (संघ एवं राज्य सूचियाँ)

    एकात्मक प्रणाली, शक्तियों का कोई विभाजन नहीं

    मौलिक अधिकार

    संसद इनका उल्लंघन नहीं कर सकती (अनुच्छेद 13)

    कोई भी मौलिक अधिकार सुरक्षित नहीं

    कार्यपालक प्राधिकारी

    संसदीय प्रणाली और न्यायिक समीक्षा द्वारा सीमित

    कार्यपालिका पूरी तरह संसद के प्रति जवाबदेह है

    • ब्रिटेन की संसदीय सर्वोच्चता का उदाहरण: ब्रिटेन की संसद न्यायिक हस्तक्षेप के बिना मैग्ना कार्टा या मानवाधिकार अधिनियम को निरस्त या संशोधित कर सकती है।
    • भारतीय संसदीय सीमाओं का उदाहरण: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 को वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था, जिससे संसद के अधिकार सीमित हो गए थे।

    निष्कर्ष:

    ब्रिटेन के विपरीत, जहाँ संसद संप्रभु है, भारत संवैधानिक संप्रभुता का पालन करता है, न्यायिक समीक्षा, संघवाद और मौलिक अधिकारों के माध्यम से जाँच एवं संतुलन सुनिश्चित करता है। यह बहुसंख्यक शासन को रोकता है और लोकतंत्र की रक्षा करता है, जिससे भारतीय संसदीय संप्रभुता संवैधानिक ढाँचे में सीमित लेकिन कार्यात्मक हो जाती है।

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