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Sambhav-2025

  • 17 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 67: सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की भूमिका क्या है? उसकी लेखा-परीक्षा शक्तियों की सीमाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये और उसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये उपयुक्त सुधारों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और उसकी संवैधानिक भूमिका का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में CAG के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • CAG की लेखापरीक्षा शक्तियों (संस्थागत, परिचालनात्मक, कानूनी) की सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
    • CAG की प्रभावशीलता (संरचनात्मक, प्रक्रियात्मक, तकनीकी) बढ़ाने के लिये आवश्यक सुधारों का सुझाव दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) सरकारी व्यय में जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं। यद्यपि CAG एक संवैधानिक प्राधिकरण है, लेकिन इसकी लेखापरीक्षा शक्तियाँ संस्थागत, संचालनात्मक और कानूनी बाधाओं से सीमित हैं, जिससे प्रभावी वित्तीय निगरानी सुनिश्चित करने की इसकी क्षमता प्रभावित होती है।

    मुख्य भाग:

    सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में CAG का महत्त्व:

    • सरकारी व्यय और नीतियों का लेखा-परीक्षण करके राजकोषीय पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
    • अक्षमताओं, वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर करना, सुधारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करना (उदाहरण के लिये, आयुष्मान भारत, 2023 पर CAG रिपोर्ट, स्वास्थ्य बीमा दावों में विसंगतियों को उजागर करना)।
    • सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करता है, बेहतर प्रशासन को बढ़ावा देता है (उदाहरण के लिये, भारतीय रेलवे पर CAG रिपोर्ट, 2023, जिसमें परिचालन लागत में वृद्धि के कारण वित्तीय संकट को चिह्नित किया गया था)।

    CAG की लेखापरीक्षा शक्तियों की सीमाएँ:

    • संस्थागत सीमाएँ:
      • प्रत्यक्ष प्रवर्तन शक्ति नहीं: CAG की रिपोर्टें अनुशंसात्मक होती हैं तथा कार्यान्वयन लोक लेखा समिति (PAC) और सरकार की प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है।
      • निजी संस्थाओं पर सीमित लेखापरीक्षा दायरा: कई निजी कंपनियाँ, जो सार्वजनिक धन प्राप्त करती हैं, CAG के लेखा-परीक्षण अधिकार क्षेत्र से बाहर रह जाती हैं, जिससे समग्र वित्तीय जवाबदेही बाधित होती है।
    • परिचालन चुनौतियाँ:
      • विलंबित लेखापरीक्षा चक्र: CAG व्यय का लेखापरीक्षण बाद में करता है, जिससे वास्तविक समय में वित्तीय कुप्रबंधन को रोकने की इसकी क्षमता कम हो जाती है।
      • सरकारी आँकड़ों पर निर्भरता: रिपोर्टें विभागों द्वारा स्वयं घोषित वित्तीय विवरणों पर निर्भर करती हैं, जिससे आँकड़ों में हेरफेर का जोखिम बढ़ जाता है।
      • विशिष्ट लेखापरीक्षा कौशल का अभाव: स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं (जैसे- आयुष्मान भारत) और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं (जैसे- PMGSY) जैसे उभरते क्षेत्रों में विशेषज्ञ लेखापरीक्षकों की आवश्यकता होती है।
    • कानूनी बाधाएँ:
      • पीपीपी परियोजनाओं पर कोई अधिकार नहीं: CAG महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक धन की भागीदारी के बावजूद सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) का ऑडिट नहीं कर सकता।
      • राज्य सरकार के वित्त पर सीमित शक्ति: राज्य अक्सर अनुच्छेद 282 के तहत संघीय स्वायत्तता का हवाला देते हुए CAG ऑडिट का विरोध करते हैं
      • रिपोर्टों पर विलंबित विधायी कार्रवाई: CAG की रिपोर्टों को संसदीय चर्चाओं में विलंब का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता प्रभावित होती है। उदाहरणस्वरूप, रेलवे ऑडिट रिपोर्ट 2023 ने अक्षमताओं को उजागर किया, लेकिन नीति सुधार अब भी लंबित है।

    CAG की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये आवश्यक सुधार:

    • संस्थागत प्राधिकार को मज़बूत बनाना:
      • CAG रिपोर्टों का अनुपालन अनिवार्य बनाया जाए, ताकि लेखापरीक्षा निष्कर्षों पर समय पर कार्रवाई सुनिश्चित हो सके।
      • निजी फर्मों और पीपीपी परियोजनाओं के लेखापरीक्षण के लिये सीएजी के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करना, वित्तीय अस्पष्टता को रोकना। 
    • लेखापरीक्षा तंत्र को उन्नत करना:
      • वित्तीय अनियमितताओं को रोकने के लिये AI और ब्लॉकचेन के माध्यम से वास्तविक समय की ऑडिटिंग को लागू करें (उदाहरण के लिये, स्वीडन में प्रयुक्त AI-संचालित ऑडिट तंत्र)।
      • नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिये केवल व्यय की समीक्षा तक सीमित न रहते हुए प्रदर्शन आधारित लेखा परीक्षा आयोजित की जानी चाहिये। उदाहरणस्वरूप, PMGSY पर CAG की रिपोर्ट ने दिखाया कि भारी खर्च के बावजूद सड़कों की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं थी, जिससे नीति कार्यान्वयन की कमियों को उजागर किया गया।
    • कानूनी और संरचनात्मक सुधार:
      • CAG (कर्त्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 में संशोधन करके राज्य वित्तपोषित निजी परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं का लेखा परीक्षण करने की शक्ति प्रदान की जाएगी।
      • CAG रिपोर्टों के प्रभाव को बढ़ाने के लिये संसद में उन पर समयबद्ध चर्चा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • क्षमता निर्माण और तकनीकी प्रगति:
      • लेखा परीक्षकों को फोरेंसिक अकाउंटिंग, डिजिटल वित्त और AI-आधारित ऑडिट में प्रशिक्षित करके वित्तीय जाँच की प्रभावशीलता तथा सटीकता को सुदृढ़ करना।
      • जोखिम-आधारित ऑडिट के लिये बिग डाटा एनालिटिक्स का उपयोग करें (उदाहरण के लिये, यूके का राष्ट्रीय ऑडिट कार्यालय वित्तीय धोखाधड़ी का पता लगाने के लिये पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण का उपयोग करता है)।

    निष्कर्ष:

    CAG वित्तीय जवाबदेही का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है, लेकिन संस्थागत, परिचालन और कानूनी बाधाएँ इसकी प्रभावशीलता को कम करती हैं। CAG की लेखापरीक्षा शक्तियों को सुदृढ़ करना, इसके दायरे को PPP परियोजनाओं तक विस्तारित करना और तकनीकी नवाचारों का उपयोग करना पारदर्शिता, वित्तीय अनुशासन तथा नीति प्रभावशीलता को बढ़ाने में सहायक हो सकता है। सार्वजनिक व्यय के पैमाने को देखते हुए, भारत में सुशासन और सार्वजनिक विश्वास के लिये एक सुधारित तथा सशक्त CAG आवश्यक है।

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