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Sambhav-2025

  • 17 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस- 90: भारत में जैव प्रौद्योगिकी आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। विश्लेषण कीजिये कि यह खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार सृजन को कैसे बढ़ावा देती है? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • परिचय: 
      • जैव प्रौद्योगिकी को परिभाषित कीजिये तथा आर्थिक विकास, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार सृजन में इसकी भूमिका का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
    • मुख्य भाग:
      • खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार सृजन एवं आर्थिक विकास में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
      • खाद्य सुरक्षा - GM फसलों, जैव-प्रबलीकरण, जलवायु-अनुकूल फसलों और जैव-उर्वरकों पर उदाहरण सहित चर्चा कीजिये।
      • स्वास्थ्य देखभाल - वैक्सीन विकास, जीनोमिक अनुसंधान, स्टेम सेल थेरेपी और बायोफार्मास्युटिकल्स को कवर कीजिये।
      • रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास - बायोटेक स्टार्टअप, औद्योगिक अनुप्रयोग और अनुसंधान एवं विकास रोज़गार पर प्रकाश डालिये। 
    • निष्कर्ष
      • इसके प्रभाव का सारांश दीजिए तथा सतत् विकास के लिये नीति समर्थन, नैतिक विनियमन और अनुसंधान एवं विकास निवेश का सुझाव दीजिये।

    परिचय

    जैव प्रौद्योगिकी में जैविक प्रक्रियाओं, जीवों या प्रणालियों का उपयोग करके मानव जीवन को बेहतर बनाने वाली तकनीकें विकसित करना शामिल है। भारत में, यह आर्थिक विकास का एक प्रमुख प्रवर्तक है, जो कृषि, स्वास्थ्य सेवा और उद्योग जैसे क्षेत्रों में योगदान देता है। इसके अनुप्रयोग खाद्य सुरक्षा, चिकित्सा प्रगति और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाते हैं, जिससे यह विकास का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ बन जाता है।

    मुख्य भाग

    खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका

    • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें - बीटी कॉटन जैसी फसलें उपज, कीट प्रतिरोध को बेहतर बनाती हैं और कीटनाशक के उपयोग को कम करती हैं, जिससे कृषि उत्पादकता बढ़ती है।
    • पोषण के लिए जैव-प्रबलीकरण - गोल्डन राइस (विटामिन A से भरपूर) जैसी फसलें कुपोषण से लड़ने में मदद करती हैं, विशेष रूप से कमज़ोर आबादी में।
      • उदाहरण के लिये, भारत के पोषण मिशन के अंतर्गत फोर्टिफाइड चावल, जिससे लाखों लोगों, विशेषकर कुपोषित लोगों के पोषण सेवन में तेज़ी से वृद्धि हो सके।
    • सूखा और जलवायु-प्रतिरोधी फसलें - सूखा-सहिष्णु चावल और गेहूँ की किस्मों का विकास शुष्क क्षेत्रों में खेती को बढ़ावा देता है, जिससे जलवायु-संबंधी खाद्य असुरक्षा कम होती है।
      • इसके अतिरिक्त, सूखा-सहिष्णु मक्का किस्मों ने शुष्क क्षेत्रों में पैदावार में वृद्धि दिखाई है।
    • जैवउर्वरक और जैवकीटनाशक - जैवप्रौद्योगिकी नाइट्रोजन निर्धारण और मृदा की उर्वरता में सुधार करने के लिये राइजोबियम तथा माइकोराइजा जैसे सूक्ष्मजीवी जैवउर्वरकों को बढ़ाती है, जिससे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है। 
      • इसी प्रकार, बैसिलस थुरिंजिएंसिस (BT) जैसे सूक्ष्मजीव-आधारित जैव-कीटनाशक, लाभदायक कीटों को नुकसान पहुँचाए बिना लक्षित कीट नियंत्रण प्रदान करते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण न्यूनतम होता है (उदाहरण के लिये, माइकोराइजा-समृद्ध उर्वरक मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं, जबकि बीटी-आधारित जैव-कीटनाशकों का व्यापक रूप से जैविक खेती में उपयोग किया जाता है)।

    स्वास्थ्य सेवा प्रगति में भूमिका

    • वैक्सीन विकास और रोग नियंत्रण - कोवैक्सिन (कोविड-19) और रोटावैक (डायरिया की रोकथाम) जैसे स्वदेशी टीके भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षमता को बढ़ाते हैं, जिससे रोग का बोझ कम होता है।
    • जीनोमिक अनुसंधान और व्यक्तिगत चिकित्सा - जीनोम इंडिया परियोजना जैसी पहल रोग की भविष्यवाणी और अनुकूलित उपचार में मदद करती है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल की सटीकता में सुधार होता है (उदाहरण के लिये, लक्षित कैंसर उपचार)।
    • स्टेम सेल और पुनर्योजी चिकित्सा - स्टेम सेल थेरेपी में जैव प्रौद्योगिकी की प्रगति रीढ़ की हड्डी की चोटों, रक्त विकारों और अंग क्षति (जैसे- ल्यूकेमिया के लिये अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण) के इलाज में सहायता करती है।
    • सस्ती बायोफार्मास्युटिकल्स - भारत बायोसिमिलर और जेनेरिक बायोलॉजिक्स में अग्रणी है, जिससे कैंसर, मधुमेह और स्वप्रतिरक्षी रोगों के लिये जीवन रक्षक दवाएं अधिक सुलभ हो गई हैं (उदाहरण के लिये, बायोकॉन की इंसुलिन बायोसिमिलर)।
    • CRISPR और जीन थेरेपी - आनुवंशिक संपादन प्रौद्योगिकियाँ वंशानुगत रोगों के उपचार और जीन-आधारित चिकित्सा (जैसे- सिकल सेल एनीमिया के लिये CRISPR परीक्षण) विकसित करने में मदद करती हैं।

    रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास में भूमिका

    • बायोटेक स्टार्टअप और उद्योग विस्तार - भारत की जैव अर्थव्यवस्था का मूल्य 150 बिलियन डॉलर है, जिसमें 5,000 से अधिक स्टार्टअप रोज़गार को बढ़ावा दे रहे हैं।
      • बायोकॉन और भारत बायोटेक जैसे बायोटेक स्टार्टअप का उदय।
    • कृषि जैव प्रौद्योगिकी नौकरियाँ - ऊतक संवर्द्धन, बीज प्रौद्योगिकी और जैव इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्र ग्रामीण रोज़गार के अवसर उत्पन्न करते हैं।
    • जैव विनिर्माण और औद्योगिक विकास - एंज़ाइम्स, जैव ईंधन और जैवनिम्नीकरणीय प्लास्टिक का उत्पादन उच्च मूल्य वाली नौकरियाँ एवं निर्यात उत्पन्न करता है।
      • जापान के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसा जैवनिम्नीकरणीय प्लास्टिक विकसित किया है जो समुद्री जल में कुछ ही घंटों में घुल जाता है, जो प्लास्टिक प्रदूषण का संभावित समाधान प्रस्तुत करता है।
    • रोज़गार सृजन – जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र अनुसंधान, विनिर्माण और संबद्ध सेवाओं में लाखों लोगों को रोज़गार देता है, जिससे कुशल श्रम के अवसर बढ़ते हैं।
      • अनुमान है कि बायोइकोनॉमी से वर्ष 2030 तक 35 मिलियन रोज़गार उत्पन्न होंगी।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) - 'जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC)' जैसी सरकारी पहल निवेश आकर्षित करती है और नवाचार को बढ़ावा देती है।

    निष्कर्ष

    जैव प्रौद्योगिकी कृषि, स्वास्थ्य सेवा और उद्योग को बदल रही है, जो भारत के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह खाद्य सुरक्षा, चिकित्सा नवाचार और रोज़गार सृजन को बढ़ाती है, जिससे यह भारत के भविष्य के विकास के लिये एक रणनीतिक क्षेत्र बन जाता है। अनुसंधान और विकास, नीति समर्थन और नैतिक विचारों को मज़बूत करने से सतत् विकास के लिये इसकी क्षमता अधिकतम हो जाएगी।

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