Sambhav-2025

दिवस- 80: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपए की स्वीकार्यता बढ़ाने में द्विपक्षीय व्यापार समझौतों और मुद्रा स्वैप व्यवस्था की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, यह व्यवस्था मुद्रा जोखिम को कम करने में कैसे सहायक होती है, चर्चा कीजिये।(250 शब्द)

04 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • द्विपक्षीय व्यापार समझौतों और मुद्रा स्वैप व्यवस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी भूमिका को परिभाषित करते हुए परिचय दीजिये।
  • प्रासंगिक उदाहरणों के साथ बताइये कि वे रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को कैसे सुगम बनाते हैं।
  • मुद्रा जोखिम को कम करने और भारत की आर्थिक स्थिरता में सुधार लाने पर उनके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) और मुद्रा विनिमय व्यवस्थाएँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मह्त्त्वपूर्ण साधन हैं, जो देशों को अमेरिकी डॉलर के बजाय अपनी स्थानीय मुद्राओं का उपयोग करके सीधे व्यापार करने में सक्षम बनाती हैं। ये तंत्र भारतीय रुपए (INR) को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मुद्रा के रूप में बढ़ावा देने, विदेशी मुद्रा भंडार पर निर्भरता कम करने और विनिमय दर की अस्थिरता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मुख्य भाग:

  • व्यापार मुद्रा के रूप में रुपए को बढ़ावा देने में द्विपक्षीय व्यापार समझौतों और मुद्रा विनिमय व्यवस्था की भूमिका:
    • रुपए में प्रत्यक्ष व्यापार की सुविधा: BTA साझेदार देशों को अमेरिकी डॉलर के बजाय भारतीय रुपए में व्यापार करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे रुपए की वैश्विक मांग में वृद्धि होती है।
      • उदाहरण: भारत-रूस रुपया-रूबल तंत्र, अमेरिकी डॉलर के बिना कच्चे तेल और उर्वरक आयात को सक्षम बनाता है, जिससे विनिमय दर जोखिम कम हो जाता है।
    • व्यापार साझेदारी को मज़बूत करना: रूस, संयुक्त अरब अमीरात और श्रीलंका के साथ समझौते रुपया आधारित निपटान को बढ़ावा देंगे, जिससे भारतीय रुपए की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति बढ़ेगी।
    • विदेशी मुद्रा अस्थिरता को कम करना: स्थानीय मुद्रा निपटान विनिमय दर में उतार-चढ़ाव को कम करता है, जिससे स्थिर व्यापार लागत और वित्तीय पूर्वानुमान सुनिश्चित होता है।
    • तरलता सहायता प्रदान करना: मुद्रा विनिमय समझौते भारत और भागीदारों को स्थानीय मुद्राओं का आदान-प्रदान करने की अनुमति देते हैं, जिससे डॉलर भंडार पर निर्भरता कम हो जाती है
    • वित्तीय स्थिरता में वृद्धि: स्वैप विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करता है, जिससे विदेशी मुद्रा की कमी के कारण होने वाले वित्तीय संकट को रोका जा सकता है
    • क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना: स्थानीय मुद्राओं में व्यापार रणनीतिक साझेदारों के साथ आर्थिक संबंधों को मज़बूत करता है
      • उदाहरण: जापान के साथ 75 बिलियन डॉलर का स्वैप समझौता तरलता समर्थन प्रदान करता है, जिससे रुपए की स्थिरता मज़बूत होती है
  • मुद्रा जोखिम को कम करने में BTA और स्वैप समझौतों की भूमिका:
    • कम विनिमय दर अस्थिरता: जब व्यापार भारतीय रुपए में होता है, तो व्यवसाय और सरकारें तीव्र मुद्रा उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रहती हैं।
    • अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना: डॉलर का प्रभुत्व अर्थव्यवस्थाओं को अमेरिकी मौद्रिक नीति में बदलाव से उत्पन्न बाहरी झटकों के प्रति संवेदनशील बनाता है, जबकि रुपए-आधारित व्यापार इस जोखिम को कम करने में सहायक होता है।
    • व्यापार संतुलन स्थिरता में सुधार: जब आयात और निर्यात का निपटान भारतीय रुपए में होता है, तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अप्रभावित रहता है, जिससे संतुलित भुगतान संतुलन (BoP) सुनिश्चित होता है
    • उदाहरण: श्रीलंका के साथ भारत के द्विपक्षीय स्वैप समझौते (BSA) ने श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौरान महत्त्वपूर्ण विदेशी मुद्रा सहायता प्रदान की, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार स्थिर हुआ।
  • रुपया आधारित व्यापार के विस्तार में चुनौतियाँ:
    • INR की सीमित वैश्विक स्वीकृति: अधिकांश वैश्विक व्यापार अभी भी USD-प्रधान है, जिससे INR-आधारित व्यापार समझौतों को बढ़ाना कठिन हो गया है।
    • तरलता एवं परिवर्तनीयता संबंधी मुद्दे: रुपया पूंजी खाते में पूर्णतः परिवर्तनीय नहीं है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन में इसका उपयोग सीमित हो जाता है।
    • व्यापारिक साझेदारों का प्रतिरोध: कुछ देश व्यापक स्वीकार्यता और कम जोखिम के कारण अमेरिकी डॉलर में निपटान को प्राथमिकता देते हैं।
    • उदाहरण: भारत-यूएई रुपया निपटान तंत्र अभी पूर्ण रूप से कार्यान्वित नहीं हुआ है, क्योंकि यूएई के व्यवसायी लेन-देन के लिये डॉलर-मूल्यवर्ग को अधिक प्राथमिकता देते हैं।

निष्कर्ष:

द्विपक्षीय व्यापार समझौते और मुद्रा विनिमय व्यवस्थाएँ रुपए को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मुद्रा के रूप में बढ़ावा देने, भारत की अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने और आर्थिक लचीलापन मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं। ऐसे तंत्रों का विस्तार करके, भारत मुद्रा जोखिमों को कम कर सकता है, व्यापार लागतों को स्थिर कर सकता है और वित्तीय संप्रभुता को बढ़ा सकता है, जिससे अधिक आत्मनिर्भर वैश्विक व्यापार ढाँचे का मार्ग प्रशस्त होगा।