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Sambhav-2025

  • 17 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 67: भारत के अटॉर्नी जनरल और राज्यों के एडवोकेट जनरल सरकार के प्रमुख कानूनी सलाहकार होते हैं, लेकिन उन्हें कार्यकाल की सुरक्षा तथा पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होती। उनकी संवैधानिक स्थिति का विश्लेषण कीजिये तथा इस सीमा का उनके कार्य और प्रभावशीलता पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के महान्यायवादी (AGI) और राज्य के महाधिवक्ता के संवैधानिक प्रावधानों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • AGI और महाधिवक्ता की संवैधानिक स्थिति का उल्लेख कीजिये (अनुच्छेद 76 और 165)।
    • भू-स्वामित्व सुरक्षा और स्वतंत्रता की कमी पर चर्चा कीजिये - कानूनी, प्रशासनिक एवं कार्यात्मक सीमाओं का विश्लेषण कीजिये।
    • उनकी कार्यप्रणाली पर पड़ने वाले प्रभावों तथा सामने आने वाली चुनौतियों के उदाहरण दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत के अटॉर्नी जनरल (AGI) और राज्य के महाधिवक्ता क्रमशः केंद्र एवं राज्य सरकारों के मुख्य कानूनी सलाहकार हैं। जबकि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 76 (AGI) और अनुच्छेद 165 (महाधिवक्ता) के तहत नियुक्त किया जाता है, उनके पास कार्यकाल की सुरक्षा तथा कार्यात्मक स्वतंत्रता का अभाव है, जिससे सरकार को दी जाने वाली कानूनी सलाह की निष्पक्षता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

    मुख्य भाग: 

    AGI और महाधिवक्ता की संवैधानिक स्थिति:

    • AGI की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और उसे सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता होनी चाहिये
    • महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है और उसे उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता होनी चाहिये
    • उनका मुख्य दायित्व सरकार को कानूनी सलाह प्रदान करना, विभिन्न कानूनी मामलों में उसका प्रतिनिधित्व करना और राष्ट्रीय एवं राज्य महत्त्व के मुद्दों पर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होना है।

    कार्यकाल सुरक्षा और स्वतंत्रता का अभाव:

    • कोई निश्चित कार्यकाल नहीं: AGI और महाधिवक्ता दोनों क्रमशः राष्ट्रपति और राज्यपाल की इच्छा पर निर्भर रहते हैं, जिससे मनमाने ढंग से पदच्युत किये जा सकते हैं।
    • पद की कोई सुरक्षा नहीं: CAG या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों जैसे संवैधानिक पदाधिकारियों के विपरीत, अटॉर्नी जनरल और महाधिवक्ता को किसी निर्धारित औपचारिक प्रक्रिया के बिना कभी भी हटाया जा सकता है।
    • राजनीतिक प्रभाव का खतरा: चूँकि उनकी नियुक्ति और कार्यकाल सरकार पर निर्भर करता है, इसलिये सरकार के पक्ष में पक्षपाती कानूनी राय मिलने की संभावना होती है।
    • निर्णय लेने में सीमित स्वायत्तता: उनके पास स्वतंत्र अभियोजन प्राधिकार नहीं है और वे सरकारी निर्देशों पर कार्य करने के लिये बाध्य हैं, जिससे असंवैधानिक कार्यों को चुनौती देने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • हितों का टकराव: AGI और महाधिवक्ता को निजी प्रैक्टिस की अनुमति है, जिससे कानूनी मामलों में नैतिक टकराव तथा पक्षपात हो सकता है।

    उनकी कार्यप्रणाली पर प्रभाव:

    • कानूनी सलाह में निष्पक्षता में कमी: उदाहरण के लिये, इलेक्टोरल बाॅण्ड मामले जैसे विवादास्पद मामलों के दौरान, AGI की तटस्थता पर सवाल उठाए गए थे।
    • सरकार का अत्यधिक नियंत्रण: AGI सरकार की नीतियों की आलोचना करने से बच सकता है, जिससे न्यायालय में कानूनी दलीलों की विश्वसनीयता प्रभावित होती है
    • संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण में असमर्थतता: कई उदाहरणों में, अधिवक्ता ने राज्य की कार्रवाइयों को तब भी उचित ठहराया है जब वे संवैधानिक रूप से संदिग्ध थीं (उदाहरण के लिये, कुछ राज्यों में राजद्रोह के मामले)।
    • जन विश्वास में कमी: जब कानूनी सलाहकारों में स्वतंत्रता का अभाव होता है, तो इससे शासन में पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता प्रभावित होती है।

    निष्कर्ष:

    कार्यकाल सुरक्षा और स्वतंत्रता की अनुपस्थिति AGI एवं महाधिवक्ता की निष्पक्ष कानूनी सलाह देने की क्षमता को कमज़ोर करती है। अधिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिये, निश्चित कार्यकाल, पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया और निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध जैसे सुधारों पर विचार किया जाना चाहिये। उनकी स्वतंत्रता को सुदृढ़ करने से भारत में संवैधानिक अखंडता और विधि का शासन मज़बूत होगा।

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