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14 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 12: गुप्त शासकों की कला और साहित्य में उपलब्धियों तथा योगदान पर चर्चा कीजिये, जो उनके युग की सांस्कृतिक उत्कृष्टता एवं रचनात्मक प्रगति को दर्शाते हैं। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- गुप्त साम्राज्य का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- कला के क्षेत्र में गुप्त शासकों की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।
- साहित्य के क्षेत्र में गुप्त शासकों के योगदान पर चर्चा कीजिये।
- उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
इसके उत्कृष्ट कला और साहित्यिक योगदान के लिये गुप्त साम्राज्य को चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी के बीच समृद्ध प्राचीन भारत का "स्वर्ण युग" माना जाता है। गुप्त शासकों, विशेष रूप से चंद्रगुप्त द्वितीय और समुद्रगुप्त, ने अपने शासनकाल में एक समृद्ध सांस्कृतिक वातावरण को प्रोत्साहित किया, जिससे उनकी अवधि सांस्कृतिक विकास के शिखर पर पहुँच गई।
मुख्य भाग:
कला:
- मूर्तिकला:
- गुप्त काल में मूर्तिकला ने उल्लेखनीय प्रगति की, जिसमें पूर्ववर्ती युगों की कठोरता और प्रतीकात्मकता के स्थान पर अधिक सूक्ष्मता एवं यथार्थवाद दिखाई दिया।
- गुप्त काल के कलाकारों ने मानव शरीर की संरचना को यथार्थवाद और अभिव्यक्ति की सटीकता के साथ चित्रित करने में उत्कृष्टता प्राप्त की। इसका एक प्रमुख उदाहरण प्रसिद्ध "सारनाथ बुद्ध" है, जो गुप्त कला की एक उत्कृष्ट कृति है जो उस काल की भव्यता और सुंदरता को दर्शाती है।
- गुफा वास्तुकला:
- गुप्त शासक गुफा वास्तुकला के समर्थक थे और उनके संरक्षण में चट्टान को काटकर बनाई गई कई प्रतिष्ठित गुफाएँ विकसित हुईं, जो गुफा चित्रों से सुसज्जित थीं।
- विदिशा के पास उदयगिरि और विष्णु गुप्त गुफाएँ इसके उदाहरण हैं। इन गुफाओं में जटिल नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं, जो जीवन, देवत्व और गुप्त शासकों के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।
- मंदिर वास्तुकला:
- यद्यपि गुप्त-युग के अधिकांश मंदिर समय के साथ नष्ट हो गए, लेकिन उस काल की स्थापत्य शैली ने भविष्य में मंदिर निर्माण के लिये आधार तैयार किया।
- देवगढ़ का दशावतार मंदिर इसका जीवित उदाहरण है, जिसमें कलात्मक उत्कृष्टता और धार्मिक प्रतीकात्मकता का विशिष्ट मिश्रण है।
- धातुकर्म:
- गुप्त धातुकर्मज्ञों ने उत्तम धातु की मूर्तियाँ बनाने में उत्कृष्टता प्राप्त की। चंद्रगुप्त द्वितीय को श्रेय दिया जाने वाला दिल्ली का लौह स्तंभ, उस समय के उन्नत धातुकर्म कौशल का प्रमाण है।
- लगभग शुद्ध लोहे से बना यह स्तंभ एक सहस्राब्दी से अधिक समय तक जंग से बचा रहा है, जो धातु विज्ञान में गुप्त जी की निपुणता को दर्शाता है।
साहित्य:
- शास्त्रीय संस्कृत साहित्य:
- गुप्त काल को अक्सर शास्त्रीय संस्कृत साहित्य का शिखर माना जाता है। इस दौरान उल्लेखनीय साहित्यिक कृतियाँ सामने आईं, जिनमें कालिदास की "शकुंतला" और "मेघदूत" शामिल हैं।
- चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबारी कवि कालिदास को उनकी काव्य प्रतिभा और संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व के लिये जाना जाता है।
- नाटक और कविता:
- गुप्त काल में संस्कृत नाटक का अत्यधिक विकास हुआ, जिसमें भास के नाटकों को प्रमुखता मिली।
- कालिदास के नाटक, जैसे "अभिज्ञानशाकुंतलम्" (शकुंतला) और "मालविकाग्निमित्रम्", न केवल नाटक की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं, बल्कि मानवीय भावनाओं एवं संबंधों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति भी हैं।
- महाकाव्यों का संकलन:
- गुप्त काल में दो महान भारतीय महाकाव्यों, रामायण और महाभारत का संकलन तथा मानकीकरण हुआ।
- इस काल में वाल्मीकि की रामायण और व्यास की महाभारत के पुनरावर्तनों का भारतीय साहित्य तथा संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
- वैज्ञानिक एवं दार्शनिक ग्रंथ:
- गुप्त विद्वानों ने वैज्ञानिक और दार्शनिक साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्त काल के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने गणित एवं खगोल विज्ञान पर एक मौलिक कार्य "आर्यभटीय" लिखा। यह उस समय की बौद्धिक शक्ति को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
गुप्त शासकों ने कला और साहित्य में स्थायी योगदान दिया, जिससे एक स्थायी विरासत बनी जो प्राचीन भारत के सांस्कृतिक शिखर को परिभाषित करती है। कला के प्रति उनके संरक्षण और विद्वानों तथा बुद्धिजीवियों के प्रति उनके समर्थन ने रचनात्मकता एवं बौद्धिक जाँच के माहौल को बढ़ावा दिया। इन क्षेत्रों में गुप्त साम्राज्य की उपलब्धियाँ आज भी भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को प्रेरित और प्रभावित करती हैं।