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06 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
संस्कृति
दिवस- 5: भारत में कला, संगीत और सांस्कृतिक एकता के विकास में भक्ति और सूफी साहित्य के महत्त्वपूर्ण योगदान का आकलन कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भक्ति और सूफी आंदोलनों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारतीय कला, संगीत और भारत में सांस्कृतिक एकता पर पड़े उनके प्रभावों का उल्लेख कीजिये।
- उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
भक्ति और सूफी आंदोलन मध्यकालीन भारत में शक्तिशाली आध्यात्मिक तथा सामाजिक सुधार आंदोलनों के रूप में उभरे, जिनमें प्रेम, भक्ति एवं सद्भाव को प्रमुखता दी गई। उनकी शिक्षाएँ जाति, वर्ग और धार्मिक सीमाओं से परे थीं और उन्होंने साहित्य, कला एवं संगीत के विशाल भंडार को प्रेरित किया जिसने सांस्कृतिक एकता में योगदान दिया।
मुख्य भाग:
कला में योगदान
- मंदिर वास्तुकला: भक्ति आंदोलन ने विशेष रूप से दक्षिण भारत में भव्य मंदिर निर्माण को प्रेरित किया।
- बृहदेश्वर मंदिर (तमिलनाडु): अप्पार और शंकर जैसे संत, जो भक्ति आंदोलन का हिस्सा थे, ने मंदिर के डिज़ाइन तथा प्रथाओं को प्रेरित किया।
- मीनाक्षी मंदिर (तमिलनाडु): अलवर और नयनारों की शिक्षाओं ने मंदिर की भव्यता में योगदान दिया।
- तिरुपति बालाजी मंदिर (आंध्र प्रदेश): भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख संत और दार्शनिक रामानुज ने दक्षिण भारत में भगवान विष्णु की पूजा को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा उनका प्रभाव मंदिर की प्रथाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
- चित्रकला: मीराबाई और सूरदास जैसे संतों की भक्ति कला में लोकप्रिय विषय बन गई, जैसा कि मेवाड़ लघु चित्रकलाओं में देखा जा सकता है, जो मीराबाई की कृष्ण के प्रति भक्ति को स्पष्ट रूप से चित्रित करती हैं।
- क्षेत्रीय कला रूप: संतों ने स्थानीय कला के माध्यम से आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया।
- उदाहरण के लिये, उड़ीसा की पट्टचित्र चित्रकला और आंध्र प्रदेश की कलमकारी कला जगन्नाथ तथा कृष्ण जैसे देवताओं के प्रति भक्ति को दर्शाती है।
- कला केंद्र के रूप में दरगाहें: अजमेर शरीफ दरगाह जैसी संरचनाएँ जटिल फारसी-प्रेरित नक्काशी, सुलेख और मुगल वास्तुकला के तत्त्वों का अद्भुत प्रदर्शन करती हैं।
संगीत में योगदान
- भक्ति रचनाएँ: दक्षिण भारत में त्यागराज और कर्नाटक में पुरंदर दास जैसे संतों ने राम एवं कृष्ण का उत्सव मनाते हुए कर्नाटक कृतियों की रचना की।
- भजन और कीर्तन: कबीर के दोहे और मीराबाई के भजन भारतीय भक्ति संगीत के केंद्र में हैं, जिन्हें शास्त्रीय एवं लोक परंपराओं में प्रस्तुत किया जाता है।
- कव्वाली: अमीर खुसरो द्वारा प्रस्तुत कव्वाली, सूफी भक्ति की पहचान बन गई। दिल्ली स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह अपनी कव्वाली प्रस्तुतियों के लिये प्रसिद्ध है, जो न केवल सूफी भक्ति को प्रकट करती है, बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों को एकत्रित करने का माध्यम भी बनती है।
- शैलियों का सम्मिश्रण: सितार और तबला जैसे वाद्य, जो सूफी युग के दौरान नवीन रूप में विकसित हुए, फारसी तथा भारतीय संगीत परंपराओं के संगम का प्रतीक माने जाते हैं।
सांस्कृतिक एकता में योगदान
- संतों द्वारा स्थापित एकता: कबीर और गुरु नानक जैसे लोगों ने जातिगत भेदभाव तथा कर्मकांडों का विरोध किया। कबीर के दोहे धार्मिक भेदभाव से परे आध्यात्मिक संदेश देते हैं, जैसे- " कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर।"
- क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग: हिंदी, मराठी और कन्नड़ जैसी स्थानीय भाषाओं में रचना करके संतों ने आध्यात्मिकता को आम जनता तक पहुँचाया।
- उदाहरण के लिये, मराठी में तुकाराम के अभंगों ने महाराष्ट्र में सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया।
- समावेशी आध्यात्मिक स्थान: चिश्ती सिलसिले जैसे सूफी संप्रदायों ने सभी धर्मों के लोगों का स्वागत किया। उदाहरण के लिये, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने धार्मिक सीमाओं से परे प्रेम और सेवा पर ज़ोर दिया, जिससे अंतर-धार्मिक सद्भाव उत्पन्न हुआ।
- मानवता की सेवा: लंगर (सामुदायिक रसोई) की प्रथा, जो अजमेर शरीफ जैसी दरगाहों पर सूफी परंपराओं और गुरु नानक देव की शिक्षाओं में देखी जाती है, ने जातिगत बाधाओं को तोड़ने तथा सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- अंतर-धार्मिक सद्भाव: शेख सलीम चिश्ती जैसे संतों की शिक्षाओं ने मुगल शासकों को प्रभावित किया और हिंदुओं एवं मुसलमानों के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने में सहयोग किया।
निष्कर्ष
भक्ति और सूफी आंदोलनों ने रचनात्मकता तथा समावेशिता को बढ़ावा देकर भारतीय कला, संगीत एवं सांस्कृतिक एकता को महत्त्वपूर्ण रूप से आकार दिया। उनकी स्थायी विरासत सद्भाव को पोषित करने और एक विविध राष्ट्र के सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध करने में आध्यात्मिकता की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है।