दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में भूजल के महत्त्व और उसकी चुनौतियों का परिचय दीजिये।
- वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट, 2024 के प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डालिये।
- भूजल प्रदूषण को दूर करने के लिये व्यावहारिक उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
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परिचय:
भूजल, जो भारत में 60% से अधिक सिंचाई आवश्यकताओं और 85% ग्रामीण पेयजल आपूर्ति का स्रोत है, अत्यधिक दोहन एवं प्रदूषण के कारण गंभीर दबाव का सामना कर रहा है। वर्ष 2024 की वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट नाइट्रेट, फ्लोराइड और यूरेनियम प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि को उजागर करती है, जो सतत् प्रबंधन एवं उपचार उपायों की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित करती है।
मुख्य भाग:
वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट, 2024 के अनुसार भारत में जल प्रदूषण परिदृश्य:
- भूजल निष्कर्षण:
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का 60.4% भूजल निकाला जा चुका है, जो इस महत्त्वपूर्ण संसाधन पर भारी दबाव को दर्शाता है।
- हालाँकि विश्लेषित ब्लॉकों में से 73% को "सुरक्षित" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो कई क्षेत्रों में पर्याप्त पुनःपूर्ति को दर्शाता है।
- नाइट्रेट संदूषण:
- नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के कारण 440 ज़िलों के भूजल में नाइट्रेट का स्तर अत्यधिक पाया गया है।
- राजस्थान (49%), कर्नाटक (48%) और तमिलनाडु (37%) जैसे राज्यों में प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक है।
- यूरेनियम संदूषण:
- राजस्थान और पंजाब में यूरेनियम का उच्च स्तर पाया गया तथा कई नमूनों में इसका स्तर 100 PPB (प्रति बिलियन भाग) से भी अधिक था, जो स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक था।
- फ्लोराइड प्रदूषण:
- राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में फ्लोराइड संदूषण काफी अधिक है, जिसके कारण फ्लोरोसिस जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
भूजल प्रदूषण से निपटने के उपाय:
- विनियमनों को सुदृढ़ बनाना:
- औद्योगिक अपशिष्टों और कृषि अपवाह के निपटान पर कड़ा नियंत्रण लागू करना चाहिये।
- अत्यधिक निकासी की निगरानी के लिये भूजल प्रबंधन एवं विनियमन अधिनियम के तहत दिशा-निर्देशों को लागू करना चाहिये।
- संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना:
- नाइट्रेट निक्षालन को कम करने के लिये जैविक उर्वरकों और जैव-कीटनाशकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- किसानों को एकीकृत पोषक तत्त्व प्रबंधन और कम इनपुट वाली कृषि तकनीकों का प्रशिक्षण देना चाहिये।
- तकनीकी समाधान और निगरानी:
- संदूषण के प्रमुख स्थानों की पहचान करने के लिये भूजल निगरानी नेटवर्क का विस्तार करना चाहिये।
- यूरेनियम और फ्लोराइड-दूषित जल के उपचार के लिये रिवर्स ऑस्मोसिस तथा आयन एक्सचेंज जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना चाहिये।
- सामुदायिक भागीदारी:
- दूषित भूजल के स्वास्थ्य जोखिमों और निवारण विधियों के बारे में जागरूकता अभियान चलाये जाने चाहिये।
- संरक्षण और निगरानी कार्यक्रमों में स्थानीय पंचायतों तथा गैर-सरकारी संगठनों को शामिल करना चाहिये।
- बुनियादी ढाँचा विकास:
- औद्योगिक और शहरी अपशिष्टों से जल स्रोतों को प्रदूषित होने से रोकने के लिये अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों का निर्माण करना चाहिये।
- अधिक दोहन वाले क्षेत्रों में चेक डैम और रिसाव टैंक जैसी जल पुनर्भरण संरचनाएँ स्थापित करनी चाहिये।
निष्कर्ष:
वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट, 2024 सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये भूजल प्रदूषण को संबोधित करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करती है। नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन, सामुदायिक भागीदारी और तकनीकी प्रगति भविष्य की पीढ़ियों के लिये भारत के भूजल संसाधनों की सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं।