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Sambhav-2025

  • 27 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-23: स्वदेशी आंदोलन के दौरान अपनाई गई विधियों और रणनीतियों का विश्लेषण कीजिये। यह आंदोलन औपनिवेशिक भारत की आर्थिक नीतियों को किस प्रकार प्रभावित करता था और भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार में इसका क्या योगदान था? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • स्वदेशी आंदोलन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • स्वदेशी आंदोलन के दौरान अपनाई गई विधियों और रणनीतियों का विश्लेषण कीजिये।
    • औपनिवेशिक भारत की आर्थिक नीतियों पर इसके प्रभाव तथा भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में इसकी भूमिका का उल्लेख कीजिये।
    • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय:

    वर्ष 1905 में अंग्रेज़ों द्वारा बंगाल के विभाजन के जवाब में शुरू किया गया स्वदेशी आंदोलन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण क्षण था। यह औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक सीधी प्रतिक्रिया थी, जिसमें ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार और भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार के माध्यम से आत्मनिर्भरता या स्वदेशी के विचार को बढ़ावा दिया गया था।

    मुख्य भाग:

    स्वदेशी आंदोलन के तरीके और रणनीतियाँ:

    • ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार: स्वदेशी आंदोलन का सबसे प्रमुख तरीका ब्रिटिश वस्त्रों और अन्य उत्पादों का बहिष्कार था।
      • भारतीयों को ब्रिटिश वस्त्रों और अन्य निर्मित वस्तुओं को अस्वीकार करने तथा इसके स्थान पर भारतीय निर्मित उत्पादों, विशेषकर खादी (हाथ से काते गए सूती कपड़े) का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
    • ब्रिटिश संस्थाओं के साथ असहयोग: स्वदेशी आंदोलन ने ब्रिटिश शैक्षणिक संस्थाओं, न्यायालयों और प्रशासनिक प्रणालियों के खिलाफ असहयोगात्मक रुख का समर्थन किया।
      • भारतीय छात्रों से ब्रिटिश संचालित स्कूल छोड़ने का आग्रह किया गया तथा भारतीय मूल्यों और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये अनेक राष्ट्रीय स्कूल स्थापित किये गए।
    • सार्वजनिक विरोध और जन-आंदोलन: इसका विचार पारंपरिक त्योहारों और अवसरों को जनता तक पहुँचने तथा राजनीतिक संदेश फैलाने के साधन के रूप में उपयोग करना था।
      • उदाहरण के लिये, तिलक के गणपति और शिवाजी उत्सव न केवल पश्चिमी भारत में बल्कि बंगाल में भी स्वदेशी आंदोलन का माध्यम बन गए।
      • बंगाल में इस उद्देश्य के लिये पारंपरिक लोक रंगमंच का उपयोग किया गया।
    • प्रेस और प्रकाशन का उपयोग: स्वदेशी आंदोलन के संदेश को फैलाने के लिये भारतीय प्रेस एक शक्तिशाली उपकरण बन गया।
      • केसरी और द बंगाली जैसे समाचार-पत्रों ने लोगों को शिक्षित करने तथा आंदोलन के लिये समर्थन जुटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    औपनिवेशिक भारत की आर्थिक नीतियों पर प्रभाव:

    • ब्रिटिश आर्थिक नियंत्रण को चुनौती देना: ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार को प्रोत्साहित करके, आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश आयात पर भारत की निर्भरता को कम करना था।
      • इससे भारतीय बाज़ारों पर ब्रिटिश एकाधिकार कमज़ोर हुआ और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिला।
      • यह आर्थिक राष्ट्रवाद की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • भारतीय उद्योग और हस्तशिल्प को बढ़ावा: स्वदेशी वस्तुओं पर ज़ोर देने से भारतीय स्वामित्व वाले उद्योगों के विकास में योगदान मिला, जिससे भारत के औद्योगीकरण की प्रारंभिक नींव रखी गई।
      • स्वदेशी भावना स्वदेशी कपड़ा मिलों, साबुन और माचिस कारखानों, चमड़े के कारखानों, बैंकों, बीमा कंपनियों, दुकानों आदि की स्थापना में अभिव्यक्त हुई।

    भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार में योगदान

    • राष्ट्रवादी शिक्षा: इस आंदोलन ने राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जो भारतीय संस्कृति, इतिहास और भाषा पर केंद्रित थे।
      • 15 अगस्त 1906 को राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की गई तथा राष्ट्रवादी विचारों को बढ़ावा देने तथा छात्रों को भारतीय पहचान और गौरव की भावना को बढ़ावा देने के लिये बंगाल नेशनल कॉलेज तथा बंगाल तकनीकी संस्थान की स्थापना की गई।
    • साहित्य और कला: भारतीय लेखकों और कलाकारों ने अपने कार्यों के माध्यम से राष्ट्रवादी भावनाओं को व्यक्त करना शुरू किया तथा भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर ज़ोर दिया।
      • रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेज़ों द्वारा बंगाल के विभाजन के विरोध में बंगाल में स्वदेशी आंदोलन के दौरान "आमार सोनार बांग्ला" की रचना की थी।
      • देशेर कथा वर्ष 1904 में सखाराम गणेश देउस्कर द्वारा लिखी गई एक बंगाली पुस्तक है जो ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय लोगों की पीड़ा का दस्तावेज़ है। इस कृति ने स्वदेशी कार्यकर्त्ताओं को प्रेरित किया।

    निष्कर्ष

    स्वदेशी आंदोलन, जिसमें आत्मनिर्भरता, आर्थिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर ज़ोर दिया गया था, औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ। स्वदेशी आंदोलन की रणनीतियों और मूल्यों ने बाद में गांधी के असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे अभियानों को प्रेरित किया, जिसने अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।

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