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23 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-19: उन कारकों का विश्लेषण कीजिये जिन्होंने ब्रिटिशों को अन्य यूरोपीय शक्तियों की अपेक्षा भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सक्षम बनाया। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में यूरोपीय प्रतिस्पर्द्धा के संदर्भ का परिचय दीजिये।
- प्रतिद्वंद्वियों पर ब्रिटिश सफलता के पीछे प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिये।
- ब्रिटिश प्रभुत्व के दीर्घकालिक प्रभाव के साथ निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
18वीं सदी में भारत में प्रभुत्व के लिये यूरोपीय शक्तियों- पुर्तगाल, डच, फ्राँस, डेनमार्क और इंग्लैंड के बीच तीव्र प्रतिस्पर्द्धा देखी गई। सदी के अंत तक, इंग्लैंड विजयी हुआ और उसने खुद को सर्वोच्च औपनिवेशिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। इस सफलता का श्रेय संरचनात्मक, आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक लाभों को दिया जा सकता है।
मुख्य भाग:
ब्रिटिश सफलता के पीछे प्रमुख कारक:
- ट्रेडिंग कंपनी की बेहतर संरचना और प्रकृति:
- अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी एक सुव्यवस्थित संस्था थी, जहाँ निदेशक मंडल का प्रतिवर्ष चुनाव होता था, जो इसके संचालन में जवाबदेही और अनुकूलनशीलता सुनिश्चित करता था।
- राज्य-नियंत्रित फ्राँसीसी और पुर्तगाली कंपनियों के विपरीत, इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी शेयरधारकों द्वारा संचालित थी, जिसने इसे अधिक अनुकूल और लाभदायक बनने में मदद की।
- वाणिज्यिक चौकियाँ राजनीतिक बस्तियों में विस्तारित हो गईं, जैसा कि प्लासी के युद्ध (1757) के बाद बंगाल में देखा गया।
- नौसैनिक श्रेष्ठता:
- यूरोप की सबसे बड़ी और सबसे उन्नत रॉयल नेवी ने महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों को सुरक्षित किया तथा सैन्य टुकड़ियों की तीव्र आवाजाही सुनिश्चित की।
- अंग्रेज़ों ने प्रमुख समुद्री मार्गों पर प्रभुत्व स्थापित करके, निर्बाध व्यापार सुनिश्चित करके, विद्रोहों और युद्धों के दौरान तेज़ी से सेना तैनात करके, नौसैनिक और सैन्य श्रेष्ठता के माध्यम से भारत में अपने हितों को सुरक्षित किया।
- इसके अतिरिक्त, पुर्तगालियों और फ्राँसीसियों जैसे प्रतिद्वंद्वियों पर विजय ने ब्रिटिश नौसैनिक प्रभुत्व को प्रदर्शित किया।
- उदाहरण के लिये, स्वाली की लड़ाई (1612) में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सुवाली के तट पर एक नौसैनिक युद्ध में पुर्तगालियों को हराया था। इस विजय ने पश्चिमी भारत में पुर्तगाल के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया, जिससे अंग्रेज़ों को इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत करने का अवसर प्राप्त हुआ।
- यूरोप की सबसे बड़ी और सबसे उन्नत रॉयल नेवी ने महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों को सुरक्षित किया तथा सैन्य टुकड़ियों की तीव्र आवाजाही सुनिश्चित की।
- औद्योगिक क्रांति का प्रभाव:
- में प्रारंभिक औद्योगीकरण ने उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाया, विशेष रूप से वस्त्र और धातु विज्ञान में, जिससे आर्थिक तथा तकनीकी लाभ सुनिश्चित हुआ।
- भाप इंजन और पावरलूम जैसे औद्योगिक नवाचारों ने सैन्य और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ावा दिया।
- सैन्य अनुशासन और नवाचार:
- ब्रिटिश सैनिक अत्यधिक अनुशासित थे और उन्नत हथियारों, जैसे कि बंदूक और तोपों से सुसज्जित थे, जिससे वे प्रतिद्वंद्वियों से बेहतर प्रदर्शन करते थे।
- रॉबर्ट क्लाइव और आर्थर वेलेस्ली जैसे कमांडरों ने निर्णायक जीत प्राप्त करने के लिये नवीन रणनीति अपनाई।
- स्थिर शासन:
- 1688 की गौरवशाली क्रांति के बाद, ब्रिटेन ने राजनीतिक स्थिरता प्राप्त की, जिससे निरंतर नीतियों और निर्बाध वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित हुई।
- इसके विपरीत, फ्राँस को 1789 की क्रांति और नेपोलियन युद्धों सहित आंतरिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा, जिससे विदेशी महत्त्वाकांक्षाओं से ध्यान हट गया।
- ऋण बाज़ार का उपयोग:
- बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना से ब्रिटेन को ऋण बाज़ारों के माध्यम से युद्धों के लिये धन जुटाने की अनुमति मिल गई, जिससे वह अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में काफी अधिक खर्च करने लगा।
- पुरानी वित्तीय प्रणालियों पर निर्भर रहने के कारण फ्राँस को लंबे समय तक चले संघर्षों के दौरान दिवालियापन का सामना करना पड़ा, जिससे उसका वैश्विक प्रभाव कमज़ोर हो गया।
- सीमित धार्मिक उत्साह:
- स्पेन और पुर्तगाल के विपरीत, ब्रिटेन का ध्यान ईसाई धर्म के प्रसार पर कम था, जिससे उसका शासन कम हस्तक्षेपकारी था तथा स्थानीय आबादी के लिये अधिक स्वीकार्य था।
निष्कर्ष:
संरचनात्मक लाभ, आर्थिक शक्ति, सैन्य नवाचार, और राजनीतिक स्थिरता के संयोजन ने अंग्रेज़ों को अन्य यूरोपीय शक्तियों पर बढ़त दिलाई। स्थानीय परिस्थितियों के प्रति उनकी अनुकूलनशीलता और प्रतिद्वंद्वियों की कमज़ोरियों का लाभ उठाने की क्षमता ने भारत में उनके प्रभुत्व को मज़बूत किया, जो उपमहाद्वीप के औपनिवेशिक इतिहास को दो सदियों से अधिक समय तक आकार देता रहा।