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25 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 21: 1857 के विद्रोह के कारणों और प्रकृति का विश्लेषण कीजिये तथा वर्ष 1858 के बाद भारत में ब्रिटिश शासन पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- 1857 के विद्रोह के संक्षिप्त अवलोकन से आरंभ कीजिये।
- 1857 के विद्रोह के कारणों और प्रकृति का विश्लेषण कीजिये।
- 1858 के बाद भारत में ब्रिटिश शासन पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।
- भविष्य के राष्ट्रवादी आंदोलनों के अग्रदूत के रूप में इसके महत्त्व को स्वीकार करते हुए निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
1857 का विद्रोह, जिसे भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध के रूप में जाना जाता है, 10 मई 1857 को मेरठ शहर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में शुरू हुआ और जल्द ही दिल्ली, अवध, बिहार एवं मध्य भारत सहित कई क्षेत्रों में अन्य विद्रोह तथा नागरिक विद्रोह में बदल गया, जिसमें बहादुर शाह जफर, रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहिब और तात्या टोपे जैसे नेता शामिल थे।
मुख्य भाग:
विद्रोह के कारण
- राजनीतिक कारण
- हड़प नीति: लॉर्ड डलहौजी द्वारा लागू की गई इस नीति के कारण झाँसी, नागपुर और अवध जैसी रियासतों को भारत में मिला लिया गया, जिससे भारतीय शासक तथा कुलीन वर्ग नाराज़ हो गया।
- देशी शासकों का अपदस्थ होना: मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय की उपाधि हटा दिये जाने से भारतीय अभिजात वर्ग और अधिक अलग-थलग पड़ गया।
- आर्थिक कारण:
- कृषक शोषण: रैयतवारी और महालवारी प्रणालियों के अंतर्गत उच्च करों ने किसानों को गरीब बना दिया।
- कारीगरों पर संकट: ब्रिटिश आयातित वस्तुओं के कारण पारंपरिक उद्योगों के पतन से कारीगरों के पास आजीविका नहीं रही।
- स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में व्यवधान: औपनिवेशिक व्यापार नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था की कीमत पर ब्रिटेन को समृद्ध बनाया।
- सामाजिक और धार्मिक कारण
- सांस्कृतिक हस्तक्षेप: विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856) जैसे सुधारों को भारतीय परंपराओं पर हमला माना गया।
- धार्मिक भय: मिशनरी गतिविधियों और जबरन धर्मांतरण की अफवाहों ने हिंदुओं तथा मुसलमानों के मध्य अविश्वास उत्पन्न कर दिया।
- सैनिकों का अलगाव: चर्बी लगे कारतूसों के प्रचलन से, जिनमें गाय और सूअर की चर्बी होने की अफवाह थी, धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं।
- सैन्य कारण
- व्यवहार में असमानताएँ: भारतीय सिपाहियों को ब्रिटिश अधिकारियों की तुलना में कम वेतन दिया जाता था और उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता था।
- व्यापक आक्रोश: अवध के विलय से इस क्षेत्र से भर्ती किये गए सैनिक विशेष रूप से नाराज़ हो गए, जिससे विद्रोह भड़क उठा।
विद्रोह की प्रकृति
- स्थानीय विद्रोह या राष्ट्रीय आंदोलन:
- भौगोलिक विस्तार सीमित था, जो मुख्यतः उत्तर-मध्य भारत तक ही सीमित था और पंजाब तथा बंगाल जैसे क्षेत्र इससे अधिक प्रभावित नहीं हुए।
- जबकि कुछ रियासतें विद्रोह में शामिल हो गईं, हैदराबाद और पंजाब जैसी अन्य रियासतों ने अंग्रेज़ों का समर्थन किया।
- नेतृत्व और एकता का अभाव:
- रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और नाना साहिब जैसी प्रमुख हस्तियाँ स्थानीय नेताओं के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।
- बहादुर शाह ज़फर द्वितीय, एक प्रतीकात्मक नेता होने के बावजूद, विद्रोहियों को एक साझा दृष्टिकोण के तहत एकजुट करने में असफल रहे।
- केंद्रीकृत योजना और समन्वय के अभाव ने इसकी प्रभावशीलता को सीमित कर दिया।
वर्ष 1858 के बाद ब्रिटिश शासन पर प्रभाव
- प्रशासनिक सुधार
- ईस्ट इंडिया कंपनी शासन का अंत: भारत सरकार अधिनियम, 1858 ने भारत को ब्रिटिश क्राउन के प्रत्यक्ष नियंत्रण में ला दिया।
- सत्ता का केंद्रीकरण: भारत के लिये राज्य सचिव का पद सृजित किया गया, जिससे ब्रिटेन की ओर से कड़ी निगरानी सुनिश्चित हुई।
- सैन्य पुनर्गठन
- भारतीय सैनिकों में कमी: वफादारी सुनिश्चित करने के लिये भारतीय सेना में ब्रिटिश सैनिकों का अनुपात बढ़ा दिया गया।
- भर्ती नीति: सिखों, गोरखाओं और पठानों जैसी “मार्शल जातियों” पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिन्हें अधिक विश्वसनीय माना जाता है।
- नीतिगत बदलाव
- सुधारों के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण: भारतीयों की भावनाओं को आहत होने से बचाने के लिये सामाजिक-धार्मिक सुधारों को कम किया गया।
- रियासतों की पुनर्स्थापना: नीतियों ने रियासतों की वफादारी सुनिश्चित करने के लिये उनकी संप्रभुता की गारंटी दी।
- फूट डालो और शासन करो
- अंग्रेज़ों ने सांप्रदायिक विभाजन का फायदा उठाना शुरू कर दिया, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अविश्वास को बढ़ावा दिया तथा व्यवस्थित रूप से भारतीय एकता को कमज़ोर किया।
निष्कर्ष
1857 का विद्रोह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सैन्य कारणों से प्रेरित एक बहुआयामी घटना थी। अपनी विफलता के बावजूद, इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत के रूप में काम किया, औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ सामूहिक चेतना को जगाया। ब्रिटिश शासन में बाद के बदलावों का उद्देश्य भविष्य में विद्रोह को रोकते हुए अपनी शक्ति को मज़बूत करना था। यह विद्रोह भारत की स्वतंत्रता की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर बना हुआ है।