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24 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 47: कृषि-जलवायु क्षेत्र भारत में कृषि पद्धतियों के प्रतिरूप को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? विशिष्ट क्षेत्रों और उनकी प्रमुख फसल प्रणालियों के उदाहरणों के साथ विस्तार से समझाइये।
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में, कृषि-जलवायु क्षेत्रों को परिभाषित कीजिये तथा कृषि नियोजन में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- कृषि-जलवायु क्षेत्रों के कृषि पद्धतियों पर प्रभाव को विस्तृत उदाहरणों के साथ समझाइये, जिसमें विशिष्ट फसल उपयुक्तता के कारण भी शामिल हों।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
कृषि-जलवायु क्षेत्र, वे क्षेत्र हैं जिन्हें उनकी जलवायु परिस्थितियों, मृदा के प्रकार और स्थलाकृति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है ताकि कृषि पद्धतियों को अनुकूलित किया जा सके। भारत में, 15 कृषि-जलवायु क्षेत्रों की पहचान क्षेत्र-विशिष्ट फसल की खेती सुनिश्चित करती है, जिससे बेहतर उत्पादकता और संसाधन प्रबंधन होता है।
मुख्य भाग:
कृषि-जलवायु क्षेत्र कृषि पद्धतियों को कैसे प्रभावित करते हैं:
- जलवायु अनुकूलता: फसलों का चयन तापमान, वर्षा और आर्द्रता के आधार पर किया जाता है। उदाहरण स्वरूप, चावल अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगता है, जबकि गेहूँ शीत ऋतु में।
- उदाहरण: प्रचुर मानसून वाले पूर्वी तटीय मैदान चावल की खेती पर केंद्रित हैं।
- मृदा उर्वरता और संरचना: मृदा का प्रकार फसलों, उर्वरकों और कृषि विधियों के चयन को प्रभावित करता है।
- उदाहरण: दक्कन के पठार की काली मृदा अपनी नमी धारण करने की क्षमता के कारण कपास के लिये अत्यधिक उपयुक्त है।
- स्थलाकृतिक विशेषताएँ: पहाड़ी क्षेत्रों में चाय जैसी फसलें उगाने के लिये सीढ़ीनुमा खेती का उपयोग किया जाता है, जबकि मैदानी क्षेत्र बड़े पैमाने पर अनाज की खेती के लिये आदर्श हैं।
- उदाहरण: हिमालयी क्षेत्र में चाय बागान सीढ़ीदार ढलानों और ठंडी जलवायु का उपयोग करते हैं।
विशिष्ट क्षेत्रों और उनके प्रमुख फसल प्रतिरूप के कुछ उदाहरण
- पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र (जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड): मध्यम वर्षा वाली ठंडी जलवायु बागवानी और शीतोष्ण फसलों के लिये अनुकूल है। जौ और मक्का पहाड़ी इलाकों के लिये उपयुक्त मुख्य खाद्यान्न हैं।
- प्रमुख फसलें: सेब, जौ, गेहूँ, मक्का।
- सिंधु-गंगा के मैदान (पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार): उपजाऊ जलोढ़ मृदा, पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ और अनुकूल मानसूनी वर्षा इस क्षेत्र को उच्च उपज वाली फसलों की खेती के लिये उपयुक्त बनाती हैं।
- हरित क्रांति की सफलता से चावल और गेहूँ की खेती को और बढ़ावा मिला।
- प्रमुख फसलें: चावल, गेहूँ, गन्ना।
- पूर्वी पठार और पहाड़ियाँ (झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़): इस क्षेत्र में मृदा की उर्वरता कम है, भू-भाग ऊबड़-खाबड़ है तथा वर्षा आधारित कृषि पर इसकी निर्भरता अधिक है, जिसके कारण यह बाजरा और तिलहन जैसी अनुकूल फसलों के लिये आदर्श है।
- प्रमुख फसलें: बाजरा, दालें, चावल, तिलहन।
- पश्चिमी शुष्क क्षेत्र (राजस्थान, गुजरात): कम वर्षा, रेतीली मृदा और अत्यधिक शुष्क परिस्थितियाँ, बाजरा एवं तिलहन जैसी सूखा प्रतिरोधी फसलों की खेती के लिये उपयुक्त बनाती हैं।
- प्रमुख फसलें: बाजरा, दालें, तिलहन।
- तटीय और डेल्टाई क्षेत्र (केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश): आर्द्र उष्णकटिबंधीय जलवायु, उपजाऊ डेल्टाई मृदा और जल स्रोतों की निकटता चावल जैसी जल-गहन फसलों के साथ-साथ नारियल तथा मसालों जैसी नकदी फसलों के लिये उपयुक्त वातावरण प्रदान करती है।
- प्रमुख फसलें: चावल, नारियल, मसाले।
निष्कर्ष:
कृषि-जलवायु परिस्थितियों के साथ कृषि पद्धतियों का संरेखण इष्टतम उत्पादकता, स्थिरता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन सुनिश्चित करता है। राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) जैसी सरकारी योजनाएँ जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने के लिये कृषि-जलवायु क्षेत्रों का लाभ उठाती हैं। भारत में खाद्य सुरक्षा और सतत् विकास प्राप्त करने के लिये कृषि के लिए एक सुनियोजित, क्षेत्र-विशिष्ट दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है।