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02 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-28: स्वतंत्रता के बाद रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने में सरदार वल्लभभाई पटेल की रणनीति का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- सरदार वल्लभ भाई पटेल का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- रियासतों के एकीकरण में उनकी रणनीति पर चर्चा कीजिये।
- इस उपलब्धि के सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव पर प्रकाश डालिये।
- अंत में, पटेल की विरासत को एकता के सूत्रधार के रूप में रेखांकित कीजिये।
परिचय:
सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें "भारत के लौह पुरुष" के नाम से जाना जाता है, ने स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनीतिक एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में, पटेल ने कूटनीति तथा रणनीतिक दबाव के मिश्रण का उपयोग करते हुए 500 से अधिक रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने के विशाल कार्य का सामना किया।
मुख्य भाग:
रियासतों के एकीकरण के लिये पटेल की अनुनय और दबाव की रणनीति:
- विलयन-पत्र: विलयन-पत्र एक कानूनी दस्तावेज़ था, जो रियासतों को रक्षा, संचार और विदेशी मामलों जैसे कुछ क्षेत्रों में स्वायत्तता बनाए रखते हुए भारतीय संघ में शामिल होने की अनुमति देता था।
- पटेल ने अपने सचिव वी.पी. मेनन के साथ मिलकर रियासतों के शासकों को विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिये राजी किया, जिससे उनकी रियासतों का भारत में एकीकरण सुनिश्चित हो गया।
- 15 अगस्त 1947 तक अधिकांश राज्य भारत में सम्मिलित हो चुके थे।
- व्यक्तिगत कूटनीति: पटेल ने राजकुमारों के साथ व्यक्तिगत रूप से संवाद स्थापित किया, उन्हें भारतीय संघ में शामिल होने के लाभों से अवगत कराया और देश के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी तथा कर्त्तव्य का एहसास दिलाया। इस तरह, उन्होंने भारतीय एकता के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए।
- आर्थिक और प्रशासनिक प्रोत्साहन: उन्होंने शासकों को सहयोग प्राप्त करने के लिये प्रिवी पर्स (वार्षिक भुगतान) और व्यक्तिगत विशेषाधिकारों की गारंटी सहित विभिन्न प्रोत्साहनों को प्रस्तुत किया।
- आश्वासन: पटेल ने राजाओं को आश्वस्त किया कि भारतीय संघ के भीतर उनके हितों की रक्षा की जाएगी, जिससे उनकी स्थिति और शक्ति खोने की आशंका दूर हो गई।
- सैन्य दबाव: जिन मामलों में अनुनय-विनय काम नहीं आया, वहाँ पटेल सैन्य बल का प्रयोग करने से नहीं कतराते थे। उदाहरण के लिये, जूनागढ़ और हैदराबाद के एकीकरण में प्रतिरोध को दबाने तथा एकीकरण सुनिश्चित करने के लिये सैन्य हस्तक्षेप शामिल था।
- राजनीतिक युक्ति: पटेल ने राजनीतिक अलगाव को एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया तथा शासकों को यह विश्वास दिलाया कि स्वतंत्रता उन्हें एक बड़े और सशक्त भारतीय संघ के बीच असुरक्षित तथा अलग-थलग कर देगी।
इस उपलब्धि का सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव:
- राजनीतिक एकीकरण: रियासतों के एकीकरण ने अंग्रेज़ों द्वारा छोड़े गए विखंडित राजनीतिक परिदृश्य को समाप्त कर दिया, जिससे एक एकीकृत और सुसंगत भारतीय राज्य का निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया ने भारत को एक मज़बूत संघ के रूप में आकार दिया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उसे स्थिरता प्रदान की।
- केंद्रीकृत प्रशासन: एक केंद्रीकृत प्रशासन की स्थापना की गई, जिससे पूरे देश में एक समान शासन और कानून प्रवर्तन की सुविधा मिली, जिससे क्षेत्रीय असमानताएँ कम हुईं।
- लोकतांत्रिक शासन: रियासतों, जो पहले वंशानुगत राजाओं द्वारा शासित थीं, को लोकतांत्रिक शासन के तहत लाया गया, जिससे उन्हें भारत के लोकतांत्रिक आदर्शों के साथ जोड़ा गया। इस प्रक्रिया ने भारतीय संघ को समृद्ध और लोकतांत्रिक रूप से मज़बूत किया, जिसमें प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार तथा अवसर मिलने लगे।
- चुनावी भागीदारी: पूर्ववर्ती रियासतों के नागरिकों को चुनाव सहित लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने का अधिकार प्राप्त हुआ, जिससे एक अधिक समावेशी राजनीतिक प्रणाली में योगदान मिला।
- सांस्कृतिक एकीकरण: एकीकरण ने क्षेत्रीय, भाषाई और सांस्कृतिक मतभेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय पहचान तथा एकता की भावना को बढ़ावा दिया।
निष्कर्ष:
सरदार वल्लभभाई पटेल की कूटनीति और दबाव का रणनीतिक उपयोग रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने में सहायक था। उनके प्रयासों ने भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक एकता सुनिश्चित की, जो राष्ट्र की स्थिरता तथा विकास के लिये महत्त्वपूर्ण थी। एक एकीकरणकर्त्ता के रूप में पटेल की विरासत भारत के इतिहास की आधारशिला बनी हुई है, जो राष्ट्र के एकीकरण में उनके अद्वितीय योगदान को दर्शाती है।