नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Sambhav-2025

  • 20 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 70:भारत में गठबंधन राजनीति की बढ़ती प्रवृत्ति का लोकतांत्रिक शासन पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये तथा नीति-निर्माण और कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों एवं अवसरों का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • गठबंधन राजनीति और भारत के लोकतांत्रिक शासन में इसकी प्रासंगिकता का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • शासन पर इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये, चुनौतियों और अवसरों पर प्रकाश डालिये।
    • तर्कों को पुष्ट करने के लिये उदाहरण, तथ्य और डाटा प्रदान कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    1990 के दशक से भारत के बहुदलीय लोकतंत्र में गठबंधन राजनीति की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। वे प्रतिनिधित्व और आम सहमति को बढ़ावा देते हैं, लेकिन स्थिरता और नीति कार्यान्वयन को भी चुनौती देते हैं, जिससे लोकतांत्रिक शासन, नीतिगत परिणाम तथा समग्र शासन दक्षता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

    मुख्य भाग:

    लोकतांत्रिक शासन पर गठबंधन राजनीति का सकारात्मक प्रभाव

    • विभिन्न क्षेत्रीय और वैचारिक दृष्टिकोणों को समाहित करके, यह राजनीतिक समावेशिता एवं प्रतिनिधित्व को मज़बूत करता है।
    • यह सर्वसम्मति आधारित निर्णय प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है, निरंकुश प्रवृत्तियों को सीमित करता है और विचार-विमर्शात्मक लोकतंत्र को सशक्त बनाता है।
    • सत्ता के विकेंद्रीकरण को प्रोत्साहित करता है, संघवाद को मज़बूत करता है और राज्य सरकारों को अधिक अधिकार देता है।
    • यह संसदीय निगरानी को बढ़ाकर और जल्दबाज़ी में लिये गए नीतिगत निर्णयों को रोककर लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त बनाता है।
    • क्षेत्रीय दलों को सशक्त बनाना, यह सुनिश्चित करना कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित करें।

    शासन और नीति कार्यान्वयन के लिये गठबंधन राजनीति की चुनौतियाँ

    • राजनीतिक अस्थिरता तब उत्पन्न होती है जब गठबंधन साझेदार समर्थन वापस ले लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बार-बार सरकार गिर जाती है (उदाहरण के लिये, अटल बिहारी वाजपेयी की वर्ष 1999 की सरकार एक वोट से हार गई थी)।
    • नीतिगत पक्षाघात गठबंधन सहयोगियों के बीच प्रतिस्पर्द्धात्मक हितों, सुधारों और निर्णय लेने में विलंब के कारण होता है।
    • गठबंधन साझेदारों द्वारा मंत्री पद या नीतिगत रियायतों की मांग के कारण शासन पर समझौता हो जाता है, जिससे कभी-कभी अकुशलता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
    • अवसरवादी गठबंधनों का उदय, जहाँ अल्पकालिक राजनीतिक लाभ दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों पर हावी हो जाते हैं।
    • प्रधानमंत्री की निर्णायक क्षमता प्रभावित हुई है, क्योंकि उन्हें प्रभावी निर्णय लेने के बजाय गठबंधन की मांगों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।

    गठबंधन राजनीति के बावजूद नीति कार्यान्वयन के अवसर

    • आर्थिक उदारीकरण (1991) को गठबंधन युग के दौरान लागू किया गया था, जिससे पता चलता है कि मज़बूत नेतृत्व बड़े सुधारों को आगे बढ़ा सकता है।
    • क्षेत्रीय दलों के दबाव के बावजूद GST सुधार (2017) सफलतापूर्वक पारित किया गया, जिससे यह साबित हुआ कि आम सहमति बनाने से नीति कार्यान्वयन संभव हो सकता है।
    • सामाजिक कल्याण योजनाएँ, जैसे कि मनरेगा (2005) और सूचना का अधिकार अधिनियम (2005), गठबंधन वार्ता के माध्यम से लागू की गईं, जिससे शासन और लोक कल्याण को लाभ हुआ।
    • गठबंधन राजनीति क्षेत्रीय शासन को मज़बूती प्रदान करती है, क्योंकि यह नीतियों को विभिन्न राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने में सहायक होती है।

    आगे की राह

    • स्थिर गठबंधन शासन सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत सुधार, जैसे कि बार-बार होने वाले पतन को रोकने के लिये रचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव अपनाना।
    • अवसरवादी दल-बदल को रोकने के लिये दल-बदल विरोधी कानूनों को मज़बूत करना तथा सरकार की स्थिरता सुनिश्चित करना।
    • वैचारिक रूप से एकजुट सरकारें बनाने के लिये चुनाव के बाद के गठबंधनों के बजाय चुनाव पूर्व गठबंधन बनाना।
    • नीतिगत वार्ता और विधायी जाँच को सुगम बनाने के लिये संसदीय समितियों को सशक्त बनाना।

    निष्कर्ष:

    गठबंधन की राजनीति अब भारत के लोकतंत्र का अभिन्न अंग बन गई है, जो चुनौतियाँ और अवसर दोनों प्रदान करती है। जबकि यह प्रतिनिधित्व और संघवाद को बढ़ाती है, यह अस्थिरता तथा नीतिगत गतिरोध भी उत्पन्न करती है। कुशल गठबंधन सरकारों के संचालन हेतु प्रभावी संस्थागत तंत्र और राजनीतिक परिपक्वता आवश्यक हैं, जिससे लोकतांत्रिक शासन सुदृढ़ हो एवं नीतियों में निरंतरता बनी रहे।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2