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Sambhav-2025

  • 20 Jan 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 43: भारत के विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष बुनियादी ढाँचे, नीतियों, प्रौद्योगिकी और कौशल से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। साथ ही, इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के विनिर्माण क्षेत्र का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत कीजिये।  
    • भारत के विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष बताइये।

    परिचय: 

    भारत का विनिर्माण क्षेत्र आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन और निर्यात का आधार है, जो सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17% का योगदान देता है। हालाँकि बुनियादी ढाँचे, नीतियों, प्रौद्योगिकी और कौशल में चुनौतियों के कारण इसकी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाया है। भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करने और इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये इन अंतरालों को दूर करना आवश्यक है।

    मुख्य भाग:

    बुनियादी ढाँचे में चुनौतियाँ:

    • परिवहन एवं लॉजिस्टिक्स संबंधी कमियाँ: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 13-15% (वैश्विक औसत: 8-10%) पर उच्च लॉजिस्टिक्स लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा डालती है।
    • सड़कों, रेलमार्गों और बंदरगाहों पर अत्यधिक दबाव के कारण देरी तथा अकुशलता उत्पन्न होती है।
      • उदाहरण: माल ढुलाई का मुख्य साधन सड़क मार्ग है, जिससे लागत बढ़ जाती है।
    • अविश्वसनीय विद्युत आपूर्ति: उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे औद्योगिक राज्यों में बार-बार बिजली कटौती से उत्पादन प्रक्रिया बाधित होती है।
    • आधुनिक भंडारण का अभाव: अपर्याप्त शीत भंडारण और वितरण नेटवर्क के कारण शीघ्र नष्ट होने वाले सामान की भारी बर्बादी होती है

    नीति एवं विनियमन में चुनौतियाँ:

    • जटिल विनियम: अनुपालन आवश्यकताओं में ओवरलैपिंग और GST में लगातार परिवर्तन अनिश्चितता को बढ़ाते हैं।
      • उदाहरण: असंगत श्रम कानून दीर्घकालिक निवेश को रोकते हैं।
    • नीतिगत अस्थिरता: प्याज़ और दालों जैसे प्रमुख उत्पादों पर अचानक निर्यात प्रतिबंध से उद्योग और वैश्विक व्यापार संबंध बाधित होते हैं।
    • अनुसंधान एवं विकास के लिये सीमित समर्थन: भारत अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का 1% से भी कम खर्च करता है, जिससे विनिर्माण में तकनीकी प्रगति सीमित हो जाती है।

    प्रौद्योगिकी में चुनौतियाँ:

    • पुरानी मशीनरी: कई MSME पारंपरिक तरीकों पर निर्भर करती हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता प्रभावित होती है।
      • उदाहरण: कपड़ा उद्योग अक्सर मैनुअल करघे का उपयोग करता है।
    • उद्योग 4.0 को अपनाने में देरी: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) तथा रोबोटिक्स का कम एकीकरण कार्यकुशलता में बाधा उत्पन्न करता है।
    • कमज़ोर नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: कम लागत, बड़े पैमाने पर उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने से प्रीमियम वैश्विक बाज़ारों में भारत की उपस्थिति सीमित हो जाती है

    कौशल में चुनौतियाँ:

    • कौशल अंतराल: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) की वर्ष 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 15-59 आयु वर्ग के केवल 2.2% व्यक्तियों ने औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोटिव जैसे क्षेत्रों में कमी देखी गई है।
    • अपर्याप्त व्यावसायिक प्रशिक्षण: प्रशिक्षण कार्यक्रम अक्सर आधुनिक औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होते, जिससे कौशल असंतुलन बढ़ता है।
    • निम्न श्रम उत्पादकता: सतत् कौशल विकास का अभाव उत्पादकता को वैश्विक मानकों से नीचे रखता है।

    वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के उपाय:

    • बुनियादी ढाँचे का विकास: लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये भारतमाला परियोजना के तहत परिवहन नेटवर्क का आधुनिकीकरण किया जा रहा है।
      • नवीकरणीय ऊर्जा निवेश को बढ़ावा देकर स्थिर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना।
      • पीएम किसान संपदा योजना के माध्यम से वेयरहाउसिंग और कोल्ड स्टोरेज का विस्तार करना।
    • नीति और विनियामक सुधार: विनियमन को सरल बनाना और सुसंगत औद्योगिक नीतियों को सुनिश्चित करना
      • नवाचार-संचालित उद्योगों के लिये कर छूट बढ़ाकर अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना।
      • दीर्घकालिक निवेशक विश्वास को बढ़ावा देने के लिये निर्यात नीतियों को स्थिर बनाना।
    • प्रौद्योगिकी उन्नयन: TUFS जैसी योजनाओं के माध्यम से उद्योग 4.0 को अपनाने को बढ़ावा देना।
      • स्टार्टअप्स और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग करने के लिये नवाचार केंद्र बनाना।
      • अप्रचलित मशीनरी को बदलने के लिये कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना।
    • कौशल विकास: NSDC साझेदारी के माध्यम से व्यावसायिक प्रशिक्षण को उद्योग की मांग के अनुरूप बनाना।
      • उन्नत विनिर्माण में कौशल अंतराल को पाटने के लिये निरंतर सीखने और STEM शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना।

    निष्कर्ष:

    भारत के विनिर्माण क्षेत्र को कई महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन बुनियादी ढाँचे, नीति, प्रौद्योगिकी और कौशल विकास में लक्षित सुधारों के साथ, यह वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता हासिल कर सकता है। इन चुनौतियों का समाधान करके, भारत अपनी विनिर्माण क्षमता को अनलॉक कर सकता है और $ 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की ओर बढ़ सकता है।

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