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Sambhav-2025

  • 13 Jan 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 37: भारत की लंबी तटरेखा के आर्थिक, सामरिक और पर्यावरणीय महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत के समुद्र तट के संक्षिप्त अवलोकन से शुरुआत कीजिये।
    • इसके आर्थिक, सामरिक और पर्यावरणीय महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    भारत की तटरेखा 7,500 किलोमीटर से ज़्यादा लंबी है, जो इसे दुनिया की सबसे लंबी तटरेखाओं में से एक बनाती है। यह तटरेखा अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर से मिलती है, जो भारत को अर्थव्यवस्था, सुरक्षा तथा पर्यावरणीय संसाधनों के मामले में महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है।

    Indian Coastline

    मुख्य भाग: 

    आर्थिक महत्त्व

    • समुद्री व्यापार और बंदरगाह: भारत के बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार हैं।
    • मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह जैसे प्रमुख बंदरगाह भारत के आयात तथा निर्यात का महत्त्वपूर्ण हिस्सा संभालते हैं।
    • तटीय बंदरगाह भारत को यूरोप, अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के प्रमुख वैश्विक बाज़ारों से जोड़ते हैं, जिससे पेट्रोलियम, मशीनरी, वस्त्र तथा कृषि उत्पादों जैसे सामानों का प्रवाह सुगम होता है।
    • मत्स्य पालन और जलकृषि: भारत की लंबी तटरेखा एक तेज़ी से बढ़ते मत्स्य उद्योग को बनाए रखती है, जो लाखों लोगों को खाद्य सुरक्षा और आजीविका प्रदान करती है। 
    • केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्र भारत के मछली उत्पादन में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं। 
    • पर्यटन: भारत का समुद्र तट पर्यटकों के लिये अनेक आकर्षण प्रस्तुत करता है, जिनमें प्राचीन समुद्र तटों से लेकर समुद्री जैवविविधता तक शामिल है। 
    • गोवा, केरल, तमिलनाडु और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह जैसे राज्य घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिये लोकप्रिय गंतव्य हैं।  

    सामरिक महत्त्व

    • नौसेना रक्षा और समुद्री सुरक्षा: भारत की तटरेखा देश की राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण आधार है। विशाखापत्तनम, मुंबई, कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर जैसे रणनीतिक नौसैनिक अड्डों से सुसज्जित भारतीय नौसेना, देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी निभाती है।
      • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एक रणनीतिक स्थान पर स्थित हैं, जो मलक्का जलडमरूमध्य जैसे प्रमुख समुद्री व्यापार मार्गों की निगरानी के लिये आदर्श है। इन मार्गों से होकर वैश्विक समुद्री व्यापार का एक बड़ा हिस्सा गुज़रता है, जिससे इन द्वीपों का सामरिक महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। 
    • भू-राजनीतिक प्रभाव और क्षेत्रीय स्थिरता: भारत की रणनीतिक स्थिति प्रमुख वैश्विक समुद्री मार्गों के निकट होने के कारण, इसे भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) में महत्त्वपूर्ण प्रभाव और नियंत्रण प्रदान करती है।
      • देश श्रीलंका, मालदीव और मॉरीशस जैसे पड़ोसी देशों के साथ समुद्री कूटनीति में सक्रिय रूप से संलग्न है। 
      • भारत हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे में भी सक्रिय भूमिका निभाता है और SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) पहल को बढ़ावा देता है।

    पर्यावरणीय महत्त्व

    • समुद्री जैवविविधता: भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र में समुद्री जीवन की समृद्ध विविधता विद्यमान है, जिसमें प्रवाल भित्तियाँ, मैंग्रोव वन, समुद्री घास और आर्द्रभूमियाँ शामिल हैं। 
      • मन्नार की खाड़ी और लक्षद्वीप अपनी अद्वितीय समुद्री जैवविविधता के लिये जाने जाते हैं, जो अनुसंधान एवं संरक्षण दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधन प्रदान करते हैं।
    • जलवायु विनियमन और तटीय संरक्षण: तटीय पारिस्थितिकी तंत्र महत्त्वपूर्ण जलवायु विनियमन सेवाएँ भी प्रदान करते हैं। 
      • मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ और समुद्री घास तटीय कटाव, तूफानी लहरों एवं बढ़ते समुद्री स्तर के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं। 
      • ये पारिस्थितिकी तंत्र कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और तटीय समुदायों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने में मदद करते हैं।

    निष्कर्ष

    भारत की लंबी तटरेखा एक महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में कार्य करती है, जो देश के आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है, इसकी सामरिक सुरक्षा को मज़बूत करती है तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की समृद्ध विविधता को सहारा देती है। राष्ट्र को सतत् प्रबंधन प्रथाओं के माध्यम से अपने तटीय पर्यावरण की सुरक्षा के लिये एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM) और तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) जैसे उपायों को अपनाना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये आर्थिक समृद्धि तथा पर्यावरणीय स्वास्थ्य दोनों को बनाए रखा जा सके।

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