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02 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
संस्कृति
दिवस-1: समकालीन शहरी चुनौतियों का समाधान करने हेतु सिंधु घाटी सभ्यता के वास्तुशिल्प नवाचारों और सांस्कृतिक प्रथाओं की प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
दृष्टिकोण:
- सिंधु घाटी सभ्यता का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत कीजिये।
- सिंधु घाटी सभ्यता के वास्तुशिल्प नवाचारों और सांस्कृतिक प्रथाओं पर चर्चा कीजिये।
- ये प्रथाएँ समकालीन शहरी चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकती हैं? समझाइये।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
सिंधु घाटी सभ्यता (आईवीसी), जो लगभग 3300 से 1300 ईसा पूर्व तक विकसित हुई, अपनी उन्नत शहरी योजना और वास्तुशिल्प नवाचारों के लिये प्रसिद्ध है। वर्तमान में, जब शहर जटिल चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, आईवीसी के अभिनव शहरी डिज़ाइन और सांस्कृतिक प्रथाओं से प्राप्त ज्ञान अत्यधिक प्रासंगिक है, जो समकालीन शहरी विकास के लिये महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान करता है।
मुख्य भाग:
सिंधु घाटी सभ्यता की वास्तुकला संबंधी नवीनताएँ और सांस्कृतिक प्रथाएँ:
- उन्नत शहरी नियोजन: सिंधु घाटी के शहर, विशेषकर मोहनजोदड़ो और हड़प्पा, उल्लेखनीय शहरी नियोजन के उदाहरण हैं।
- ग्रिड लेआउट और कुशल गतिशीलता: मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की ग्रिड संरचना ने सुचारु यातायात प्रवाह सुनिश्चित किया और भीड़भाड़ को न्यूनतम किया।
- चंडीगढ़ और न्यूयॉर्क जैसे आधुनिक शहर गतिशीलता बढ़ाने, यातायात की भीड़ को कम करने तथा सुगमता में सुधार लाने के लिये समान ग्रिड लेआउट लागू करते हैं।
- जोनिंग और भूमि उपयोग प्रबंधन: सिंधु नगरों ने विशिष्ट उद्देश्यों के लिए स्थानों को विभाजित किया था—आवासीय, प्रशासनिक और औद्योगिक—जो आज की शहरी नियोजन की जोनिंग प्रथाओं से समानता रखते हैं।
- भारत में स्मार्ट सिटी पहल, जैसे गुजरात में धोलेरा का विकास, आर्थिक केंद्रों, हरित स्थानों और आवासीय क्षेत्रों के लिये ज़ोनिंग के माध्यम से प्रभावी भूमि उपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है।
- ढकी हुई नालियाँ और आधुनिक वर्षा जल प्रणालियाँ: आईवीसी की जल निकासी प्रणालियाँ ढकी हुई थीं, जिन्हें रुकावटों और प्रदूषण को रोकने के लिये डिज़ाइन किया गया था, ताकि स्थायित्व तथा स्वच्छता सुनिश्चित हो सके।
- सिंगापुर जैसे आधुनिक शहर डीप टनल सीवरेज सिस्टम (DTSS) के माध्यम से इस सिद्धांत को अपनाते हैं, जो एक उच्च क्षमता वाला नेटवर्क है और प्रभावी रूप से वर्षा जल तथा अपशिष्ट जल का प्रबंधन करता है।
- सोख गड्ढे और भूजल पुनर्भरण: आई.वी.सी. के सोख गड्ढों ने अतिरिक्त पानी को मिट्टी में अवशोषित होने देकर भूजल पुनर्भरण को प्रोत्साहित किया।
- ऐसी प्रथाओं से प्रेरित होकर, चेन्नई (भारत) जैसे शहरों ने जलभृतों को पुनः भरने के लिये भवनों में वर्षा जल संचयन प्रणाली को अनिवार्य बना दिया है।
- जल संचयन प्रणालियाँ: धोलावीरा जैसे IVC स्थलों में परिष्कृत जल संचयन प्रणालियाँ थीं, जो बड़े जलाशयों में वर्षा जल को एकत्रित और संग्रहीत करती थीं, जिससे सूखे के दौरान भी निरंतर जल आपूर्ति सुनिश्चित होती थी।
- ऐसी प्रथाओं से प्रेरित होकर, राजस्थान के जयपुर में शहरी योजनाकारों ने बावड़ियों जैसी पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों को बहाल किया है और पानी की कमी को दूर करने के लिये उन्हें आधुनिक वर्षा जल भंडारण सुविधाओं के साथ एकीकृत किया है।
- स्थायित्व पर ज़ोर: सिंधु घाटी सभ्यता के वास्तुशिल्प विकल्प स्वाभाविक रूप से टिकाऊ थे, जिनमें मिट्टी और मिट्टी की ईंटों जैसी स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग किया गया था।
- इस अभ्यास ने कार्बन उत्सर्जन को कम किया और ऊर्जा दक्षता में सुधार किया, जिससे आधुनिक हरित भवनों को स्थानीय सामग्रियों तथा स्मार्ट डिज़ाइनों का उपयोग करने के लिए प्रेरणा मिली।
- यह सिद्धांत भारत में लॉरी बेकर द्वारा निर्मित इमारतों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है, जहाँ ऊर्जा खपत को कम करने, लागत में प्रभावी वृद्धि और स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिये मिट्टी तथा पत्थर जैसी स्थानीय सामग्रियों का प्रभावशाली रूप से उपयोग किया गया था।
- सांस्कृतिक प्रथाएँ और सामुदायिक सहभागिता: सार्वजनिक स्नानघरों और सामुदायिक स्थानों की उपस्थिति सामुदायिक कल्याण तथा सामाजिक संपर्क पर विशेष ज़ोर देती है।
- यह दृष्टिकोण समकालीन शहरी डिज़ाइनों को प्रेरित कर सकता है, जो सार्वजनिक स्थानों, पार्कों और मनोरंजक क्षेत्रों को एकीकृत करते हुए सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देते हैं तथा शहरी जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
- हैबिटेट फॉर ह्यूमैनिटी जैसी परियोजनाएँ, जो समावेशी आवास को बढ़ावा देती हैं और विविध सामाजिक-आर्थिक समूहों को एकीकृत करती हैं, सामुदायिक सामंजस्य को प्राथमिकता देने की समान प्रथाओं को प्रतिबिंबित करती हैं।
निष्कर्ष:
भारत में स्मार्ट सिटीज़ मिशन और अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT) जैसी हालिया पहल चिरस्थायी शहरी विकास तथा कुशल संसाधन प्रबंधन पर ज़ोर देकर इस दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। अतीत से प्राप्त शिक्षाओं को अपनाकर और ऐसी योजनाओं को लागू करके, हम ऐसे शहरी परिदृश्य डिज़ाइन कर सकते हैं जो न केवल कार्यात्मक हों, बल्कि समृद्ध भी हों, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिये मानवता और पर्यावरण के बीच सद्भाव की स्थायी धरोहर सुनिश्चित हो सके।