Sambhav-2025

दिवस-1: भारत में शैलकृत संरचनाओं की स्थापत्य विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिये और प्रारंभिक भारतीय कला एवं संस्कृति में उनके महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

02 Dec 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • शैलकृत वास्तुकला की संक्षिप्त परिभाषा दीजिये।
  • भारत में शैलकृत संरचनाओं की स्थापत्य विशेषताओं का विश्लेषण कीजिये।
  • प्रारंभिक भारतीय कला में उनके महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
  • ये संरचनाएँ अमूल्य कलात्मक विरासत का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो संरक्षण के योग्य हैं। 

परिचय: 

शैलकृत वास्तुकला एक ऐसी निर्माण शैली है, जिसमें संरचनाओं को ठोस चट्टानों को काटकर और उकेरकर तैयार किया जाता है। प्राचीन काल में, विशेष रूप से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास विकसित शैलकृत वास्तुकला, अपनी जटिल नक्काशी, भव्य अग्रभाग और सुविचारित आंतरिक संरचना के लिये प्रसिद्ध है।

मुख्य भाग: 

भारत में शैलकृत संरचनाओं की स्थापत्य संबंधी विशेषताएँ: 

  • व्यवस्थित संरचना: चट्टानों को काटकर बनाई गई संरचनाओं में आमतौर पर चैत्य (प्रार्थना कक्ष) और विहार (मठ) शामिल होते हैं। लेआउट अक्सर पूजा, ध्यान और सांप्रदायिक गतिविधियों को समायोजित करने के लिये एक व्यवस्थित योजना का अनुसरण करता है।
  • विस्तृत प्रवेश द्वार: शैलकृत संरचनाओं के अग्रभाग में आमतौर पर जटिल नक्काशीदार द्वार होते हैं, जो धार्मिक आकृतियों, पुष्प डिज़ाइनों और प्रतीकात्मक रूपांकनों को प्रदर्शित करते हैं।
  • जटिल नक्काशीदार खंभे: शैलकृत ढाँचे के अंदरूनी हिस्से में अक्सर जटिल नक्काशीदार खंभों की पंक्तियाँ होती हैं जो गुंबददार छत को सहारा देती हैं। इन खंभों का डिज़ाइन अलग-अलग हो सकता है, सरल से लेकर अत्यधिक अलंकृत तक।
  • मूर्तिकला विवरण: ये नक्काशी सजावटी और कथात्मक दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं तथा धार्मिक ग्रंथों की कहानियों एवं उस समय की सांस्कृतिक मान्यताओं को दर्शाती हैं।
  • भित्तिचित्र: दीवारें और छतें अक्सर जटिल मूर्तियों तथा भित्तिचित्रों से सजी होती हैं जो धार्मिक कथाओं को दर्शाती हैं, जैसे कि बुद्ध या हिंदू देवताओं का जीवन।
  • मूर्ति-विज्ञान संबंधी समृद्धि: मूर्तिकला उस काल के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करते हुए अभिव्यक्ति का एक प्रमुख माध्यम है।

प्रारंभिक भारतीय कला में शैलकृत संरचनाओं का महत्त्व: 

  • कालानुक्रमिक महत्त्व: शैलकृत संरचनाएँ प्राचीन भारत की कलात्मक प्रवृत्तियों, धार्मिक विश्वासों और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों के ऐतिहासिक अभिलेख के रूप में कार्य करती हैं।
  • पूजा के केंद्र: कई शैलकृत संरचनाएँ, जैसे अजंता और एलोरा की गुफाएँ, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म के लिये पूजा के महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में कार्य करती थीं। 
  • सामाजिक मूल्यों का प्रतिबिंब: मूर्तियों में दर्शाए गए विषय और कथाएँ अक्सर उस समय के धार्मिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, अजंता की गुफाओं में बौद्ध शिक्षाओं और जातक कथाओं को दर्शाने वाले अनेक भित्तिचित्र और मूर्तियाँ हैं, जो प्रारंभिक भारतीय समाज के आध्यात्मिक जीवन को अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
  • कलात्मक नवाचार: शैलकृत वास्तुकला परिष्कृत पत्थर-नक्काशी तकनीक को प्रदर्शित करती है, जो कारीगरों के कौशल और रचनात्मकता के उच्च स्तर को दर्शाती है। 
    • मूर्तियों और उभरी हुई आकृतियों की जटिलता उनके अनुपात, गहराई तथा बारीक विवरणों की उत्कृष्ट समझ को दर्शाती है।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: शैलकृत वास्तुकला प्राचीन भारत में विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के बीच सांस्कृतिक अंतर्क्रिया का उदाहरण है। 
    • ग्रीको-रोमन प्रभावों जैसे अन्य संस्कृतियों के तत्त्वों का समावेश, इस अवधि के दौरान कलात्मक आदान-प्रदान की गतिशील प्रकृति को उजागर करता है।
  • पर्यटन और आर्थिक लाभ: अजंता और एलोरा गुफाएँ जैसे स्थल प्रत्येक वर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

निष्कर्ष: 

विश्व की सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में, भारत की शैलकृत संरचनाएँ राष्ट्रीय सीमाओं से परे महत्त्व रखती हैं। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में उनकी मान्यता उनके सार्वभौमिक मूल्य को रेखांकित करती है। भारत की समृद्ध कलात्मक विरासत और आने वाली पीढ़ियों पर इसके प्रभाव को समझने के लिये उनका संरक्षण आवश्यक है।