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Sambhav-2024

  • 10 Jan 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस 45

    प्रश्न 2. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों के प्रभाव तथा सीमाओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
    • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
    • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    20वीं सदी की शुरुआत में क्रांतिकारियों की गतिविधियों को उग्र राष्ट्रवाद के रूप में चिह्नित किया गया था। उनके साहसी कार्य प्रतिरोध की भावना के प्रतीक होने के बावजूद उनके दृष्टिकोण में निहित सीमाएँ क्रांतिकारी तरीकों के माध्यम से व्यापक लामबंदी हासिल करने की चुनौतियों को प्रदर्शित करती हैं।

    मुख्य भाग:

    • क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का प्रभाव:
      • राष्ट्रवादी भावनाओं को जागृत करना: क्रांतिकारियों का उद्देश्य लोगों में देशभक्ति की भावना को विकसित करना था।
        • उदाहरण के लिये युगांतर (1906 में) में लिखा गया कि: “भारत में रहने वाले 30 करोड़ लोगों को उत्पीड़न के इस अभिशाप को रोकने हेतु अपने 60 करोड़ हाथ उठाने होंगे।”
      • औपनिवेशिक तंत्र का विघटन: उग्रवादियों ने ब्रिटिश अधिकारियों के बीच भय और अनिश्चितता का माहौल बनाने के लिये सरकारी अधिकारियों तथा संस्थानों जैसे औपनिवेशिक उत्पीड़न के प्रतीकों को निशाना बनाया।
        • वासुदेव बलवंत फड़के द्वारा स्थापित रामोसी किसान सेना का उद्देश्य संचार लाइनों को बाधित करके सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से देश को अंग्रेज़ों से मुक्त कराना था।
      • बौद्धिक योगदान: क्रांतिकारी लेखों और भाषणों में स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु आमूल-चूल परिवर्तन तथा अधिक मुखर दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्पष्ट किया गया।
        • क्रांतिकारी गतिविधि की वकालत करने वाले समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में बंगाल के संध्या और युगांतर प्रमुख थे।
      • अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता: क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों के कार्यों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्राप्त हुआ था।
        • गदर पार्टी एक क्रांतिकारी समूह था जिसका मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को में था।
      • अहिंसक आंदोलनों को शुरू करना: उनकी भूमिका एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता का संकेत देती है जो अहिंसक जन आंदोलनों के स्थानीय प्रतिरोध के साथ समन्वय पर आधारित है।
        • गांधी और सी.आर.दास के कहने पर कई क्रांतिकारी समूह असहयोग कार्यक्रम में शामिल होने के लिये सहमत हुए।

    क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों की सीमाएँ:

    • सीमित जन भागीदारी: हिंसा और संघर्ष की कार्रवाइयाँ प्रभावशाली होते हुए भी ऐसे जन-आधारित आंदोलन को शुरू करने में असफल रहीं जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय समाज के विविध वर्गों को एकजुट कर सके।
      • इस प्रकार भगत सिंह हिंसक एवं व्यक्तिगत वीरतापूर्ण कार्रवाई में विश्वास से परे इस विश्वास के साथ मार्क्सवाद की ओर प्रेरित हुए थे कि एक लोकप्रिय जन-आंदोलन ही एक सफल क्रांति का कारण बन सकता है।
    • क्रूर दमन: क्रांतिकारी गतिविधियों पर ब्रिटिश प्रतिक्रिया गंभीर और क्रूर थी।
      • रॉलेट एक्ट के तहत केवल 'देशद्रोह' के संदेह पर भारतीयों को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की अनुमति दी गई थी।
    • भिन्न-भिन्न दर्शन: वैचारिक दृष्टिकोण में अंतर और संघर्ष के साधनों तथा साध्यों पर विभिन्न दृष्टिकोणों के कारण विभाजन पैदा हुआ, जिससे एकजुट एवं निरंतर आंदोलन में बाधा उत्पन्न हुई।
      • क्रांतिकारी दृष्टिकोण का प्रसिद्ध कथन भगवती चरण वोहरा द्वारा लिखित पुस्तक “द फिलॉसफी ऑफ द बॉम्ब” में निहित है।
    • मुख्यधारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों से अलगाव: क्रांतिकारी राष्ट्रवादी अक्सर स्वतंत्र रूप से कार्य करते थे और स्वयं को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस जैसे मुख्यधारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों से दूर रखते थे।

    निष्कर्ष:

    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सीमित सफलता के बावजूद क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों ने बलिदान एवं बहादुरी का परिचय दिया। क्रांतिकारियों की विरासत भविष्य की पीढ़ियों को न्याय एवं स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये प्रेरित करती रहेगी।

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