Sambhav-2024

दिवस 49

प्रश्न 2. भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा करते हुए भारत के संवैधानिक विकास को आकार देने में इसकी भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

15 Jan 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 का परिचय देते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिये।
  • भारत के संवैधानिक विकास को आकार देने में भारत सरकार अधिनियम, 1935 की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारत सरकार अधिनियम, 1935 एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कानून था जिसने औपनिवेशिक काल के दौरान भारत के संवैधानिक विकास को प्रमुख रूप से प्रभावित किया था। ब्रिटिश शासन के दौरान लाए गए इस अधिनियम का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण सुधार लाना तथा ब्रिटिश भारत में अधिक प्रतिनिधिक शासन प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करना था।

मुख्य भाग:

भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रमुख प्रावधान:

  • संघीय ढाँचा: इस अधिनियम द्वारा भारत के लिये एक संघीय ढाँचे का प्रस्ताव रखा गया था, जिसमें केंद्र सरकार तथा प्रांतों के बीच शक्तियों को विभाजित किया गया था। इसके द्वारा एक मज़बूत केंद्र सरकार के साथ संघीय ढाँचे का प्रावधान किया गया था, जिससे द्विसदनीय संघीय विधायिका का निर्माण हुआ था।
  • प्रांतीय स्वायत्तता: इसके उल्लेखनीय प्रावधानों में से एक प्रांतीय स्वायत्तता की शुरूआत थी। प्रांतों को कुछ मामलों में शक्ति दी गई थी, जिससे उन्हें कुछ हद तक स्वायत्तता प्राप्त हुई। यह पहले के केंद्रीकृत शासन दृष्टिकोण से विचलन को दर्शाता है।
  • द्विसदनीय विधानमंडल: इस अधिनियम द्वारा द्विसदनीय संघीय विधायिका का गठन किया गया था, जिसमें एक उच्च सदन (राज्य परिषद) और एक निचला सदन (संघीय विधानसभा) शामिल थे। प्रतिनिधि शासन को बढ़ावा देते हुए, संघीय विधानसभा के सदस्यों के निर्वाचन का प्रावधान किया गया था।
  • शक्तियों का पृथक्करण: इस अधिनियम द्वारा कार्यपालिका एवं विधायिका के बीच शक्तियों का स्पष्ट पृथक्करण करने का प्रयास किया गया था। हालाँकि वास्तव में गवर्नर-जनरल, जो ब्रिटिश क्राउन का प्रतिनिधित्व करते थे, के पास महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ थीं, जिससे शक्तियों के पृथक्करण में असंतुलन हुआ था।
  • मताधिकार और प्रतिनिधित्व: इस अधिनियम द्वारा सीमित रूप से वयस्क मताधिकार की शुरुआत करके मतदाता सूची का विस्तार किया गया था, जिससे आबादी के बड़े हिस्से को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने का मौका मिला।
  • आपातकालीन प्रावधान: इस अधिनियम द्वारा आपातकालीन प्रावधानों को शामिल किया गया था जिनके द्वारा मौलिक अधिकारों को निलंबित करने के साथ आपात स्थिति के दौरान वायसराय को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गईं थीं। यह प्रावधान एक विवादास्पद मुद्दा बन गया जिससे संकट के समय में सत्तावादी प्रवृत्तियों के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं।
  • अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षण: इस अधिनियम द्वारा केंद्रीय और प्रांतीय विधायिकाओं में धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों हेतु आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया था। हालाँकि इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक हितों की रक्षा करना था, लेकिन इससे सांप्रदायिक पहचान को भी बढ़ावा मिलने से भविष्य में सांप्रदायिक तनाव में योगदान मिला।

संवैधानिक विकास में इस अधिनियम की भूमिका:

  • स्वतंत्रता के बाद के संविधान पर प्रभाव: भारत सरकार अधिनियम, 1935 की कई विशेषताओं को स्वतंत्र भारत के संविधान में शामिल किया गया था। इसमें संघीय ढाँचे, शक्तियों के पृथक्करण और मौलिक अधिकारों के विचार को बरकरार रखा गया तथा एक संप्रभु लोकतांत्रिक राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप इसे अनुकूलित किया गया था।
  • केंद्रीकृत शक्तियाँ: संघीय ढाँचा के प्रावधान के बावजूद, इस अधिनियम द्वारा महत्त्वपूर्ण केंद्रीकृत शक्तियों (विशेष रूप से गवर्नर-जनरल के हाथों में) को बरकरार रखा गया था। इस पहलू का स्वतंत्रता के बाद होने वाले संविधान निर्माण पर प्रभाव पड़ा, जिसमें केंद्र और राज्य की शक्तियों के बीच संतुलन पर बल दिया गया था।
  • आपातकालीन प्रावधान: इस अधिनियम के आपातकालीन संबंधी प्रावधानों से संकट के दौरान शक्तियों के संभावित दुरुपयोग के बारे में सवाल उठे। स्वतंत्रता के बाद के संविधान में इस दुविधा को हल किया गया था, जिसमें आपातकाल के दौरान भी नियंत्रण और संतुलन के महत्त्व पर बल दिया गया था।
  • न्यायिक समीक्षा तंत्र: इस अधिनियम द्वारा संघीय न्यायालय की स्थापना से स्वतंत्रता के बाद के संविधान में एक स्वतंत्र न्यायपालिका के निर्माण को प्रेरणा मिली। संविधान में सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान की गई, जिससे कार्यकारी और विधायी शक्तियों पर नियंत्रण हो सके।
  • सरकार का संसदीय स्वरूप: इस अधिनियम में प्रांतीय स्तर पर उत्तरदायी सरकार के प्रावधान से प्रेरित होकर स्वतंत्रता के बाद के संविधान में लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर बल दिया गया। संविधान में संसदीय प्रणाली की स्थापना की गई जिससे कार्यपालिका की विधायिका के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित हुई।
  • द्विसदनीय विधायिका और प्रतिनिधित्व: द्विसदनीय संघीय विधायिका के संबंध में इस अधिनियम के प्रावधान से स्वतंत्रता के बाद के संविधान में इसे अपनाने हेतु प्रेरणा मिली। संविधान सभा ने विधि निर्माण में संतुलन सुनिश्चित करते हुए विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के महत्त्व को पहचाना।

निष्कर्ष:

भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने भारत के संवैधानिक विकास को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि इसे इसके मूल रूप में पूरी तरह से लागू नहीं किया गया था, लेकिन इसके प्रावधानों और सिद्धांतों ने स्वतंत्रता के बाद के संविधान निर्माण को प्रभावित किया था।