Q1. भारत में पारिस्थितिकी स्थिरता को बढ़ावा देने के क्रम में विधायी विनियमों एवं राजनीतिक पहलों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये संदर्भ निर्धारित करता है।
- भारत के पर्यावरण प्रशासन के संदर्भ में विधायी कृत्यों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।
- पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ावा देने में राजनीतिक पहल की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
भारत का पर्यावरण प्रशासन विगत कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ है, जिसमें विधायी अधिनियम और राजनीतिक पहल पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन उपायों का उद्देश्य प्रदूषण, वनाच्छादन और जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करना है, साथ ही सतत् विकास भी सुनिश्चित करना है।
मुख्य भाग:
विधायी अधिनियम:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972:
- यह अधिनियम जैवविविधता संरक्षण के महत्त्व को पहचानते हुए वन्यजीवों और उनके आवासों की सुरक्षा प्रदान करता है।
- इसने राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना को बढ़ावा दिया है, जिससे पारिस्थितिक स्थिरता में योगदान मिला है।
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980:
- यह अधिनियम वनों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हुए, गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के डायवर्ज़न को नियंत्रित करता है।
- इसने वनाच्छादन को कम करने और स्थायी वन प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने में मदद की है।
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974:
- यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है। इससे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) की स्थापना हुई, जो पर्यावरण प्रदूषण को विनियमित और मॉनिटर करते हैं।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986):
- पर्यावरण की सुरक्षा और इसे प्रभावित करने वाली गतिविधियों को विनियमित करने के लिये अधिनियमित यह अधिनियम प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरण स्वीकृति और खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करने के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010:
- इस अधिनियम ने पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) की स्थापना की।
- NGT ने पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने और पर्यावरण कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- तटीय नियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना, 1991:
- यह अधिसूचना तटीय पर्यावरण और पारिस्थितिकी की रक्षा के लिये तटीय क्षेत्रों में गतिविधियों को नियंत्रित करती है।
- इसने तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और तटीय क्षेत्रों में सतत् विकास को बढ़ावा देने में मदद की है।
राजनीतिक पहल:
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC):
- वर्ष 2008 में लॉन्च किये गए, NAPCC का लक्ष्य राष्ट्रीय रणनीतियों के व्यापक सेट के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के मुद्दों का समाधान करना है।
- इसमें राष्ट्रीय सौर मिशन और उन्नत ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन जैसे मिशन शामिल हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा एवं ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देते हैं।
- NAPCC के तहत, GIM जलवायु परिवर्तन को कम करने और जैवविविधता के संरक्षण के लिये वन आवरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, वनीकरण तथा वन संसाधनों के स्थायी प्रबंधन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- स्वच्छ भारत अभियान:
- वर्ष 2014 में शुरू किये गए इस स्वच्छता अभियान का उद्देश्य 'स्वच्छ भारत' के दृष्टिकोण को प्राप्त करना है।
- इससे अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है, प्रदूषण कम हुआ है और स्वस्थ पर्यावरण को बढ़ावा मिला है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA):
- भारत ने विश्व स्तर पर सौर ऊर्जा परिनियोजन को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में ISA की सह-स्थापना की।
- इसका उद्देश्य सौर ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश जुटाना, सतत् विकास एवं जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान देना है।
- स्वच्छ गंगा मिशन (नमामि गंगे):
- वर्ष 2014 में शुरू किये गए इस मिशन का उद्देश्य प्रदूषण को नियंत्रित करके और इसके संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देकर गंगा नदी का कायाकल्प करना है।
- इसमें सीवेज उपचार, रिवरफ्रंट विकास और जन जागरूकता की परियोजनाएँ शामिल हैं।
- वर्ष 2014 में शुरू किया गया नमामि गंगे कार्यक्रम, कार्यान्वयन चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, सीवेज उपचार, नदी तट विकास और वनीकरण के माध्यम से गंगा नदी बेसिन को पुनर्जीवित करने की राजनीतिक प्रतिबद्धता का उदाहरण देता है।
- दिल्ली में डीजल वाहनों पर प्रतिबंध:
- दिल्ली में 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने वायु प्रदूषण को संबोधित करने, स्वच्छ ईंधन और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिये नीतिगत उपायों को बढ़ावा देने में न्यायपालिका की भूमिका पर प्रकाश डाला है।
निष्कर्ष:
विधायी अधिनियमों और राजनीतिक पहलों ने भारत में पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन उपायों से जैवविविधता के संरक्षण, प्रदूषण को कम करने और सतत् विकास प्रथाओं को बढ़ावा देने में मदद मिली है। हालाँकि इसमें चुनौतियाँ बनी हुई हैं और भारत के पर्यावरण की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।