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Sambhav-2024

  • 29 Nov 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 9

    प्रश्न.2 भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में एक प्रमुख उत्तरदायित्व धारक के रूप में संसद की भूमिका में कथित गिरावट पर चर्चा कीजिये। इस प्रवृत्ति में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये और इसके उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य को मज़बूत करने के लिये संभावित उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संसदीय जवाबदेही को परिभाषित करके तथा यह कार्यपालिका पर अपने निरीक्षण कार्यों का प्रयोग कैसे करती है? इसका उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
    • संसद की भूमिका में कथित गिरावट पर चर्चा कीजिये और इस प्रवृत्ति में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
    • संसद के जवाबदेही कार्य को मज़बूत करने के लिये संभावित उपाय सुझाइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    • संसद भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है, जिसमें राष्ट्रपति, राज्यसभा (उच्च सदन) और लोकसभा (निम्न सदन) शामिल हैं।
    • संसद विभिन्न तंत्रों जैसे प्रश्नकाल, शून्यकाल, प्रस्ताव, बहस, संकल्प, स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव आदि के माध्यम से कार्यपालिका पर अपने निरीक्षण कार्यों का प्रयोग करती है और अपनी स्थायी तथा तदर्थ समितियों के माध्यम से सरकार की नीतियों, कानून, बजट और व्यय की भी जाँच करती है।

    हालाँकि हाल के वर्षों में विभिन्न कारकों के कारण, एक जवाबदेही धारक के रूप में संसद की भूमिका में कथित गिरावट आई है:

    • बार-बार व्यवधान और स्थगन: संसदीय कार्यवाही में बार-बार व्यवधान, स्थगन के परिणामस्वरूप समय तथा उत्पादकता की हानि होती है तथा महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा तथा विधेयकों के पारित होने में बाधा आती है।
      • PRS विधायी अनुसंधान (PRS Legislative Research) के अनुसार, 16वीं लोकसभा ने सभी पूर्णकालिक लोकसभाओं के औसत से 40% कम काम किया।
    • संसदीय समिति में मुद्दे: समितियों से अपेक्षा की जाती है कि वे विधेयकों की जाँच कीजिये और सदन को सिफारिशें प्रदान कीजिये। हालाँकि कई विधेयक समितियों को भेजे बिना ही पारित कर दिये जाते हैं।
      • PRS विधायी अनुसंधान के अनुसार, 16वीं लोकसभा में पेश किये गए बिलों में से केवल 25% को समितियों के पास भेजा गया है, जबकि 15वीं लोकसभा में यह आँकड़ा 71% था।
    • सदस्यों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति पर रोक: दल-बदल विरोधी कानून, जो विधायकों के दल-बदल को रोकने के लिये बनाया गया था, ने संसद के व्यक्तिगत सदस्यों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति पर भी अंकुश लगा दिया है।
      • इससे पार्टियों के भीतर व बाहर असहमति और बहस की गुंजाइश कम हो गई है तथा सदस्य लोगों या सदन की तुलना में पार्टी के प्रति अधिक ईमानदार हो गए हैं।
    • कार्यपालिका का प्रभुत्व: प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के हाथों में शक्ति के केंद्रीकरण के कारण विधायिका पर कार्यपालिका का प्रभुत्व।
    • कार्यपालिका का अतिक्रमण: कार्यपालिका अक्सर उचित जाँच या बहस के बिना कानून बनाने के लिये अध्यादेश, धन विधेयक और गिलोटिन का उपयोग करके संसद को दरकिनार कर देती है।

    संसद के उत्तरदायित्व कार्य को मज़बूत करने के कुछ संभावित उपाय हैं:

    • बैठकों की न्यूनतम संख्या सुनिश्चित करना: संसद के दोनों सदनों में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों में सुधार, यह सुनिश्चित करने के लिये कि बैठकों की न्यूनतम संख्या, काम के घंटे तथा कोरम बनाए रखा जाए एवं पार्टियों और मुद्दों के बीच आनुपातिक व न्यायसंगत रूप से समय आवंटित किया जाए।
    • समितियों को सुदृढ़ बनाना: यह सुनिश्चित करके कि सभी विधेयक समितियों को भेजे जाएँ और समितियों की रिपोर्टों पर सरकार द्वारा उचित विचार किया जाए तथा समय पर कार्यान्वयन किया जाए।
      • समितियों को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से किर्यान्वित करने के लिये अधिक स्वायत्तता, संसाधन और विशेषज्ञता भी दी जानी चाहिये।
    • दलबदल विरोधी कानून में संशोधन: इसकी प्रयोज्यता को विश्वास और अविश्वास प्रस्तावों तक सीमित करके तथा सदस्यों को अन्य मामलों पर अपने विवेक एवं निर्णय के अनुसार मतदान करने की अनुमति दी गई।

    निष्कर्ष:

    भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद जवाबदेही की एक आवश्यक संस्था है। संसद के उत्तरदायित्व कार्य को बहाल करने और मज़बूत करने तथा इसे अधिक प्रतिनिधिक, उत्तरदायी एवं लोगों के प्रति ज़िम्मेदार बनाने के लिये तत्काल सुधारों व उपायों की आवश्यकता है।

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