Sambhav-2024

दिवस 88

Q1. आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) के महत्त्व को बताते हुए पर्यावरण तथा स्वास्थ्य पर इनके प्रभाव का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

29 Feb 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) के बारे में एक संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • GMOs की क्षमता एवं पर्यावरण तथा स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में बताइये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMOs) ऐसे जीव हैं जिनको आनुवंशिक स्तर पर इस तरह से रूपांतरित किया गया है जो प्राकृतिक पुनर्संयोजन के माध्यम से स्वाभाविक रूप से संभव नहीं होता है। यह रूपांतरण आमतौर पर आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है जिसमें विशिष्ट वांछनीय लक्षणों या विशेषताओं को शामिल करने के लिये जीन को सम्मिलित करना, हटाना या संशोधित करना शामिल होता है।

मुख्य भाग

कृषि और चिकित्सा में इनके संभावित अनुप्रयोग:

  • खाद्य सुरक्षा में वृद्धि: कीटों और बीमारियों के प्रतिरोध हेतु इंजीनियरिंग की गई GMO फसलें अधिक उत्पादक हो सकती हैं, विशेष रूप से विकासशील देशों में इससे भोजन की कमी एवं कुपोषण की समस्या को कम किया जा सकता है।
  • उन्नत पोषण: फसलों में आवश्यक विटामिन एवं खनिजों को शामिल करने के क्रम में फसलों को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, "गोल्डन राइस" बीटा-कैरोटीन से भरपूर एक GMO किस्म है जिसमें विटामिन A पर्याप्त मात्रा में है, जिसका लक्ष्य विटामिन A की कमी का समाधान करना है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना: शाकनाशी-प्रतिरोधी फसलें शाकनाशी के उपयोग को कम करने के साथ मृदा तथा जल प्रदूषण को कम करने में सहायक हैं। इसके अतिरिक्त, सूखे को सहन करने के लिये तैयार की गई फसलें जल की कमी वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती हैं, जिससे सतत् कृषि को बढ़ावा मिल सकता है।
  • चिकित्सा प्रगति: GMO इंसुलिन के साथ मानव विकास हार्मोन जैसी जीवन रक्षक दवाओं के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसमें विभिन्न बीमारियों के लिये टीके एवं उपचार की भी क्षमता है।

GMO के पर्यावरणीय निहितार्थ:

  • जैवविविधता पर प्रभाव: देसी कपास (जिसे पारंपरिक भारतीय कपास किस्मों के रूप में भी जाना जाता है) के साथ आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) कपास की शुरूआत ने इन दो प्रकार की कपास के बीच क्रॉस-परागण की संभावना के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। इससे पौधों में शाकनाशी के प्रति प्रतिरोध क्षमता में वृद्धि के साथ संकर प्रजातियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • कीटनाशकों का उपयोग: कुछ GMO फसलें जैसे- Bt फसलें, विषाक्त पदार्थों से युक्त होने के कारण कुछ कीटों के प्रति प्रतिरोधी हैं। इससे बाहरी कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता कम होने के साथ कीटनाशक-प्रतिरोधी कीटों के विकास में भी योगदान दे सकता है तथा गैर-लक्षित कीटों (लाभकारी कीटों) को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • जीन प्रवाह और संदूषण: मक्का एकलिंगी पौधा है, जिसका अर्थ है कि इसमें एक ही पौधे पर नर और मादा दोनों फूल होते हैं। GMO मक्का के खेतों से वायु में उड़ने वाले परागकण आसानी से पास के गैर-GMO मक्का के खेतों तक पहुँच सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्रॉस-परागण होता है। इससे आनुवंशिक रूप से संशोधित लक्षणों का स्थानांतरण होने से गैर-GMO फसलों की शुद्धता प्रभावित हो सकती है।
  • मृदा स्वास्थ्य: कुछ GMO फसलों से जुड़ी गहन मोनोकल्चर कृषि प्रथाओं से मृदा का क्षरण एवं पोषक तत्त्वों की कमी होने के साथ जैवविविधता का नुकसान हो सकता है। उदाहरण: मकई-गेहूँ-घास चक्र में प्रति वर्ष उत्पादन में 6.7 टन प्रति हेक्टेयर की कमी होती है, जबकि लगातार मकई की फसल के परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 50 टन प्रति हेक्टेयर तक की कमी हो सकती है। मोनोकल्चर से समय के साथ मृदा के पोषक तत्त्वों में कमी आती है, जिससे मृदा की उर्वरता कम होने के साथ बाहरी आदानों पर निर्भरता बढ़ जाती है।
  • GMOs के स्वास्थ्य संबंधी निहितार्थ:
  • एलर्जेनिक क्षमता: आनुवंशिक रूप से संशोधित सोयाबीन में ब्राज़ील नट प्रोटीन होता है जिससे ब्राज़ील नट्स से एलर्जी वाले व्यक्तियों में इससे एलर्जी प्रतिक्रियाओं की संभावना बनी रहती है।
  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध: आधुनिक आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों में अक्सर एंटीबायोटिक प्रतिरोध मार्करों का उपयोग नहीं होता है। आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों का एक उदाहरण जिसमें एंटीबायोटिक प्रतिरोध मार्करों का उपयोग नहीं हुआ है, CRISPR-Cas9 प्रणाली है। किसी जीव के जीनोम में लक्षित संशोधन करने में अपनी सटीकता और दक्षता के कारण CRISPR-Cas9 ने आनुवंशिक इंजीनियरिंग में लोकप्रियता हासिल की है।
  • कीटनाशक का उत्पादन: Bt फसलों से बैसिलस थुरिंजिएन्सिस जीवाणु से प्राप्त कीटनाशक प्रोटीन का उत्पादन होता है। जबकि इन प्रोटीनों को आमतौर पर मानव उपभोग के लिये सुरक्षित माना जाता है लेकिन गैर-लक्षित जीवों तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं।
  • पोषण संबंधी परिवर्तन: आनुवंशिक रूपांतरण से फसलों के पोषण प्रोफाइल को बदला जा सकता है, जिसके स्वास्थ्य पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, बीटा-कैरोटीन का उत्पादन करने के लिये आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किये गए गोल्डन राइस के विकास का उद्देश्य मुख्य भोजन के रूप में चावल पर निर्भर आबादी में विटामिन A की कमी को पूरा करना है।

निष्कर्ष:

GMOs कृषि, चिकित्सा और पोषण के लिये बड़ी संभावनाएँ रखते हैं, लेकिन हमें उनके पर्यावरण एवं स्वास्थ्य प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिये। उनके लाभों का अधिकतम लाभ उठाने और जोखिमों को कम करने के लिये, हमें संतुलित विनियमन, चल रहे शोध तथा बेहतर आनुवंशिक इंजीनियरिंग तरीकों की आवश्यकता है।